प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश समेत विदेश में आतंक को दुनिया के लिए खतरा बता रहे हैं. गृह मंत्री और रक्षा मंत्री कह रहे हैं कि सुरक्षा के मद्देनजर देश हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार है. लेकिन भारतीय सेना ने रक्षा पर बनी संसद की स्थाई समिति से कहा है कि सेना के पास जरूरी हथियार खरीदने के लिए भी पैसा नहीं है.
सेना ने अपनी ओर से चिंता जाहिर करते हुए यह रिपोर्ट पिछले हफ्ते समिति को सौंपी है. इसमें भारतीय सेना ने कहा है कि इस साल कम बजट आवंटन के कारण आर्मी के लिए आर्टिलरी गन, कार्बाइन, मिसाइल और एंटी टैंक सिस्टम जैसे जरूरी हथियार और उपकरण नहीं खरीदे जा सकेंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, पैसे की कमी के कारण कोस्ट गार्ड के लिए पेट्रोल वेसेल्स और सर्विलांस हेलिकॉप्टर्स भी खरीदना संभव नहीं होगा. यानी सदन से इतर सीमा पर हालात बयानों और सरकारी भरोसे से ठीक उलट हैं और सुरक्षा तो दूर निगरानी पर भी खतरा है.
बजट में हुई थी बढ़ोतरी
दिलचस्प यह है कि सेना की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब इस साल के बजट में मिलिट्री खर्च में 7.9 फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी. जबकि जीडीपी के आधार पर कुल रक्षा खर्च 1.7 फीसदी है. यह आंकड़ा 1960 के बाद सबसे कम है.
भारतीय सेना का कहना है कि रक्षा बजट को बढ़ाकर जीडीपी का 3 फीसदी किया जाना चाहिए. तर्क है कि चीन अपने जीडीपी का 2 फीसदी, पाकिस्तान 3 फीसदी, अमेरिका 3.8 फीसदी और रूस 4.1 फीसदी डिफेंस पर खर्च करता है. रक्षा मंत्रालय जून में वित्त मंत्रायल से अतिरिक्त राशि की मांग करेगी.
मौजूदा बजट में सैलरी और मेंटेनेंस ही
संसद की स्थाई समिति से सेना ने कहा है कि जितना बजट बढ़ाया गया है, उससे मेंटेनेंस, सैलरी और पुरानी खरीदारी का भुगतान ही हो पाएगा. उसके मुताबिक, नए प्रोजेक्ट्स के लिए रक्षा बजट में सिर्फ 8 फीसदी रकम दी गई है. जबकि सेना करीब 20 प्रोजेक्ट्स के लिए करार करना चाहती है.
एक सीनियर आर्मी लेफ्टिनेंट जनरल ने समिति से कहा, 'हमें काफी मॉडर्नाइजेशन की जरूरत है. हम इसकी अहमियत समझते हैं. हमारे पास इसकी योजना है, लेकिन फंड नहीं है.'
सेना ने दिया आरोपों का जवाब
गौरतलब है कि सेना पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उसकी खामियों के कारण हथियार खरीदने में देरी होती है. इस बाबत जवाब देते हुए सेना ने संसद की स्थाई समिति से कहा, 'अभी देरी की वजह यह है कि हमारे पास पैसा नहीं है. हालांकि, बड़े प्रोजेक्ट्स के मामले में कुछ देरी होती है क्योंकि उसके लिए वित्त मंत्रालय से अप्रूवल लेना पड़ता है. हमें लगता है कि अगर फंड होगा तो हथियार खरीदने में देरी नहीं होगी.'
वायु सेना ने भी की शिकायत
सेना के साथ ही भारतीय वायु सेना ने भी ऐसी ही शिकायत की गई है. एयरफोर्स का कहना है कि उसे नए प्रोजेक्ट्स के लिए जितने फंड की जरूरत थी, उसका सिर्फ 25 फीसदी पैसा ही दिया गया है. एयरफोर्स को नए प्रोजेक्ट्स के लिए 3,264 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जिससे वह फ्रांस को 36 रफाल फाइटर प्लेन के लिए बमुश्किल पहली किश्त ही दे पाएगी.