40 वर्ष पहले रूसी रॉकेट की मदद से सफलतापूर्वक छोड़ा गया भारत का पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट' आज चंद्रमा और मंगल तक जा पहुंचा है. इस उपग्रह के साथ ही अंतरिक्ष में भारत का अभूतपूर्व सफर शुरू हुआ था.
इंडियन स्पेस प्रोग्राम के लिहाज से वर्ष 2015 और खासकर अप्रैल का महीना विशेष अहमियत रखता है. आज से 40 वर्ष पहले 1975 में अप्रैल महीने में ही भारत का पहला उपग्रह 358 किलोग्राम वजनी आर्यभट्ट सफलतापूर्वक छोड़ा गया था. आर्यभट्ट के बाद भारत ने अपना दूसरा उपग्रह 444 किलोग्राम वजनी भास्कर-1 छोड़ा.
स्पेस रिसर्च की दिशा में अब भारत इतना आगे निकल चुका है कि न सिर्फ वह तीन टन से भी अधिक वजन वाले अपने दूरसंचार उपग्रह छोड़ने की काबिलियत हासिल कर चुका है, बल्कि चंद्रमा और मंगल ग्रह तक अपने उपग्रह भेजने लगा है.
2001 में लॉन्च किया था पहला GSLV
अप्रैल महीने में ही 2001 में भारत ने अपना पहला जीएसएलवी रॉकेट छोड़ा. हालांकि अत्यधिक वजन वाले उपग्रह स्थापित करने की क्षमता रखने वाले जीएसएसवी रॉकेटों का विकास अब धीमा पड़ चुका है. लगातार दो जीएसएलवी रॉकेट के असफल परीक्षण के बाद यह योजना सात वर्ष पीछे चल रही है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व चैयरमैन यूआर राव ने सोमवार को कहा, 'उन दिनों सुविधाएं आज की तरह नहीं थीं और जो कुछ उपलब्ध था हम उन्हीं से अपना काम चला रहे थे. बेंगलुरू में हमने अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट के लिए टॉयलेट को ही डाटा रिसीविंग सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया."
राव ने कहा, 'जब हमने आर्यभट्ट पर काम शुरू किया तो हमारे सामने शून्य से शुरू करने की चुनौती थी. टीम के ज्यादातर सदस्य इस क्षेत्र से अनजान थे.'
इनसैट-1बी के बाद भारत ने पकड़ी स्पीड
भास्कर-1 उपग्रह के बाद भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने एपीपीएलई संचार उपग्रह का निर्माण किया, जो बाद में इनसैट श्रेणी के उपग्रहों का आधार बना, जो दूरसंचार, दूरदर्शन, मौसम विज्ञान एवं इमेजिंग की क्षमताओं से युक्त है. इसरो ने इनसैट-1बी के बाद से विकास की तेज गति पकड़ी जो राव के अनुसार भारत में संचार क्रांति की आधारशिला बनी.
इसरो ने फ्रांस की एजेंसी ईएडीएस एस्ट्रीयम के साथ मिलकर दो भारी उपग्रहों, 3,453 किलोग्राम वाला डब्ल्यू2एम और 2,541 किलोग्राम वाले हाईलस का निर्माण किया.
सेब और संतरे जैसी होगी तुलना
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रॉकेट और उपग्रहों की तुलना नहीं की जा सकती. दोनों ही तकनीकी रूप से अंतरिक्ष से ही जुड़े हुए हैं, लेकिन दोनों की तुलना करना जैसा सेब और संतरे की तुलना करना है.
लिक्विड प्रॉपल्शन सिस्टम सेंटर (एलपीएससी) के निदेशक के. शिवान ने बताया, 'हम इसी वर्ष जुलाई या अगस्त में जीएसएलवी-एमके2 लांच करने की योजना बना रहे हैं. यह रॉकेट पूरी तरह स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन से संचालित होगा। सब कुछ ठीक रहा तो हम जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट को हम दिसंबर 2016 में लांच कर देंगे.'
- इनपुट IANS