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भारत-अमेरिका के बीच COMCASA पर करार, समझौते से ये होंगे बदलाव

कई साल से यह समझौता लटका हुआ था. रूस के साथ भारत के संबंध कॉमकासा एग्रीमेंट में आड़े आ रहे थे. गुरुवार को आखिरकार भारत और अमेरिका ने इसपर दस्तखत कर दिया. इससे भारत को अमेरिकी रक्षा तकनीक आसानी से प्राप्त होने का रास्ता साफ हो गया.

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2+2 वार्ता की फोटो (एएनआई)
2+2 वार्ता की फोटो (एएनआई)

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भारत और अमेरिका के बीच गुरुवार को चिर प्रतिक्षित कॉमकासा (COMCASA-कम्युनिकेशंस कमपैटबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) पर दस्तखत हो गया. दोनों देशों के बीच यह समझौता लंबे वर्षों से फंसा था.

इस करार पर दस्तखत होने के बाद भारत अब अमेरिका से अति-आधुनिक रक्षा तकनीक प्राप्त कर सकेगा. अब तक भारत को ऐसी कोई टेक्नोलॉजी अमेरिका से नहीं मिलती थी. यह समझौता होने के बाद भारत के रक्षा क्षेत्र में मजबूती आने की संभावना है. साल 2016 में अमेरिका ने भारत को अपना सबसे बड़ा रक्षा साझीदार बताया तो था लेकिन अतिआधुनिक टेक्नोलॉजी तक भारत की पहुंच नहीं थी. इस करार के बाद बाधाएं अब दूर होती नजर आ रही हैं.

करार के मायने

1-अमेरिका से किसी भी देश को अति आधुनिक (एडवांस्ड एनक्रिप्टेड) रक्षा टेक्नोलॉजी तभी मिल सकती है, जब तीन प्रकार के करार हों. कॉमकासा उन्हीं तीन में से एक है. भारत इसके पहले दूसरे करार लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएओए) के तहत अमेरिका से जुड़ा था जो 2016 में दस्तखत हुआ था. जिस तीसरे करार पर अभी दस्तखत होना बाकी है, उसका नाम है- बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए).

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2-इस करार के बाद दोनों देशों के बीच अति आधुनिक लड़ाकू विमानों के हार्डवेयर की अदला-बदली हो सकती है. इनमें सी-130 जे, सी-17, पी-81 विमान शामिल हैं. भारत अब अमेरिका के अति आधुनिक रक्षा संचार उपकरणों का भी उपयोग कर सकेगा.

3-इस करार पर दस्तखत होने के बाद दोनों देशों के बीच टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में कानूनी अड़चनें दूर होंगी. अमेरिकी तकनीक को भारत की तुलना में ज्यादा सटीक और सुरक्षित माना जाता है. अलग-अलग हथियार प्रणाली के लिए भारत फिलहाल स्थानीय प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है. इस करार के बाद भारत अमेरिकी रक्षा प्लेटफॉर्म पर काम कर सकेगा.

4-दोनों देशों के बीच पिछले कई साल से यह करार लटका था. आलोचकों की राय थी कि समझौता होने के बाद भारत रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाएगा और उसे अमेरिकी तकनीक पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ेगा. यह भी कहा जाता था कि अमेरिका के साथ इस करार से रूस के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा.

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