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जजों की नियुक्ति में राष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ औपचारिक: केंद्र

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमिशन (NJAC) एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने एक्ट का बचाव किया.

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हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने एक्ट का बचाव किया. केंद्र ने अपने जवाब में जजों की नियुक्ति में राष्ट्रपति की भूमिका साफ करते हुए कहा कि इन मामलों में राष्ट्रपति केवल औपचारिक तौर पर भाग लेते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शक्ति संतुलन की बात सरकार भी मानती है, इससे आगे क्या कहना है. इस पर केंद्र की ओर से कहा गया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात तब शुरू होती है, जब जजों की नियुक्ति हो जाती है, उससे पहले नहीं. एनजेएसी में भी न्यायिक स्वतंत्रता कायम रहेगी. कॉलेजियम सिस्टम के बदले NJAC के जरिये जजों की नियुक्ति का सिस्टम ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह होगा.

कोर्ट को बताया गया कि संसद के साथ 20 राज्यों की विधानसभाओं ने भी NJAC का पक्ष लिया है. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि NJAC के कारण एक्जीक्यूटिव के अधिकार सीमित हो रहे है.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह बताने को कहा कि अनुच्छेद-124 के तहत राष्ट्रपति जब सलाह से जजों की नियुक्ति करते हैं, तो क्या यह राष्ट्रपति का विशेषाधिकार के दायरे में है या सरकार के माध्यम से इस अधिकार का इस्तेमाल होता है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राष्ट्रपति जब जजों की नियुक्ति करते हैं, तो यह सेरेमोनियल और औपचारिक होता है. दरअसल उन्हें प्रधानमंत्री की अगुआई में मंत्रिपरिषद सलाह देती है.

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अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जजों की नियुक्ति दरअसल एक्जीक्यूटिव फंक्शन था और राष्ट्रपति का रोल अपॉइंटमेंट के लिए निर्देश जारी करना था. संविधान में बदलाव के बाद राष्ट्रपति की सलाह और परामर्श के प्रावधान को हटाकर उसकी जगह NJAC की सिफारिश को रखा गया है. इसमें छह मेंबर होंगे और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया इसके हेड होंगे.

रोहतगी ने कहा कि अनुच्छेद-124 के तहत राष्ट्रपति के परामर्श का मतलब साफ है कि वह मंत्रि परिषद की सलाह पर काम करते रहे हैं. मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी.

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