भारतीय सेना ने दिल्ली हाई कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में विवाहित महिलाओं को सेना में जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) के पद पर नियुक्त नहीं करने के अपने फैसले को सही ठहराया है. सेना की दलील है कि दस महीने की ट्रेनिंग के दौरान किसी भी महिला या पुरूष उम्मीदवार को शादी करने की इजाजत नहीं है. सेना का मानना है कि शादीशुदा महिलाएं ट्रेनिंग के दौरान मैटरनिटी लीव मांग सकती है, जिस कारण उनकी ट्रेनिंग पूरी नहीं हो पाएगी. इस मामले में ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी में ट्रेनिंग दी जाती है.
हलफनामे में कहा गया है कि दस महीने की ट्रेनिंग के बाद महिला उम्मीदवार शादी कर सकती है. हलफनामे में कहा गया है कि शादीशुदा महिला उम्मीदवारों को इसलिए नियुक्त नहीं किया जाता है, ताकि वह अपनी ट्रेनिंग अच्छे से कम पाए. इतना ही नहीं यह शर्त पुरूषों पर भी लागू होती है. अगर वह प्री-कमीशन ट्रेनिंग से पहले अविवाहित हैं तो ट्रेनिंग के दौरान शादी नहीं कर सकते हैं, ताकि वह भी शारीरिक तौर पर ठीक रहे. हलफनामे में कहा गया है कि यह सब नियम ट्रेनिंग की जरूरतों को देखते हुए तय किए गए है. इसलिए इसे लिंगभेद करार नहीं दिया जा सकता है.
दरअसल एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि जेएजी के पद पर केवल लॉ ग्रेजुएट पुरूष (विवाहिता/अविवाहित), महिलाएं (केवल अविवाहित) की नियुक्ति की जाती है. ऐसे में यह महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन है. केवल लिंग के आधार पर नियुक्ति नहीं की जा सकती. यह गैर कानूनी है. लिहाजा कोर्ट सरकार को जेएजी पद पर विवाहित महिलाओं की भी नियुक्ति करने का आदेश जारी करें.