जम्मू-कश्मीर में 198 किमी लंबी सीमा पर जबरदस्त गोलाबारी के मामले में एक अजीब बात यह थी कि सारे निर्देश प्रधानमंत्री कार्यालय से दिए गए. आम तौर पर ऐसी स्थिति में गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालय के अधिकारी अपने राजनैतिक नेतृत्व को सही फैसले लेने में सलाह और सहायता देते हैं. यही नहीं, स्थिति का जायजा लेने के लिए मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति या सचिवों की कोई बैठक नहीं हुई और न ही इस बात का कोई आकलन किया गया कि दोनों तरफ से हो रहे जवाबी हमलों के बेकाबू हो जाने के परिणाम क्या होंगे.
कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण
दोनों देशों के बीच आधिकारिक बातचीत बंद होने के बाद माहौल ऐसा बन चुका है कि पहली गोली चलने से पहले ही संघर्ष छिड़ जाता है. पाकिस्तान गोलाबारी का जोरदार जवाब देने वाले सीमा सुरक्षा बल को सीधे गृह मंत्रालय से आदेश मिल रहा था. यह झड़प ऐसे समय हुई जब महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रचार चरम पर था. 9 अक्टूबर को महाराष्ट्र में एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना संदेश देने का मौका मिल गया. उधर पाकिस्तानी फौज 'फाइनल ब्लो' ऑपरेशन में उत्तरी वजीरिस्तान में अपने ही लोगों से हिचकते हुए लड़ रही है और भारी नुकसान उठा रही है. ऐसे में भारत के मोर्चे पर बरसी आग कश्मीर सीमा पर फौज की नए सिरे से तैनाती का बहाना दे देती है. इससे सिर्फ तनाव बढ़ता है और कश्मीर मुद्दा अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में चढ़ जाता है.
खतरनाक खेल
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के राजनयिकों से कहा जा रहा है कि वे सीमा पर इस तरह के संघर्ष के लिए पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराएं. उसे ही असली हमलावर बताते हुए कहा जा रहा है कि फौजी हुक्मरान ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कोशिशों और शांति प्रक्रिया को पलीता लगा रहे हैं. मगर भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक का मानना है कि भारतीय राजनयिकों का काम बहुत कठिन है. जनरल मलिक ने इंडिया टुडे से कहा, 'सीमा पर हमारी आबादी अच्छी-खासी है. इस मामले में अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है और अब यह राजनयिक चुनौती होती जा रही है. राजनयिकों को दिन-रात मेहनत करनी होगी ताकि हम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव न बढ़े.'
भारत के लिए समस्या यह है कि वह आक्रामक रवैए पर जितना आगे जाएगा, पाकिस्तान में उतना ही उल्टा असर हो सकता है. यहां तक कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी गुटों पर दबाव भी कम हो सकता है. इसका एक और असर यह हुआ कि दीवाली से पहले खतरे की आशंका बढ़ गई. खुफिया एजेंसियां पता लगा रही है कि कहीं पाकिस्तान आतंकी हमले के रूप में पलटवार करने के मूड में तो नहीं है. यह सूचना पहले से ही फैला दी गई है कि हाल में आतंकियों ने पाकिस्तानी नौसेना के फ्रिगेट पर कब्जा करने की जो कोशिश की, उसका मकसद भारतीय तट पर हमले की तैयारी हो सकता है. इस खतरनाक खेल के नतीजे क्या होंगे, कहना मुश्किल है. इससे मोदी के इरादे की परख होगी.