इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2019 के पहले दिन शुक्रवार को 'कनफ्लिक्ट जोनः असमः हूज होम इज दिस? द ऐगनी ऑफ इलीगल एक्सिटेंस' विषय पर आयोजित चर्चा में गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंदन कुमार गोस्वामी भी शामिल हुए जिनका नाम एनआरसी में शामिल नहीं हो सका. उन्होंने कॉन्क्लेव में बताया कि कैसे और किस तरह से उनका नाम एनआरसी की लिस्ट से गायब हो गया और उनकी नागरिकता चली गई. इसके अलावा बिजनेसमैन प्रणब सेन भी कॉन्क्लेव में शामिल हुए जिनको एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा था.
एनआरसी में नाम नहीं होने की वजह से अपनी नागरिकता गंवाने वाले गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंदन कुमार गोस्वामी ने बताया कि न सिर्फ मैं बल्कि 2 लाख ऐसे लोग हैं जो असम के रहने वाले मूल लोग हैं लेकिन उनका नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं था. इसके पीछे तकनीकी कारण थे. सॉफ्टवेयर से जुड़े मामले थे. उन्होंने कहा कि आवेदन के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया अपनाई गई. लेकिन सिस्टम की लापरवाही के कारण मेरा आवेदन उन तक नहीं पहुंच पाया. एनआरसी लिस्ट में नाम नहीं आने पर मैंने अधिकारियों से बात की. इस पर अधिकारियों ने कहा कि कोई बात नहीं यह पहली लिस्ट है. दूसरी लिस्ट आनी है उसमें नाम आ सकता है.
गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंदन कुमार गोस्वामी
गोस्वामी ने कहा कि अधिकारियों ने बताया कि अगली लिस्ट में नाम आ जाएगा. आप तो असम के नागरिक हो. आप यहां की विरासत हो. दूसरी लिस्ट के लिए इंतजार किया और इस बार भी मेरा नाम नहीं आया. इसके बाद एनआरसी सेंटर गया. वहां जाकर पता चला कि उसके पास ऐसा कोई आंकड़ा ही नहीं है कि मैंने कोई आवेदन किया है. इसके बाद मैंने एनएसके में फिर से आवेदन किया, लेकिन मुझे दूसरे एनएसके सेंटर भेज दिया गया. वहां पर कहा गया कि आपने ऑनलाइन आवेदन किया है, इसलिए आपको दिक्कत हो रही है. इस बारे में एनआरसी के अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन उन्होंने ठोस जवाब नहीं दिया. उनका कहना था कि आपका आवेदन कहीं खो गया है. एनआरसी को लेकर हमें ठीक से समझाया गया. यह पूरी तरह से नौकरशाही और लालफीताशाही की लापरवाही का नतीज रहा. उन्होंने कहा कि हमने अपने विरासत के बारे में विस्तार से जानाकरी दी, लेकिन कुछ नहीं हुआ.
घुसपैठियों के अत्याचार के कारण जगह छोड़ीः पाठक
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2019 में प्रोफेसर चंदन कुमार गोस्वामी के अलावा श्रीमंत शंकरदेव युवा मंच के अध्यक्ष रिजू पाठक ने बताया कि घुसपैठियों के कारण उन्हें अपनी धरती से पलायन करना पड़ा. रिजू पाठक कि बरपिता जिले में उनका मठ है और पहले यहां पर 1200 हिंदू लोग रहते थे. लेकिन धीरे-धीरे इस जगह पर घुसपैठिए आते चले गए. यहां पर कब्जा जमा लिया. उन लोगों ने मठ के लोगों के खिलाफ खूब अत्याचार किया जिस कारण हमें यहां से हटना पड़ा. उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. 2005 में हमें अपनी जगह को छोड़ना पड़ा.
रिजू पाठक
उन्होंने कहा कि 1983 में 5 से 7 हजार लोगों ने हम पर आक्रमण किया और घर में घुसकर हमें पीटा. 22 लड़के मिलकर एक लड़की को उठाकर ले गए और महीनेभर अपने साथ रखा और अत्याचार किया. कई तरह का अत्याचार उन लोगों ने किया. मठ की जमीन हमें छोड़नी पड़ी.
लेखिका शाहीन अमहद
यूनिवर्सिटी छात्र और लेखिका शाहीन अमहद नागरिकता संशोधन बिल पर डरती हैं. उन्होंने कहा कि हम असम के मूल मुस्लिम समुदाय से आते हैं. यहां पर पहचान की लड़ाई है. हम असम की कुल आबादी की 20 फीसदी से भी कम हैं. भारत मूल लोगों की सुरक्षा के बारे में क्लीयर नहीं है.
इसी तरह बिजनेसमैन और रिसर्च फॉक्स कन्सल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के सहसंस्थापक प्रणब सेन ने भी एनआरसी से हुई दिक्कतों के बारे में बताया. प्रणब सेन ने कहा कि पिछले कुछ महीनों तक उनका जीवन बेहद कष्टकारी रहा. मैं बंगाली हूं और असम पैदा हुआ. पता नहीं आगे मेरे नाम का क्या होगा. मेरे पिता बंगाल में पैदा हुए जबकि मेरी मां भी बंगाली है और उन्होंने असम साहित्य भाषा में एमए किया. मेरी मां ने कहा कि तुम्हें असमिया भाषा सीखनी चाहिए, यह हमारी मातृभाषा है. नाम और सरनेम से मैं बंगाली हूं, लेकिन वास्तव में असमिया हूं.
सास और पत्नी को करना पड़ा संघर्षः प्रणब सेन
उन्होंने बताया कि एनआरसी में नाम शामिल कराने को लेकर उन्हें बेहद कष्ट का सामना करना पड़ा. मेरी सास और पत्नी दोनों ही असम से हैं, लेकिन सास का मिडल नेम मिसिंग था तो उन्हें इसके लिए कोर्ट जाना पड़ा. 2-3 बार कोर्ट में जाना पड़ा. फिर जाकर उन्हें एनआरसी में जगह मिली. इसी दौरान मेरी पत्नी गर्भवती थी और उसे भी नाम शामिल कराने के लिए कोर्ट में जाना पड़ा. एक सेंटर से दूसरे सेंटर आने-जाने में 16-17 घंटे लगते थे. इस दौरान जीवन बेहद प्रभावित हुआ. बिजनेस पर असर पड़ रहा था.
इंडिया टुडे ग्रुप के लोकप्रिय और चर्चित कार्यक्रम 'इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2019' का आज शुक्रवार को कोलकाता के ओबेरॉय ग्रैंड होटल में आगाज हो गया. दो दिनों तक चलने वाले इस कॉन्क्लेव में अलग-अलग क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां शामिल हो रही हैं. इस कॉन्क्लेव में देश की अर्थव्यवस्था के हालात पर चर्चा की जाएगी. साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों की कला, संस्कृति, राजनीति पर भी चर्चा की जाएगी. कॉन्क्लेव में एनआरसी और सिटीजनशिप बिल पर चर्चा हुई.
अक्टूबर का महीना रहा बेहद खास: अरुण पुरी
'इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ईस्ट 2019' के स्वागत भाषण में इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा, 'खासकर अक्टूबर भारत और कोलकाता वालों के लिए बेहद खास महीना साबित हुआ है. अभिजीत बनर्जी उन कुछ चुनिंदा भारतीयों में शामिल हुए जिनको नोबेल पुरस्कार हासिल हुआ और मैं यह भी कहना चाहूंगा कि वह यह पुरस्कार हासिल करने वाले तीन बंगालियों में से एक हैं. साथ ही इसी महीने में भारतीय क्रिकेट के दादा सौरव गांगुली बीसीसीआई के 39वें प्रेसिडेंट भी बने.
इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन और एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा कि पश्चिम बंगाल आज इतिहास के रोचक दौर से गुजर रहा है. जैसा कि मैंने गौर किया इंडिया टुडे के पिछले महीने हुए स्टेट्स ऑफ द स्टेट्स सर्वे में पश्चिम बंगाल का स्थान नीचे रहा था, पिछले कई सालों के खराब प्रदर्शन की वजह से देश के 20 बेहतरीन प्रदर्शन वाले राज्यों में उसका स्थान 12वां है, लेकिन उसने इन 10 कैटेगरी में सबसे ज्यादा सुधार किया है- समग्र विकास, अर्थव्यवस्था, शासन, कानून-व्यवस्था, उद्ममिता, सफाई, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि. उन्होंने आगे कहा कि जब बंगाल आगे बढ़ता है तो पूरा क्षेत्र आगे बढ़ता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि बंगाल फिर से अपना वह खास दर्जा हासिल करेगा जो पिछली सदी में रहा है. 11 पड़ोसी राज्यों के लिए प्रवेश द्वारा और तरक्की का इंजन. पूर्वोत्तर के आठ राज्यों का भारत के जीडीपी में हिस्सा 2.8 फीसदी है.
कॉन्क्लेव में बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली भी शामिल हुए. सौरव गांगुली ने कहा कि भारतीय क्रिकेट टीम ने पिछले कुछ सालों में बेहद शानदार प्रदर्शन किया है. क्रिकेट में भारत दुनिया का पावर हाउस है. टीम इंडिया की इस कामयाबी पर गांगुली का कहना है कि इसके पीछे क्रिकेट प्रशासन की काफी बड़ी भूमिका रही है.