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SOS कॉन्क्लेव में उठे सवाल, मिथिलांचल में एक भी IIT, IIM क्यों नहीं?

अगर मिथिलांचल को आगे ले जाना है तो महिलाओं को शिक्षा में बराबरी का हक देना होगा.

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जद यू नेता संजय झा [फोटो- इंडिया टुडे]
जद यू नेता संजय झा [फोटो- इंडिया टुडे]

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पढ़ाई मिथिलांचल के जीन में है, लेकिन अपनी विद्वता के लिए मशहूर मिथिलांचल में एक भी आईआईटी , आईआईएम क्यों नहीं है. पूसा इंस्टिट्यूट भी 2 साल पहले आया है. यह सवाल उठे इंडिया टुडे की स्टेट ऑफ स्टेट में जो कि शनिवार को पटना में आयोजित किया गया.

पैनल में शामिल बिहार सीएम के राजनीतिक सलाहकार संजय झा ने कहा कि इस इलाके में पढ़ने वाले लोग हमेशा से रहे हैं. लेकिन आज तक इस इलाके में कोई बड़ा इंस्टिट्यूट नहीं खुला. हमारी परंपरा समृद्द है लेकिन उस परंपरा को बचाए रखने के लिए प्रयास करने होंगे. यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है कोई इंडस्ट्री भी नहीं लगाई गई, आज हालात ऐसे बन गए हैं कि यहां का आदमी धान काटने के लिए पंजाब जाता है.

संजय झा ने कहा कि इस इलाके का उत्थान करना है तो महिलाओं को शिक्षा में  बराबरी का हक देना होगा. बिहार सरकार ने लड़कियों को साइकिल दी तो उसने समाज को व्यापक स्तर पर बदला. पहले पटना में लड़कियां साइकिल नहीं चलाती थीं अब गांव में भी चलाने लगी हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता खराब होने से ही पलायन शुरू होता है. उन्होंने कहा कि यहीं से युवा पढ़ने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी या जेएनयू जाते हैं. अगर उन्हें यहीं इंस्टिट्यूट उपलब्ध करा दिए जांएं तो पलायन रुक सकता है.

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राज्यपाल के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह ने कहा कि सबसे पहले हमें यह पता लगाना होगा कि हमारे पास संसाधन क्या हैं. उन्होंने बताया कि इलाके में पानी प्रचुर मात्रा में है, जमीन ऊपजाऊ है लोग बुद्धिमान हैं, लेकिन संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल नहीं हुआ है. बिहार में न तो हरित क्रांति पहुंच पाई है और न ही चकबंदी हुई है. हमें जितनी उपज मिलनी चाहिए नहीं मिल रही है. ऐसे में पलायन कैसे रुकेगा. उन्होंने कहा कि अगर हम भ्रष्टाचार रोकने में सफल रहे, जमीन पर पूरी उपज मिलने लगेगी तो पलायन अने आप रुक जाएगा.

इतिहासकार रत्नेश्वर मिश्रा ने कहा कि मिथिलांचल को पलायन की दोहरी मार पड़ रही है. 12वीं सदी में ही विद्वान धन और सम्मान के लिए मिथिलांचल छोड़कर जाने लगे थे. यहां के लोग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कश्मीर और सुदूर दक्षिण में जाकर जज, मंत्री और दूसरे अहम पदों पर पहुंचे. इसलिए यहां विद्वता की परंपरा टूट गई. मुसीबतों का सामना करने वाले, इसके लिए राह दिखाने वाले लोग ही नहीं रहे. उन्होंने कहा कि पलायन का दूसरा नुकसान यह हुआ कि पलायन के बाद यहां लौटे लोगों ने या उनके भेजे पैसों से बाहर की बुराइयां भी आईं. उन्होंने कहा कि पहले यहां के लोग शराब ज्यादा नहीं पीते थे, लेकिन अब बच्चे भी बेहिचक ऐसा करने लगे हैं. उन्होंने इसपर चिंता जाहिर की.

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संजय झा ने बिहार में बीजेपी के साथ सीट बंटवारे पर कहा कि केवल दो सीट जीतने पर भी जेडीयू का वोट शेयर 16 फीसदी था, भाजपा भी यह बात जानती है. इसलिए दोनों दलों को बराबर सीटें मिलीं.

विवेक कुमार ने मिथिलांचल के विकास के लिए भविष्य की योजना बनाने पर कहा कि आधारभूत विकास हो गया है और अब इसका बेहतरी से समायोजन करने  की जरूरत है. उन्होंने उदाहरण दिया कि राज्य में बिजली तो बढ़ गई है लेकिन इसके तार खेतों से जा रहे हैं, जिससे कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन का नुकसान हो रहा है.

रात्नेश्वर मिश्रा ने मिथिलांचल से आयरलैंड की तुलना पर कहा कि हमने अभ्यास छोड़ दिया है, इसलिए हमारे यहां से प्रतिभाएं नहीं निकल रही हैं. उन्होंने कहा कि प्रतिभा अभ्यास से बनी रहती है, अगर लेखक लिखना छोड़ देगा तो लिखने में परेशानी होगी और अगर विचारक सोचना छोड़ देगा तो उसके दिमाग में विचार नहीं आएंगे.

उन्होंने आगे कहा कि हालिया समय में सारे नवाचार, सारे विचार- साम्यवाद, समाजवाद, नव उदारवाद, पोस्टमॉर्डनिजम सभी फ्रांस से आ रहे हैं. फ्रांसीसी क्रांति से ठीक पहले वहां ऐसा माहौल बन गया था. वहां क्लब और एकेडमी हुए करते थे जो मिथिलांचल से खत्म हो गया.

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