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कॉन्क्लेव 2016: PAK प्रो. याकूब खान बोले- इतिहास की किताबें ही सबकुछ तय नहीं करतीं

इस दौरान प्रोफेसर याकूब खान बंगश ने कहा, 'इतिहास पढ़ाना इस मायने में चुनौतिपूर्ण है. यह न सिर्फ आपका इतिहास है, बल्कि‍ यह आपके भविष्य पर असर डालता है. '

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कॉन्क्लेव के दौरान प्रद्युम्न जे
कॉन्क्लेव के दौरान प्रद्युम्न जे

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इंडिया टुडे कॉन्क्लेव-2016 में पहले दिन चर्चा इतिहास को लेकर भी हुई. गुरुवार को चर्चा इस मुद्दे पर हुई कि युवाओं को इतिहास कैसे पढ़ाया जाए ताकि दोनों मुल्कों में शांति कायम हो. बसंत वैली स्कूल के शिक्षक प्रद्युम्न जे और पाकिस्तान स्थित पंजाब की आईटी यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर याकूब खान बंगश ने दोनों मुल्कों के दरम्यान इतिहास के मायनों पर बात की.

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इस दौरान प्रोफेसर याकूब खान बंगश ने कहा, 'इतिहास पढ़ाना इस मायने में चुनौतिपूर्ण है. यह न सिर्फ आपका इतिहास है, बल्कि‍ यह आपके भविष्य पर असर डालता है. मैं पहले पढ़ाता था कि भारतीय राष्ट्रवाद समावेशी है, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा.'

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क्या हमारी किताबें युवा मानसिकता को प्रभावित कर रही हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रद्युम्न जे ने कहा, 'यह बहुत हद तक शि‍क्षकों पर भी निर्भर करता है कि वह छात्रों को कैसे पढ़ाते हैं. कई स्कूल और यूनिवर्सिटी शि‍क्षकों को अपने अनुसार पढ़ाने की छूट देते हैं. लेकिन जरूरत है कि शि‍क्षक क्लारूम से अपनी खुद की राजनीति को दूर रखें. यह जरूरी है. आपको चाहिए कि आप छात्र को एक मंच दीजिए, उसे खुद विचार करने दीजिए.'

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माता-पिता के अनुभव, समाज भी युवाओं को प्रभावित करते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए याकूब खान बंगश ने कहा, 'दोनों मुल्कों के टेक्स्ट बुक में अंतर एक समस्या है, लेकिन सब कुछ इसी वजह से नहीं है. बहुत फर्क पड़ता है कि शि‍क्षक आपको क्या पढ़ाते हैं और कैसे पढ़ाते हैं. दूसरी बात कि मीडिया का बहुत बड़ा रोल है. मीडिया किसी बात को कैसे दिखाता है. क्योंकि युवा यहां चीजों को देखते हैं.'

'शिक्षक छात्रों को खुद सोचने दें'
प्रद्युम्न खुद जेएनयू के पूर्व छात्र हैं. वह कहते हैं, 'मुझे दुख है बीते दिनों जो कुछ कैंपस में हुआ. लेकिन छात्र के मन में सवाल आते हैं. समस्या ये है कि शि‍क्षक को चाहिए कि वह छात्र से कहे कि सवालों का जवाब चाहिए तो ये किताब पढ़ो, ये भी पढ़ो और इस विचार को भी पढ़ो. लेकिन दिक्कत यह है कि आप यह बताने लगते हैं कि यह सही है और यह गलत है.' वह आगे कहते हैं, 'अगर कोई सवाल आता है और शि‍क्षक को जवाब पता है तो यह बातचीत आगे बढ़ती है. लेकिन अगर आपके पास जवाब नहीं है तो आपको चाहिए कि आप कहें कि यह किताब यह कहती है, वो किताब यह कहती है. इस ओर पढ़ना और समझना अभी बाकी है. आप अपने विचार मत थोपिए.'

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टेक्स्टबुक: पाकिस्तान बनाम भारत
इस सत्र के दौरान एक खास बात यह भी रही कि दोनों मुल्कों के टेक्स्टबुक के कुछ हिस्सों को बारी-बारी पढ़ा गया. इस दौरान खिलाफत आंदोलन के बारे में पाकिस्तान में 12वीं के किताब के अंश को पढ़ते हुए याकूब खान बंगश ने बताया कि कैसे महात्मा गांधी को इसमें विलेन बनाया गया है. उन्होंने पढ़ा, 'गांधी के पास मौका था कि वह मुसलमानों को अपनी ओर करें. मुस्लिम का समर्थन प्राप्त कर गांधी चाहते थे कि वे उनके आंदोलन में सहायक हों. गांधी के कहने पर लाखों मुसलमान ने सब कुछ बेच दिया, लेकिन इसके बाद मुसलमानों को गांधी का असली चेहरा दिखा. गांधी ने बिना मुसलमान नेताओं से पूछे या बात किए आंदोलन को खत्म कर दिया, जिसके कारण लोगों में बहुत गुस्सा बढ़ा.'

सत्र का संचालन कर रहे इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने भारतीय स्कूलों की किताब से कुछ हिस्सों को पढ़ा. उन्होंने 1965 के युद्ध की चर्चा करते हुए पढ़ा, 'इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई, लेकिन तब अमेरिका ने बीच बचाव किया और युद्ध समाप्त हुआ. हालांकि इस युद्ध के कारण दोनों ओर बड़े स्तर पर जानमाल की हानि हुई.'

इसी युद्ध के बारे में पाकिस्तानी किताब को पढ़ते हुए उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान की किताब का कहना है- पाकिस्तान की सेना ने भारत के कई इलाकों में कब्जा किया और भारत जब हारने की स्थिति में आ गया तो उसने अमेरिका के बीच बचाव की मांग की और सीजफायर करवाया.'

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