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भारत को ज्यादा विदेशी पूंजी की दरकार: मनमोहन

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सलाना नौ से दस प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर के लिए देश में विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि देश को एशिया प्रशांत क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देना होगा. पर इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसके लिए देश की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सलाना नौ से दस प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर के लिए देश में विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि देश को एशिया प्रशांत क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देना होगा. पर इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट कहा कि इसके लिए देश की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

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रक्षा बलों के शीर्ष कमांडरों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए ‘सबसे कठिन चुनौती’ अपने पड़ोस में ही है. उन्होंने कहा कि देश के विकास की महत्वाकांक्षा को तब तक हासिल नहीं किया जा सकता जब तक दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता स्थापित नहीं होती है.

मनमोहन ने कहा कि जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, प्रौद्योगिकी क्षमताओं का भी विस्तार होना चाहिए ताकि जिससे रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिए उच्च मानक स्थापित हो सकें.

उन्होंने कहा कि युद्ध के सिद्धान्तों की भी समय के साथ समीक्षा होती रहनी चाहिए कि देश के समक्ष किसी भी नए खतरे आ रहे हैं उनका सामना किया जा सके.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश की मजबूती उसके संस्थानों की मजबूती, उसके मूल्यों और आर्थिक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करती है.’

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उन्होंने कहा कि यदि हमें नौ से दस फीसद की आर्थिक वृद्धि दर को कायम रखना है, तो हमें इसके लिए शेयर बाजारों में विदेशी निवेश के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, दोनों की जरूरत होगी. ‘साथ ही हमें सर्वश्रेष्ठ आधुनिक प्रौद्योगिकी और विकसित अर्थव्यवस्थताओं तक पहुंच की जरूरत होगी.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके लिए भारत को दुनिया के सभी शक्तिशाली देशों से मजबूत रिश्ते रखने होंगे, पर साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि इसके लिए देश की रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि भारत इतना बड़ा देश है कि उसे किसी गठजोड़, क्षेत्रीय या उप क्षेत्रीय व्यवस्था, चाहे व्यापार हो या आर्थिक या राजनीतिक, में बांधा नहीं जा सकता.

प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक तरीके से देखा जाए, तो आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का एशिया को हस्तांतरण हुआ है. भारत को दक्षिण पूर्व एशिया के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है.

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