एक स्थानीय अदालत ने गुरुवार को मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला के खिलाफ लगाए गए खुदकुशी की कोशिश के आरोप को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही उन्हें हिरासत से तुरंत रिहा करने के आदेश भी जारी कर दिए गए हैं. 42 साल की शर्मिला पिछले 14 साल से बेमियादी अनशन पर हैं. उनकी मांग रही है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) को हटाया जाए.
खुदकुशी की कोशिश के आरोप में शर्मिला आईपीसी की धारा 309 के तहत हिरासत में रही हैं. न्यायिक मजिस्ट्रेट (इंफाल पश्चिम) विजडम केमोडांग ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस बात का कोई सबूत देने में नाकाम रहा है कि वह खुदकुशी की कोशिश कर रही है. उन्होंने यह आदेश भी दिया कि शर्मिला को मामले से आरोप-मुक्त किया जाता है. इंफाल पश्चिम के पुलिस अधीक्षक झलजीत ने बताया कि अदालत के आदेशों के मुताबिक उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया है.
अफ्सपा हटाने की मांग करते हुए शर्मिला ने नवंबर 2000 से ही कुछ भी खाने-पीने से इनकार कर दिया था. गुरुवार शाम अपनी रिहाई के बाद शर्मिला स्थानीय बाजार में एक शेड के अंदर फिर अनशन पर बैठ गईं. बीते साल 19 अगस्त को मणिपुर की एक अन्य अदालत ने शर्मिला को रिहा करने का आदेश दिया था. अदालत ने कहा था कि उनकी भूख हड़ताल कानूनी तौर-तरीकों के जरिए एक राजनीतिक मांग है. बहरहाल, शर्मिला को खुदकुशी की कोशिश के आरोप में तीन दिन बाद फिर गिरफ्तार कर लिया गया था.
शर्मिला को जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के एक विशेष वार्ड में रखा गया था जो उनके लिए जेल का काम करता है. जीवित रखने के लिए उन्हें नाक के जरिए तरल पदार्थ का सेवन जबरन कराया जाता है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी ने अधिकारियों से अनुरोध किया है कि शर्मिला को फिर से गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. पिछले महीने केंद्र सरकार ने कहा था कि उन्होंने आईपीसी की धारा 309 खत्म करने का फैसला किया है. इस धारा के तहत खुदकुशी की कोशिश के जुर्म में एक साल तक की जेल की सजा हो सकती है.
-इनपुट भाषा से