फरवरी की 19 तारीख. साल 1981. तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के मीनाक्षीपुरम गांव के लगभग 150 दलित परिवारों ने इस क्षेत्र के दबदबे वाले थेवर समुदाय के तानों और व्यंग्य से तंग आकर इस्लाम कबूल कर लिया. इस घटना के बाद दक्षिणपंथी हिंदू समूहों ने धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उदार नेता ने तमिलनाडु जाकर इन परिवारों से दोबारा हिंदू धर्म अंगीकार करने का अनुरोध किया. री-कनवर्जन यानी पुनर्धर्मांतरण/परावर्तन के प्रयास अधिक नहीं तो कम से कम इतने पुराने तो हैं ही.
असमानता है धर्मांतरण की वजह
समाज विज्ञानियों का कहना है कि अपना धर्म छोड़ दूसरा धर्म अपनाने की मुख्य वजह समाज में व्याप्त असमानता है. हाशिए पर पहुंचा दिए गए लोग दबदबे या ऊंची हैसियत वाली जाति और समुदाय से अपमानित और उपेक्षित महसूस करने पर यह कदम उठाते हैं. आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता मनमोहन वैद्य के मुताबिक, ऊंची जाति के हिंदुओं और समाज के कमजोर तबके के बीच संपर्कों और संवाद की कमी की वजह से दूसरे धर्मों के नेता उनकी भावनाओं का शोषण कर उन्हें धर्मांतरण को उकसाते हैं. भारी संख्या में ऐसे धर्मांतरण को रोकने के लिए दक्षिणपंथी संगठन पुनर्धर्मांतरण करवाते हैं. मध्य प्रदेश, ओडिसा, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जबरन या धोखे से धर्मांतरण रोकने के लिए कानून हैं.
धर्मांतरण रोक के लिए कानून
संसदीय मामलों के मंत्री एम. वेंकैया नायडू अब एक राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन विपक्ष के नेता अब इसे अपने हिंदुत्व ब्रांड को पूरे देश पर थोपने का हथकंडा बता रहे हैं. कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहना है, 'देश का हर नागरिक अपनी पसंद के धर्म को अपनाने के लिए स्वतंत्र है. यह उसका निजी मामला होता है. असल मामला जबरन धर्म परिवर्तन का है जिसे बीजेपी दूसरी दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रही है.' समाज विज्ञानी दीपांकर गुप्ता का भी मानना है कि धर्मांतरण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना समस्या का समाधान नहीं है. वे कहते हैं, 'हमें जबरन धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. यह परिवर्तन सतही या दिखावटी भी होता है क्योंकि लोग प्राय: अपने मूल धर्म में लौट आते हैं.'
आरोप-प्रत्यारोप का खेल
हालांकि हिंदू संगठनों का आरोप है कि ईसाई मिशनरी गरीब इलाकों में निचले तबके के हिंदुओं को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रलोभन देकर जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं. दूसरी ओर ईसाई समूहों का दावा है कि हाशिए पर पहुंच हिंदू खुद ही अपना धर्म बदल रहे हैं. उनके मुताबिक हिंदू समूह अपने पुन:धर्मांतरण के प्रयासों के जरिए इन लोगों को सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाएं और अन्य तरह के प्रलोभन दे रहे हैं, इस तरह तो यह भी जबरन धर्म परिवर्तन ही हुआ.
हालांकि यह दावों और प्रतिदावों का किस्सा है, लेकिन हिंदू संगठनों को तब आंकड़ों का ठोस आधार मिल गया जब 25 जून 2013 को केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने राज्य विधायिका को सूचित किया कि 2006 से 2012 के बीच 7,713 लोगों ने इस्लाम अपना लिया जबकि इस अवधि में हिंदू धर्म में लौटने वालों की संख्या सिर्फ 2,803 थी. इस दौरान कितने लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया, इसका आंकड़ा उनके पास उपलब्ध नहीं था. जबरन धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने के कानून का इतिहास ब्रिटिश काल में ढूंढा जा सकता है. तब कई रियासतों ने धर्मांतरण विरोधी कानून तैयार किया था.
भगवा ब्रिगेड को बढ़त
भगवा ब्रिगेड ने घर वापसी का नारा गढ़कर बढ़त तो हासिल कर ही ली है क्योंकि पुन: धर्मांतरण किसी भी धर्मांतरण विरोधी कानून के दायरे में नहीं आता है. पुन: धर्मांतरण का अर्थ है, पहले की गई गलती को सुधारना. इसे एक तरह की वैधता भी प्राप्त है. इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो अर्पिता आनंद का कहना है, 'कानून धर्म परिवर्तन पर तो प्रतिबंध लगाता है, लेकिन निचले तबके के हिंदुओं के फिर से अपने धर्म में लौटने पर प्रतिबंध नहीं है.' दीपांकर गुप्ता 'घर वापसी’ की अवधारणा को भी खारिज कर देते हैं. उनका तर्क है कि पांचवीं पीढ़ी के मुसलमानों के लिए इस्लाम उनके घर जैसा है. यह तो ऐसा ही है जैसे कोई श्वेत अमेरिकी अश्वेत अमेरिकी से अफ्रीका लौटने को कहे, जबकि अश्वेत अमेरिकी कई पीढिय़ों से अमेरिका में रह रहे हैं और अब यह उनके घर जैसा है.
सवाल यह है कि घर वापसी के नाम पर चौथी या पांचवीं पीढ़ी के मुसलमानों या ईसाइयों का फिर से धर्म बदलना सिर्फ आंकड़े बढ़ाने का प्रयास भर तो नहीं? यह तो हिंदी भाषी प्रदेशों— बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा.