हम कैसी सोसाइटी में रहना चाहते हैं? ऐसी सोसाइटी जिसमें राष्ट्रहित के नाम पर आपकी प्राइवेसी के साथ खिलवाड़ हो रहा है? ऐसी सोसाइटी जिसमें किसी शख्स को बिना किसी सबूत के गिरफ्तार कर लिया जाता है? इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2014 के 'The limits of Liberty' सत्र में देश के जाने-माने वकील हरीश साल्वे ने ये सवाल उठाए.
इस सत्र में बोलते हुए हरीश साल्वे ने कहा, 'राष्ट्रहित के नाम पर लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा रहा है. एहतियातन गिरफ्तारी, आपातकाल, मीडिया पर सेंसर, फोन टैपिंग और जासूसी के जरिए संविधान में मिलने वाले मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. मेरे हिसाब से राष्ट्रहित से ज्यादा जरूरी जनहित है. हमें निराश सरकार ने किया है. इमरजेंसी लगाकर. जब सेना स्वर्ण मंदिर में घुसी तो हमारी सरकार नाकाम रही, आतंकी हमले भी हमारी सरकार की नाकामी की सच्चाई बताते हैं.'
हरीश साल्वे ने आगे कहा, 'आतंकवाद की शुरुआत भ्रष्टाचार से होती है. मैं आर्थिक भ्रष्टाचार की बात नहीं कर रहा. राजनीतिक भ्रष्टाचार ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. जाति और धर्म के आधार पर बांटना भी भ्रष्टाचार है. इसी गर्वनेंस की वजह से आतंवाद पैदा हुआ. अमेरिका में एडवर्ड स्नोडन ने जो NSA की जासूसी पर खुलासा किया, वो भी अमेरिकी सरकार का करप्शन है.'
इस सत्र में व्हिसल ब्लोअर के अधिकारियों के लिए लड़ने वाली जेसलिन रेडाक ने कहा, 'जो शख्स इस सोसाइटी को बेहतर बनाने के लिए किसी करप्शन का खुलासा करता है उसे सुरक्षा मुहैया कराना हमारी जिम्मेदारी है. 26/11 के कई आरोपियों को अपना पक्ष रखने के लिए हम मदद के लिए सामने आए. आज मुझे लगता है कि मैं अपना जीवन उन व्हिसल ब्लोअर के लिए समर्पित कर दूंगी. आज अगर एडवर्ड स्नोडन नहीं होता तो अमेरिकी एजेंसी एनएसए द्वारा की जा रही जासूसी के बारे में पता नहीं चलता. किस तरह से हमारी प्राइवेट लाइफ की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, ये सच सामने नहीं आता.'
हरीश साल्वे ने कहा, 'सरकार कहती है कि हम सोसाइटी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. पर हमें ये यह तय करना होगा कि हम किस सोसाइटी में रहना चाहते हैं. एक ऐसी सोसाइटी जिसमें आपको राष्ट्रहित के नाम पर गिरफ्तार कर लिया जाए. धर्म के आधार पर आप पर आतंकी का ठप्पा लगा दिया जाए. जहां पुलिसकर्मियों और सरकारी अधिकारियों को दूसरों पर झूठे आरोप लगाने की सजा न मिले. क्या हम ऐसी सोसाइटी में रहना चाहते हैं? एक ऐसी सोसाइटी जहां लोकतंत्र की जगह जासूसीतंत्र ले ले. इसके बारे में हमें सोचना होगा.'