भारत और अमेरिका ने सोमवार को इस बात पर सहमति जतायी कि लश्कर ए तैयबा सहित सभी आतंकवादी तंत्रों को शिकस्त दी जानी चाहिये और पाकिस्तान से कहा गया कि वह मुंबई हमलों के षड्यंत्रकारियों को न्याय के कटघरे में लाये.
यह संयुक्त वक्तव्य अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पहली बार हुई भारत यात्रा के तहत तीन दिनों तक चले विभिन्न आधिकारिक कार्यक्रमों के समापन के मौके पर जारी हुआ है. दोनों देशों ने आतंकवादियों को पहुंचने वाली वित्तीय मदद से निपटने और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में करीबी सहयोग करने के महत्व पर जोर दिया है.
संयुक्त वक्तव्य में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और ओबामा ने दोहराया कि अफगानिस्तान में सफलता हासिल करने और क्षेत्रीय तथा वैश्विक सुरक्षा कायम करने के लिये अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के पनाहगाहों और ढ़ांचों को नेस्तनाबूद करना जरूरी है. वक्तव्य कहता है, ‘आतंकवाद के सभी स्वरूपों की निंदा करते हुए दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि लश्कर ए तैयबा सहित सभी आतंकवादी तंत्रों को शिकस्त दी जानी चाहिये. {mospagebreak}
पाकिस्तान से यह आह्वान किया जाता है कि वह नवंबर 2008 में मुंबई में हुए हमलों के षड्यंत्रकारियों को न्याय के कटघरे में लाये.’ वक्तव्य के मुताबिक, ‘जुलाई 2010 में हस्ताक्षरित आतंकवाद निरोधी पहल पर आगे बढ़ते हुए दोनों नेता (भारत के) गृह मंत्रालय और (अमेरिका के) गृह सुरक्षा विभाग के बीच एक नये गृह सुरक्षा संवाद की घोषणा करते हैं तथा परिचालनात्मक सहयोग, आतंकवाद निरोध प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और क्षमता विकास करने पर सहमत होते हैं.’
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने की भारत की लंबे समय से की जा रही मांग तथा स्थायी सदस्यता हासिल करने की उसकी चाहत का समर्थन करते हुए सिंह और ओबामा ने ‘तर्कसंगत तथा टिकाऊ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था सुनिश्चित कराने के लिये संयुक्त राष्ट्र को कुशल, प्रभावशाली और विश्वसनीय बनाने’ की वकालत की. {mospagebreak}
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ओबामा की इस बात का स्वागत किया कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर विचार कर रहा है जिसमें स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी भी शामिल है. सिंह और ओबामा ने दोहराया कि ऐसे देश जो यह चाहते हैं कि 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र शांति और सुरक्षा के अपने आधार लक्ष्यों को पूरा करे, उन्हें वैश्विक आपसी सहयोग और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना चाहिए.
बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने रेखांकित किया कि दुनिया के सभी देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का पालन करने के लिए बाध्य हैं. दोनों देशों के साझा मूल्यों और बढ़ते परस्पर हितों की पुष्टि करते हुए सिंह और ओबामा ने भारत-अमेरिका वैश्विक सामरिक साझेदारी को व्यापक बनाने पर जोर दिया.
बीते दशक में भारत-अमेरिका संबंधों में आए बदलाव की पृष्ठभूमि में दोनों नेताओं ने परस्पर सहयोग और दुनिया को सुरक्षित बनाने, उन्नत तकनीक और नवाचार, साझा समृद्धि, वैश्विक आर्थिक वृद्धि, टिकाऊ विकास, आर्थिक उन्नति और लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर दिया. {mospagebreak}
संयुक्त वक्तव्य के मुताबिक, दोनों नेताओं ने इस बात का अनुमोदन किया कि उनके साझा आदर्शों और परमाणु हथियार रहित विश्व की साझा प्रतिबद्धता उन्हें एक मजबूत साझेदारी बनाने की जिम्मेदारी देती है ताकि परमाणु अप्रसार को रोका जा सके और दुनिया को परमाणु हथियार मुक्त बनाया जा सके.
उन्होंने परमाणु हथियार रखने वाले सभी देशों के बीच सार्थक संवाद की जरूरत पर बल दिया ताकि अंतरराष्ट्रीय मामलों और सुरक्षा संधियों के तहत हथियारों की कटौती पर चुप्पी को तोड़ा जा सके और भरोसा कायम किया जा सके. उन्होंने परमाणु हथियार के इस्तेमाल नहीं करने संबंधी छह दशक पुराने अंतरराष्ट्रीय नियमों को मजबूत बनाने का भी समर्थन किया.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परस्पर सहयोग मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी जताई ताकि परमाणु हथियार या सामग्री आतंकवादियों के हाथों में न पड़े. दोनों नेताओं ने निरस्त्रीकरण सम्मेलन के लिए बातचीत शुरू करने में हुए विलंब पर खेद जताया. जहां भारत ने परमाणु बम परीक्षण के अपने एकतरफा और स्वैच्छिक अधिकार को दोहराया, वहीं अमेरिका ने सीटीबीटी के अनुमोदन और इसे जल्द प्रभावी बनाने पर जोर दिया.
वक्तव्य में कहा गया है कि सिंह और ओबामा ने अपनी इस मुलाकात को ऐतिहासिक और मील का पत्थर बताया. दोनों नेता वर्ष 2011 में अमेरिका-भारत सामरिक संवाद के अगले सत्र के लिए आशान्वित हैं.