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Conclave 15: सोशल मीडिया पर राजनीतिक जंग में कौन है आगे?

बीजेपी के आईटी हेड ने कहा कि हमारी पार्टी के डीएनए में टेक्नॉलजी है. 2009 में हमने देखा कि लोग सोशल मीडिया पर बहुत बात कर रहे हैं.

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india today conclave 15
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अरविंद गुप्ता, हेड, बीजेपी आईटी डिवीजन
अंकित लाल, सोशल मीडिया रणनीतिकार, आम आदमी पार्टी
मॉडरेटरः राहुल कंवल

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सवालः कौन किसकी नकल करता है ट्विटर पर?
अरविंदः बीजेपी के डीएनए में टेक्नॉलजी है. 2009 में हमने देखा कि लोग सोशल मीडिया पर बहुत बात कर रहे हैं. और इस पर काम शुरू हो गया. आम आदमी पार्टी तो 2012 में बनी. अंकित इसके बारे में बताएंगे. हमने 1998 में वेबसाइट लॉन्च की. 2004 और 2009 के चुनावों में उपलब्ध तकनीकी का बेस्ट इस्तेमाल किया.
अंकितः हमारी पार्टी बहुत नया विचार है. जब से पार्टी बनी, तब से सोशल मीडिया पर हैं. बीजेपी बहुत सीनियर है. 30-40 साल पुरानी पार्टी, उन्होंने लेट शुरू किया.
अरविंदः जब उस वक्त में तकनीकी थी ही नहीं, तो कैसे इस्तेमाल करते.

सवालः आपकी सोशल मीडिया आर्मी में कितने लोग हैं?
अरविंदः आप कैसे परिभाषित करेंगे इस आर्मी को. मीडिया में ये मिथ है कि सैकड़ों लोग एक कॉलसेंटर में बैठे हैं, आदेश का इंतजार करते हुए. इस तरह की बातें कही जाती हैं कि फर्जी अकाउंट बनाए जा रहे हैं. ट्रोलिंग के लिए. टैगिंग के लिए. ट्रेंड के लिए. ये सब बेहूदी बातें हैं. सोशल मीडिया पर जो हमें सपोर्ट करते हैं, वे नौकरी पर रखे गए लोग नहीं हैं. वे स्वतंत्र लोग हैं, जो हमारे विचारों का समर्थन करते हैं. हमारे यहां पेड वॉलंटियर का कंसेप्ट नहीं है.
हमारे यहां टेक्निकल स्टाफ है, जो चीजों को देखता है. मेरी टीम में 20 लोग हैं. स्टेट के लेवल पर एक दो लोग होते हैं. सोशल मीडिया में आपको बस इतना ही निवेश करने की जरूरत है. ये बेस्ट इनवेस्टमेंट है बीजेपी का. इसकी फंडिंग लोगों की मदद से होती है.
अंकितः हमारे यहां पेड लोग तो जीरो हैं.

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सवालः सोशल मीडिया पर समर्थक दूसरों को गालियां क्यों देते हैं?
अरविंदः अंकित बताएं ये प्रधानमंत्री के लिए असंसदीय भाषा का प्रयोग क्यों करते हैं. लाखों विचार आ रहे हैं. ज्यादातर कंस्ट्रक्टिव हैं. मगर एक दो मामूली गलतियों पर बहस होती है. ट्रोलिंग इस मीडिया के स्वभाव का हिस्सा है. लोग जब किसी विचार से असहमत होते हैं, तो पिल पड़ते हैं. मगर ट्रोलिंग से निपटने के लिए ब्लॉक करने का भी विकल्प है. ऐसा करते नहीं और असहमति या गाली के स्वर सजाए घूमते हैं.
अंकित लालः ट्रोलिंग की दिक्कत तो है. और सिर्फ विरोधियों ही नहीं कई बार समर्थकों से ही जूझना पड़ता है. मसलन, जब कुमार विश्वास ने कहा, अगर पीएम मोदी मुझे किसी कार्यक्रम में बुलाते हैं तो मैं जाऊंगा. आप सपोर्टरों ने इस पर उनकी लानत मलानत की. ये भी गलत था. अगर राहुल गांधी ये शो देख रहे हैं. और आपसे पूछते हैं कि मैं कैसे सोशल मीडिया पर आऊं. तो आप क्या सलाह देंगे.
अरविंदः राहुल ये शो नहीं देख रहे हैं. वह तो किसी मजेदार जगह पर छुट्टी मना रहे हैं. उन्हें वहीं बने रहना चाहिए.
अंकितः राहुल गांधी को कभी भी ट्विटर पर नहीं आना चाहिए. नेवर ऐवर.

सवालः आम चुनाव में बीजेपी ने सोशल मीडिया पर सबको पछाड़ दिया. मगर दिल्ली चुनाव में आप अंकित से कैसे पिछड़ गए अरविंद. आपकी फॉलोइंग ज्यादा थी. मगर केजरीवाल किरण बेदी पर भारी पड़े?
अरविंदः पिछले 15 महीनों में 12 चुनाव हुए. हमने 9 जीते. हां हम एक लीग मैच हारे हैं. मगर फाइनल तो हम ही जीते हैं. मैंने पहले भी कहा. आपका फैन बेस आजाद है. अपनी च्वाइस के लिए स्वतंत्र है. फैन बॉयज, ट्रोल्स, इन्हें मैं एस्पिरेशनल इंडिया कहता हूं. ये सोशल मीडिया यूजर्स कंटेंट की समझ रखते हैं. वे बंधुआ नहीं हैं. दिल्ली चुनाव इसका अच्छा उदाहरण है. यहां 70 फीसदी तक सोशल मीडिया पेनिट्रेशन है. उन्होंने लोकसभा चुनाव में हमें एकतरफा जीत दी. विधानसभा में हम हारे. मगर हार के लिए सोशल मीडिया कैंपेन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

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सवालः पीएम का ट्विटर हैंडल कौन चलाता है?
अरविंदः प्रधानमंत्री अपना निजी अकाउंट खुद हैंडल करते हैं. पीएमओ का हैंडल ऑफिस से हैंडल होता है. पीएम इस माध्यम को समझते हैं. दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं उनके फॉलोअर. वह उन्हें तकनीक की जबरदस्त समझ है. पिछले दिनों का वाकया है. एक समिट में वह आईटी प्रफेशनल से बोले, मैं साउंड क्लाउड पर हूं. आप वहां भी मेरी स्पीच सुन सकते हैं. ये सुनते ही कई आईटी के ही लोग गूगल करने लगे इस टर्म को. पीएम की इस समझ को कम करके मत आंकिए.

सवालः हैशटैग कैसे पॉपुलेट करें?
अरविंदः सत्य बोलिए. सही कंटेंट दीजिए. मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता. कंटेंट इज किंग ऑन सोशल मीडिया. इसके लिए बहुत सारे टूल्स और टेक्नॉलजी है. हर किस्म के मीडिया को डिजिटल पर सबसे ज्यादा फोकस करना चाहिए. नहीं करेंगे तो कांग्रेस जैसा हाल होगा. वो इस मीडिया पर मौजूद लोगों को नकारते थे.

सवाल: सोशल मीडिया से क्या चुनाव प्रभावित होते हैं?
अंकितः अब सोशल मीडिया की बातें सिर्फ वहीं तक सीमित नहीं रहतीं. एक युवा ने अगर व्हाट्सएप पर कुछ पढ़ा तो वह अपने ड्राइंग रूम में मम्मी पापा से बात करते वक्त उसका जिक्र करता है. दिल्ली चुनाव ने इस मीडिया की ताकत फिर साबित कर दी.

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सवाल: मोदी की जीत में सोशल मीडिया का क्या योगदान रहा?
अरविंदः 2014 चुनाव में 116 सीटों पर सोशल मीडिया का बड़ा असर था. हमने इसे पिन प्वाइंट किया और इस पर काम किया. उसमें से 113 सीटें हमने जीतीं. अगले चुनाव तक सोशल मीडिया इम्पैक्ट वाली सीटें तीन गुनी हो जाएंगी. 2019 के चुनाव में एक बड़ी चुनावी जंग इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लड़ी जाएगी. उसका स्वरूप क्या होगा, किस तरह की लड़ाई होगी. उसके बारे में अभी मैं अनुमान नहीं लगा सकता.

सवाल: आपके हिसाब से कौन से तीन राजनेता सोशल मीडिया का अच्छा इस्तेमाल करते हैं. इसमें आप अपना और अपने सुप्रीम लीडर का नाम नहीं ले सकते?
अरविंदः देखिए मैं तो प्रधानमंत्री मोदी का ही नाम लेता. मगर आपने सवाल में उस विकल्प को ही खत्म कर दिया. तो मैं पहले नंबर पर अरविंद केजरीवाल को रखूंगा. दूसरे पर सुब्रमण्यम स्वामी, तीसरे स्पॉट के लिए शशि थरूर और उमर अब्दुल्ला के बीच टाई होगा.
अंकितः शशि थरूर सबसे पहले, मोदी से भी पहले, क्योंकि उन्होंने सबसे पहले इस माध्यम को समझा और अपनाया. अपने कैटल क्लास रिमार्क के बावजूद. दूसरे नंबर पर हमारे प्रधानमंत्री. तीसरे पर उमर अब्दुल्ला या दिग्विजय सिंह. हालांकि दिग्गी को बहुत हेल्प की जरूरत है. उन्हें संभलकर बोलना होगा.

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सवाल: क्या सोशल मीडिया मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए खतरा है?
अरविंदः हां. सोशल मीडिया लीड कर रहा है. ये न्यूज वायर बन गया है. न्यूज देखने वाले ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं. ज्यादातर मामलों में वे सोशल मीडिया पर खबर पहले पढ़ रहे हैं. इसी की वजह से न्यूज चैनल डिस्कशन मोड में ज्यादा आ गए हैं. वे विचार बनाने में मदद कर रहे हैं. ट्विटर अपने आप को सिर्फ सोशल मीडिया नहीं कहता. ये अपने को न्यूज वायर ऑफ द वर्ल्ड कहता है.
अंकितः मैं इससे असहमत हूं. सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडियो दोनों का संयोजन होगा. अब इस इवेंट को ही देखिए. अगर इसे सोशल मीडिया पर पॉपुलेट नहीं किया जाएगा. तो आपका ही नुकसान होगा.

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