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ढाई महीने में दिल्ली में 36 पत्रकार हुए हमले का शिकार: CAAJ रिपोर्ट

इन हमलों में गिरफ्तारी और हिरासत से लेकर गोली मारने, मारपीट, काम करने से रोके जाने, शर्मिंदा किए जाने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे उत्पीड़न शामिल हैं. हमलावरों में पुलिस से लेकर उन्मादी भीड़ तक बराबर शामिल हैं.

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पिछले दिनों दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हिंसा भड़की थी (फोटो-पीटीआई)
पिछले दिनों दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हिंसा भड़की थी (फोटो-पीटीआई)

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  • इनमें ज्यादातर पत्रकार राष्ट्रीय मीडिया के हैं
  • हमलों में हिरासत से लेकर गोली मारना शामिल

प्रेस की आजादी के मामले में देश की राजधानी में हालात इमरजेंसी के दिनों से भी बदतर हो चुके हैं. पिछले ढाई महीने में अकेले दिल्ली में करीब तीन दर्जन पत्रकारों पर हमले हुए हैं. इनमें ज्यादातर पत्रकार राष्ट्रीय मीडिया के हैं जो दिल्ली एनसीआर में काम करते हैं. इन हमलों में गिरफ्तारी और हिरासत से लेकर गोली मारने, मारपीट, काम करने से रोके जाने, शर्मिंदा किए जाने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे उत्पीड़न शामिल हैं. हमलावरों में पुलिस से लेकर उन्मादी भीड़ तक बराबर शामिल हैं.

यह बात पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) द्वारा सोमवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में सामने आई है. 'रिपब्लिक इन पेरिल' नामक यह रिपोर्ट दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जारी की गई. वरिष्ठ पत्रकार और कमेटी के संरक्षक आनंदस्वरूप वर्मा, अंग्रेजी पत्रिका कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोश सिंह बल और ऑल इंडिया विमिन प्रेस कॉर्प्स की अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने रिपोर्ट को रिलीज़ करते हुए प्रेस को संबोधित किया.

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रिपोर्ट में दिसंबर से लेकर फरवरी के बीच पत्रकारों पर हमले के तीन चरण गिनाए गए हैं. पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद जामिया के प्रोटेस्ट से शुरू होता है. इस बीच प्रेस पर सबसे ज्यादा हमले 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच हुए. इन हमलों में भीड़ और पुलिस दोनों की बराबर भूमिका रही.

हमले का दूसरा चरण 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में नकाबपोशों के हमले के दौरान सामने आया, जब जेएनयू गेट के बाहर घटना की कवरेज करने गए पत्रकारों को भीड़ द्वारा डराया-धमकाया गया और धक्कामुक्की की गई. साथ ही नारे लगाने के लिए भी दबाव बनाया गया. प्रताड़ित पत्रकारों की गवाहियों से सामने आया कि इस पूरे प्रकरण में पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही.

रिपोर्ट कहती है कि दिसंबर और जनवरी की ये घटनाएं ही मिलकर फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में तब्दील हो गईं, जब खुलेआम पत्रकारों को उनकी धार्मिक पहचान साबित करने तक को बाध्य किया गया. दो दिनों 24 और 25 फरवरी के बीच ही कम से कम डेढ़ दर्जन रिपोर्टरों को कवरेज के दौरान हमलों का सामना करना पड़ा. जेके न्यूज़ 24 के आकाश नापा को तो सीधे गोली ही मार दी गई.

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दिल्ली की इस हिंसा के दौरान सताए गए राष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों ने अपनी आपबीती अलग अलग मंचों और सोशल मीडिया पर सुनाई है. समिति की यह रिपोर्ट इन्हीं आपबीतियों और रिपोर्ट्स पर आधारित है. पत्रकारों पर हमले के खिलाफ समिति जल्द ही 2019 में पत्रकारों पर हुए हमलों की एक सालाना रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रही है. इससे पहले दिसंबर 2020 के अंत में सीएए विरोधी आंदोलन में प्रताड़ित पत्रकारों की एक संक्षिप्त सूची समिति ने प्रकाशित की थी.

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