पुलवामा में जवानों की शहादत का बदला लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर जैश के कई आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया है. वायु सेना की इस सख्त कार्रवाई पर देश में हर तरफ खुशी जताई जा रही है. वायु सेना की इस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए सेना के एडीजी पीआई ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता ट्वीट की है. इस कविता का संदेश यह है कि ज्यादा विनीत होने को दुश्मन कायर समझ लेता है.
गौरतलब है कि मंगलवार तड़के एक दर्जन मिराज विमानों ने पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान में घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर लगभग 1000 किलो विस्फोटक गिराए हैं. वायुसेना ने करीब 12 मिराज 2000 विमानों का इस्तेमाल करते हुए PoK में मौजूद आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया है.
इंडियन आर्मी के एडीपीआई ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'समर निंद्य है' का एक अंश ट्वीट किया है-
'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।'#IndianArmy#AlwaysReady pic.twitter.com/bUV1DmeNkL
— ADG PI - INDIAN ARMY (@adgpi) February 26, 2019
भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने अपने बयान में यह बताया कि हमला सफल रहा और इसमें आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर उस्ताद गौरी, कुछ ट्रेनर और आतंकवादी हमलों का प्रशिक्षण ले रहे कई आतंकवादी मारे गए हैं. हालांकि भारत सरकार की ओर से मारे गए लोगों की संख्या का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया है.
दिनकर की पूरी कविता इस प्रकार है-
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही.
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है,
पौरुष का आतक मनुज
कोमल हो कर खोता है.
क्षमा शोभती उस भुजंग को,
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या, जो दंतहीन,
विषरहित, विनीत, सरल हो?
तीन दिवस तक पथ माँगते
रघुपति सिन्धु-किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे-प्यारे.
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से,
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से.
सिन्धु देह धर "त्राहि-त्राहि"
करता आ गिरा शरण में,
चरण पूज, दासता ग्रहण की,
बँधा मूढ़ बंधन में.
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की.
सहनशील क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है,
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है.
जहाँ नहीं सामर्थ्य शोढ की,
क्षमा वहाँ निष्फल है।
गरल-घूँट पी जाने का
मिस है, वाणी का छल है.
फलक क्षमा का ओढ़ छिपाते
जो अपनी कायरता,
वे क्या जानें प्रज्वलित-प्राण
नर की पौरुष-निर्भरता?
वे क्या जाने नर में वह क्या
असहनशील अनल है,
जो लगते ही स्पर्श हृदय से
सिर तक उठता बल है?