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किन किताबों को अपने पास रखना भी है जुर्म, क्या कहता है कानून?

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा के मुताबिक जिन किताबों से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतरा पैदा होता है या किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, तो उन पर सरकार बैन लगा सकती है. लॉ के प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि हिंसा को भड़काने वाली और कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाली किताबों पर भी सरकार बैन लगा सकती है.

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प्रतीकात्मक (फाइल फोटो-Aajtak)
प्रतीकात्मक (फाइल फोटो-Aajtak)

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दुनिया में अच्छी किताबें सबसे बेहतरीन दोस्त होती हैं. किताबें न सिर्फ आपके दुख, दर्द, खुशी और अकेलेपन की साथी होती हैं, बल्कि आपको ज्ञान का अनमोल खजाना देती हैं. किसी लेखक की सबसे बेहतरीन अभिव्यक्ति उसकी किताबें होती हैं, लेकिन कई बार दुर्भावना या आक्रोश में लिखी गई किताबें समाज के लिए नुकसानदायक होती हैं, जिसके चलते उन पर बैन लगाना पड़ता है. कई बार ऐसी किताबों को अपने पास रखना भी अपराध होता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान किया जाता है.

किताबों पर बैन का चलन सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में है. फिलहाल रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की किताब 'वॉर एंड पीस' सुर्खियों में है. भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी वेरनॉन गोंजाल्विस की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट में इस किताब का जिक्र किया गया.

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अब यहां सवाल ये उठते हैं कि आखिर किताब पर बैन क्यों लगाया जाता है? भारत में किताबों पर बैन लगाने का कानून क्या है? क्या किसी किताब को अपने पास रखना भी अपराध है? इस पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि जिन किताबों से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतरा पैदा होता है या किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, तो उन किताबों पर सरकार बैन लगा सकती है. लॉ के प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि हिंसा को भड़काने वाली, जातीय भेदभाव को बढ़ावा देने वाली, कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाली और राजद्रोह को उकसाने वाली किताबों पर सरकार बैन लगा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि कई किताबों को अपने पास रखना, बेचना या किसी को बांटना भी जुर्म है. भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 292 के तहत अश्लील किताबें रखने पर दो साल की जेल और जुर्माना का प्रावधान किया गया है. उन्होंने बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 95 के तहत पुलिस को बैन किताबों को जब्त करने का भी अधिकार है.

एक सवाल के जवाब में लॉ प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि किताब लिखना और उनको बांटना संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है. हालांकि इस अधिकार पर कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में एक सीमा तक प्रतिबंध लगाया जा सकता है. दुबे का कहना है कि किसी को अपमानित करने के लिए भी कोई पुस्तक या लेख नहीं लिखा जा सकता है. किसी को अपने अधिकार की आड़ में दूसरे के अधिकार का हनन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

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भारत में बैन हुई थीं ये किताबें

भारत में किताबों पर बैन का इतिहास बहुत पुराना है. भारत में 'द हिंदूजः एन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री', सलमान रुश्दी की 'द सैटनिक वर्सेज', वीएस नॉयपॉल की किताब 'एन एरिया ऑफ डॉर्कनेस', माइकल ब्रीचर की किताब 'नेहरूः अ पॉलिटिकल बॉयोग्राफी', अमेरिकी लेखक स्टैनले वोलपर्ट की किताब 'नाइन ऑवर्स टू रामा', अमेरिकी इतिहासकार कैथरीन मायो की किताब 'द फेस ऑफ मदर इंडिया' और आर्थर कोस्टलर की किताब 'द लोटस एंड द रोबोट' समेत कई ऐसी किताबें हैं, जो भारत में बैन हुई थीं.

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