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जब भारत ने किया भरोसा और दगाबाज निकला पाकिस्तान... इतिहास के वो 5 मौके

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते 1947 से ही कड़वाहट भरे रहे हैं. और इसकी वजह खुद पाकिस्तान ही है. भारत ने जब-जब पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की है, बदले में पाकिस्तान से सिर्फ धोखा ही मिला है. जानते हैं उन पांच मौकों के बारे में जब भारत की दोस्ती के बदले पाकिस्तान से सिर्फ धोखा ही मिला है.

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भारत और पाकिस्तान के रिश्ते 1947 से ही कड़वाहट भरे रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते 1947 से ही कड़वाहट भरे रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

आर्थिक तंगी से जूझ रहा पाकिस्तान अब भारत से बात करना चाहता है. वो भी ऐसे समय जब वो बुरी तरह आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत की पेशकश की है.

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प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का कहना है, 'हम सबसे बात करने को तैयार हैं. यहां तक कि अपने पड़ोसी से भी. बशर्ते कि पड़ोसी मेज पर गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए गंभीर हो. क्योंकि जंग अब कोई समाधान नहीं है.'

शरीफ का कहना है कि जब तक अनसुलझे मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक भारत और पाकिस्तान 'सामान्य पड़ोसी' नहीं बन सकते. 

शहबाज शरीफ की इस पेशकश पर अब तक भारत का कोई जवाब नहीं आया है. लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर साफ कर चुके हैं कि जब तक सीमा पार आतंकवाद खत्म नहीं हो जाता, तब तक पाकिस्तान के साथ 'सामान्य संबंध' संभव नहीं हैं.

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा खटास भरे ही रहे हैं. इसकी वजह खुद पाकिस्तान ही है. 1947 में अलग मुल्क बनने के बाद से पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा घोंपने के अलावा और कुछ नहीं किया. इतना ही नहीं, भारत ने जब-जब सारे गिले-शिकवे भुलाकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है या रिश्ते सुधारने की कोशिश की है तो पाकिस्तान से सिर्फ 'धोखा' ही मिला है.

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1. अलग मुल्क बनते ही दिया पहला धोखा

1947 में मजहब के नाम पर पाकिस्तान अलग मुल्क तो बन गया. लेकिन उसकी नजर कश्मीर पर थी. वो कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था. लेकिन कश्मीर ने उस समय भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ जाने की बजाय अलग रहना ही चुना.

लिहाजा, 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से हजारों कबायलियों से भरे सैकड़ों ट्रक कश्मीर में घुस गए. इनका मकसद था कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. ये वो कबायली थे जिन्हें पाकिस्तान की सरकार और सेना का समर्थन मिला था.

दिन गुजरते गए और कबायली कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा करते चले गए. आखिरकार जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी. भारत ने कश्मीर में सेना उतार दी. 

ट्रकों में भरकर आए थे पाकिस्तानी कबायली. (फाइल फोटो)

जनवरी 1948 में भारत कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गया. वहां पर जनमत संग्रह की बात उठी. लेकिन तब तक पाकिस्तान से आए इन कबायलियों ने कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था.

संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में तय हुआ कि भारत के पास कश्मीर का जितना हिस्सा था, वो भारत में ही रहा. और जितना पाकिस्तान के पास गया, उस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा हो गया. अब उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके कहते हैं.

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2. पाकिस्तान ने फिर भेजे अपने सैनिक

1958 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ. समझौते में तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान, एक-दूसरे के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल नहीं करेंगे. सारे मुद्दे बातचीत से सुलझाएंगे.

लेकिन इस समझौते के सात साल बाद ही अगस्त 1965 में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया. इस बार भी कश्मीर को अपने में मिलाना ही मकसद था. 

कुछ दिन तक चली जंग के बाद सीजफायर का ऐलान किया गया. लेकिन तब तक दोनों ओर काफी नुकसान हो चुका था.

इस जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के हाजी पीर और ठिथवाल समेत कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था. लेकिन 1966 में रूस के ताशकंद में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खां के बीच समझौता हुआ. 

समझौते के तहत भारत ने पाकिस्तान के कब्जाए इलाकों को लौटा दिया. इसे लेकर लाल बहादुर शास्त्री की भारत में बहुत आलोचना भी हुई. ताशकंद में ही 11 जनवरी 1966 को रहस्यमयी परिस्थितियों में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था.

3. उकसाया तो भारत ने दो टुकड़े कर दिए

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1965 की जंग के बाद कुछ साल तक तो पाकिस्तान शांत रहा. लेकिन 1970 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हालात तेजी से बदलने लगे थे. वहां के लोग पाकिस्तान से खुद को अलग करने की मांग करने लगे.

पूर्वी पाकिस्तान में हालात इतने बिगड़ गए कि पाकिस्तान ने अपनी सेना वहां उतार दी. पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में लोगों पर जमकर अत्याचार किए. 

भारत अब तक इस पूरी स्थिति पर चुप ही था. लेकिन तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने भारत पर हवाई हमला कर दिया. 

भारत ने इस हमले का ऐसा जवाब दिया कि 13 दिन में ही ये जंग खत्म हो गई. इतना ही नहीं, पाकिस्तान के भी दो टुकड़े कर डाले. और इससे नया देश बना- बांग्लादेश. पाकिस्तानी सेना की कमान संभाल रहे जनरल नियाजी ने घुटने टेक दिए. जनरल नियाजी ने 93 हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया.

4. करगिल में जंग छेड़ घोंपा छुरा

ये वो वक्त था जब कुछ ही महीनों पहले भारत और पाकिस्तान, दोनों ने परमाणु परीक्षण किया था. इसने पहले से ही बुरे दौर से गुजर रहे दोनों देशों के रिश्तों को और बिगाड़ दिया था.

ऐसे समय में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दोनों देशों के रिश्ते सुधारने की पहल शुरू की. सितंबर 1998 में दिल्ली से लाहौर तक बस चलाने की योजना पर काम शुरू हुआ.

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20 फरवरी 1999 को अमृतसर से लाहौर तक बस चली. इसी बस से अटल बिहारी वाजपेयी भी लाहौर पहुंचे. वहां पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उनका स्वागत किया. वाजपेयी ने नवाज शरीफ को गले भी लगाया. 

लेकिन इस बस यात्रा के दो-तीन महीने बाद ही पाकिस्तान ने करगिल में घुसपैठ कर पीठ में छुरा घोंप दिया. हालांकि, जिस समय भारत लाहौर तक बस चलाने की तैयारियां कर रहा था, उस समय पाकिस्तानी सेना करगिल में जंग की तैयारी में जुटा था.

मई 1999 तक भारत को पाकिस्तानी सेना की इस हरकत का पता ही नहीं चला. फिर जब एक दिन कुछ चरवाहे वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ हथियारबंद लोग भारतीय चौकियों पर कब्जा कर बैठे हैं. 8 मई 1999 को ये जंग शुरू हुई और भारत ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया और 26 जुलाई 1999 को करगिल में तिरंगा लहरा दिया.

5. दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मिला आतंकवाद

21वीं सदी की शुरुआत से ही पाकिस्तान ने भारत को आतंकवाद के जख्म देना शुरू कर दिया. करगिल जंग के बाद भी 2001 में वाजपेयी ने पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को भारत आने का न्योता दिया. मुशर्रफ आगरा भी आए. लेकिन इसके कुछ महीने बाद ही दिसंबर 2001 में संसद पर आतंकी हमला हो गया.

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मनमोहन सरकार में भी पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश हुई, लेकिन इसके बदले में भी सिर्फ आतंकवाद ही मिला. 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई पर हमला कर दिया. इस हमले में 150 से ज्यादा लोग मारे गए. 

2014 में मोदी सरकार आने के बाद दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवाज शरीफ की नातिन मेहरून्निसा की शादी में शामिल होने पाकिस्तान पहुंचे. उसी दिन नवाज शरीफ का जन्मदिन भी था. प्रधानमंत्री मोदी का ये दौरा अचानक हुआ था.  

मोदी के पाकिस्तान दौरे के कुछ दिन बाद ही जनवरी 2016 में पठानकोट में आतंकी हमला हो गया. इसके बाद सितंबर 2016 में उरी सेक्टर में आतंकियों ने हमला कर दिया. उरी हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. 

इतना ही नहीं, 14 फरवरी 2019 को पाकिस्तानी आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया. इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए. पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए थे. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने दावा किया था कि इस हमले के बाद भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध के करीब आ गए थे.

कितना भरोसेमंद है पाकिस्तान? 

भारत साफ कर चुका है कि बातचीत की टेबल पर तभी आएंगे जब आतंकवाद पर भी बात हो. लेकिन पाकिस्तान इस बात को मानता नहीं है. उल्टा वो खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता रहता है. 

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लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी पाकिस्तान की सरजमीं पर खुलेआम घूम रहे हैं. इनमें हाफिज सईद, मसूद अजहर, जकी-उर-रहमान लखवी, जफर इकबाल और अब्दुल रहमान मक्की जैसे आतंकी शामिल हैं. 

इतना ही नहीं, पाकिस्तान लाख इस बात को मना करे लेकिन उसकी जमीन से भारत के खिलाफ आतंकियों को तैयार किया जाता है. आए दिन पाकिस्तानी आतंकी सीमा पार कर घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं. कई कर भी लेते हैं. 

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में पाकिस्तानी आतंकियों ने 34 बार और 2022 में 14 बार घुसपैठ की कोशिश की.

 

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