राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत से अपनी मुलाकात में बीजेपी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साफ कर दिया कि उन्हें मोदी का नेतृत्व गवारा नहीं है. भागवत और आडवाणी के बीच संघ मुख्यालय में गुरुवार को बैठक हुई. सूत्रों के मुताबिक इसमें आडवाणी ने संघ को बताया कि 2014 के चुनाव में एनडीए को एक सामूहिक नेतृत्व के तहत लड़ना चाहिए. किसी एक शख्स का नाम आगे करने से न सिर्फ पार्टी संगठन, बल्कि साझेदारों में भी गलत संदेश जा रहा है. गौरतलब है कि आडवाणी पहले भी सामूहिक नेतृत्व का राग अलापते रहे हैं, मगर संघ के वरदहस्त के बाद पार्टी नेताओं ने उनकी अनसुनी कर नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार कमेटी का चेयरमैन घोषित कर दिया था.
अगर आडवाणी और भागवत की 75 मिनट लंबी मुलाकात की बात करें, तो इसमें संघ के लोगों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए. उन्होंने संघ के सुरेश सोनी और बीजेपी में बतौर महासचिव संगठन कार्यरत संघ के ही राम लाल का जिक्र किया. आडवाणी और उनके खेमे के कई नेताओं को शिकायत है कि सभी महत्वपूर्ण फैसले यही कोटरी करती है. ऐसे में कहा जा रहा है कि संभवत: भागवत कुछ ही महीनों बाद इन दोनों को वापस संघ में बुला लें और दत्तात्रेय होसबले जैसे गैरराजनैतिक छवि वाले पदाधिकारी को बीजेपी में तैनात करें.
गौरतलब है कि गोवा में सुरेश सोनी मौजूद थे और उन्हीं की देखरेख में आडवाणी की गैरमौजूदगी को नजरअंदाज कर मोदी के नाम के ऐलान का ऑपरेशन संचालित हुआ.इन सबसे नाराज आडवाणी ने 10 जून को पार्टी के तीन महत्वपूर्ण पदों से इस्तीफा दे दिया था. कई आला नेताओं ने उन्हें मनाया मगर वे नाराज बने रहे. फिर मोहन भागवत ने उन्हें फोनकर इस्तीफा वापस लेने को कहा. आडवाणी को आश्वासन दिया गया कि उनकी शिकायतों पर गौर किया जाएगा. उसी के तहत यह मीटिंग हुई. पहले यह बुधवार को प्रस्तावित थी, लेकिन आडवाणी के खराब स्वास्थ्य के चलते इसे एक दिन आगे खिसकाना पड़ा.
आडवाणी का मोदी विरोध पिछले दिनों कुछ कम होता नजर आ रहा था. मोदी प्लानिंग कमीशऩ की मीटिंग के लिए दिल्ली आए तो आडवाणी से भी मिले. खबरें आ रही थीं कि आडवाणी मोदी के ऐलान से ज्यादा संघ के हस्तक्षेप से नाराज थे. मगर माजरा फिर बदल गया. उनके सिपहसालार रहे सुध्रींद कुलकर्णी ने मोदी को तानाशाह बताया. पार्टी अध्यक्ष राजनाथ को लोमड़ी सी नीयत वाला बताया. उधर जेडीयू ने भी आडवाणी का हवाला देते हुए मोदी और बीजेपी को लताड़ा और समर्थन वापस ले लिया. और इन सबके बीच पार्टी में अपनी खोई हैसियत पाने के लिए आडवाणी उसी संघ के पास पहुंचे, जिसके संगठन में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल रखा था.