देश के कुख्यात हथियार सौदागार के खिलाफ आखिर में पूरी जांच एक ई-मेल आईडी पर आकर टिक गई है. उसके खिलाफ डिजिटल सबूत जुटाने में जांच एजेंसियों को पसीना आ गया है. कुख्यात हथियार सौदागर अभिषेक वर्मा के खिलाफ जांच दक्षिण दिल्ली के फार्महाउसों में होने वाली और अय्याशी की हदों को छूने वाली पार्टियों से शुरू हुई थी. अधिकारियों ने जब इनमें मिले सुरागों का पीछा किया, तो वे ब्लैकमेल के लिए छांटी गई नेताओं की शर्मनाक तस्वीरों, टैक्स चोरों की विदेशी गुप्त खातों और दुनिया भर में बनाई गई फर्जी कंपनियों से होते हुए एहतियात से छिपाकर रखे गए दस्तावेजों के एक जखीरे तक पहुंचे. इसमें सशस्त्र सेनाओं के कुछ सबसे महफूज राज ब्योरेवार दर्ज थे. जांच एजेंसियों ने अभिषेक वर्मा के खिलाफ तकरीबन आधा दर्जन मामलों के बिखरे हुए तार कड़ी मेहनत से एक-दूसरे से जोड़े.
वर्मा वही शख्स है, जो 2006 के नौसेना वार रूम लीक मामले के दाग से चमत्कारी तरीके से उबरकर साउथ ब्लॉक के प्रमुख 'मैनेजर’ के तौर पर दोबारा सामने आया था. लेकिन उसके एक सहयोगी (एस्क्रो फंड मैनेजर) सी. एडमंड्स एलन ने 2012 में न्यूयॉर्क में जब नए सबूत पेश किए तो वह फिर पकड़ में आया. उसके खिलाफ चल रहे मामलों की जांच अंतिम सिरे पर पहुंचने ही वाली थी कि जांच एजेंसियां एक डिजिटल अवरोध से टकराकर लडख़ड़ाती दिखाई दे रही हैं.
सबूतों की बुनियाद
वर्मा के खिलाफ सीबीआई को मिले ज्यादातर सबूत एक बुनियाद पर टिके हैं. वह बुनियाद यह है कि उसने एलन को कई दस्तावेज नियमित रूप से ई-मेल से भेजे थे, जिनमें बैंक खातों, व्यावसायिक सौदों और गोपनीय दस्तावेजों के ब्योरे दर्ज थे. यही वे दस्तावेज थे, जो एलन ने 2012 में सबूत के तौर पर सौंपे थे. इसी के बाद जांच का सिलसिला शुरू हुआ था. लेकिन अब सीबीआई ने दावा किया है कि वह यह साबित नहीं कर सकती कि इनमें से एक ई-मेल आईडी evaherzigova@gmail.com का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ वर्मा ही करता था.
अदालत में पेश रिपोर्ट कहती है, 'जांच के दौरान यह साबित नहीं किया जा सका कि इस ई-मेल आईडी का इस्तेमाल पूरी तरह से सिर्फ वर्मा ही करता था.' सीबीआई ने जिस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है उसमें वर्मा पर आरोप है कि उसने 2009 के नौसेना वार रूम लीक मामले में उसे क्लीन चिट देने वाली सीबीआई अफसर की एक कथित जाली चिट्ठी तैयार की. सीबीआई की रिपोर्ट हालांकि अभी अदालत ने मंजूर नहीं की है. इसमें जांच को बंद करने की वजहें गिनाई गई हैं. इनमें एक यह वजह भी शामिल है कि जाली चिट्ठी का कोई प्रमाणित लाभार्थी नहीं है.
एक और अहम बात यह कही गई है कि ई-मेल आईडी का वर्मा के साथ सीधा रिश्ता साबित नहीं किया जा सका. अगर अदालत इस रिपोर्ट को मंजूर कर लेती है, तो यह वर्मा के खिलाफ सरकारी गोपनीयता कानून (ओएसए) के तहत चल रहे सबसे संवेदनशील मामलों में खुद सीबीआई के रुख के खिलाफ जा सकती है क्योंकि ये मामले इसी आधार पर टिके हैं कि वर्मा ने इस ई-मेल आईडी से संवेदनशील दस्तावेज विदेश भेजे थे.
डिजिटल सबूत
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के हाथों में वर्मा के खिलाफ जो सबूत हैं उनमें से ज्यादातर डिजिटल हैं. ये सबूत दो साल पहले इस हथियार सौदागर से झगड़ा होने के बाद एलन ने दिए थे. अगर जांच एजेंसियां यह साबित नहीं कर पाती हैं कि वर्मा ने ये दस्तावेज एलन को ई-मेल से भेजे थे, तो ये मामले मुंह के बल गिर सकते हैं. ई-मेल आईडी के आईपी एड्रेस का पीछा करते हुए जांच एजेंसियां वर्मा के फार्महाउस पहुंची, जहां एकमात्र किरायेदार के तौर पर उसी का नाम दर्ज है.
इसके बावजूद सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट में कहा है कि वह निर्णायक तौर पर यह साबित नहीं कर सकती कि वर्मा ने ही दस्तावेज भेजने के लिए इस ई-मेल आईडी का इस्तेमाल किया था. इस बारे में एलन ने इंडिया टुडे से कहा, 'सीबीआई के पत्र की कथित जालसाजी के मामले में अदालत अगर यह क्लोजर रिपोर्ट मंजूर कर लेती है, तो भारत की कई दूसरी अदालतों में उसके खिलाफ चल रहे सीबीआई और ईडी के सभी मामलों के कानूनी तौर पर खारिज होने का रास्ता साफ हो जाएगा.'