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भारतीय लोकतंत्र में बेहतर बदलाव की गुंजाइश: अरूण पुरी

लोकतंत्र एक पौधे के समान है जिसकी लगातार देखभाल किए जाने की जरुरत है. ये बात दिल्ली में शुक्रवार से शुरू हुए इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा.

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लोकतंत्र एक पौधे के समान है जिसकी लगातार देखभाल किए जाने की जरुरत है. ये बात दिल्ली में शुक्रवार से शुरू हुए इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा.

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इस मौके पर अरुण पुरी ने बताया कि कॉनक्लेव भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा है और जब इतनी हस्तियां एक साथ एक मंच पर होंगी तो यकीनन 21वीं सदी के भारत के सपने साकार भी होंगे.

उन्होंने कहा कि पिछले 11 सालों में देश में कई बड़े बदलाव हुए. लेकिन मुझे यकीन है कि आप भी मानते होंगे कि भारत सिर्फ एक देश ही नहीं है. बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां तेजी से बदलाव हो रहे हैं. एक राष्ट्र के रूप में हमने सबको अचरज में डाल रखा है, जहां लोकतंत्र का सबसे अच्छा और सबसे खराब प्रवृत्ति एक साथ मौजूद है. हमारे जैसे खबरों की दुनिया के लोगों के लिए हर पल रोमांच से भरपूर रहा. लेकिन देश के लिए ये वक्त कैसा रहा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है.

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उन्होंने बताया कि पिछले 11 साल से लगातार आयोजित किए जा रहे इंडिया टुडे कॉन्कलेव में 21 वीं सदी में लोकत्रंत के विकास और समय के साथ बदलते अहम मुद्दों पर विचार होता रहा है. इस साल भी कॉन्कलेव में लोकतंत्र के बदलते आयामों पर प्रख्यात वक्ताओं के साथ चर्चा जारी रहेगी. इस साल की थीम है: रीइनवेंटिंग डेमोक्रेसी (Reinventing Democracy).

लोकतंत्र के लिए और लोकतंत्र के अंदर के संघर्ष के युग में इससे बेहतर टॉपिक और कुछ नहीं हो सकता था. 21 वीं सदी में मध्य पूर्व में लोकतंत्र के लिए दर्दनाक लड़ाई और अरब में लोकतंत्र की लड़ाई ने चेतावनी दे दी कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता चाह बेहद संक्रामक है. लोकतंत्र का यह संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है और रोमांस के मौसम वसंत में भी लोकतंत्र में अभी पूरी आजादी नहीं है.

इस मौके पर उन्होंने लोकतंत्र को लोकर देश और विदेश की घटनाओं की ओर भी लोगों का ध्यान खींचा. लीबिया और सीरिया में खून अभी भी बहाए जा रहे हैं और पूरी दुनिया देख रही है. मिस्र में तानाशाही के बाद भी लोकतंत्र में जीवन बेहतर नहीं है. यह एक सच है कि लोकतंत्र के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा मुश्किल है लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखना. जहां दुनिया में एक ओर लोकतंत्र के लिए संघर्ष जारी है, वहीं दुनिया के बड़े लोकतंत्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

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यूरोप में सरकारें एकल मुद्रा को पतन से बचाने और अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित के लिए प्रयासरत हैं. दूसरी ओर जापान में पिछले 4 सालों में 5 बार सरकार में बदलाव के बावजूद देश की आर्थिक स्थिरता डांवाडोल है.

भारत के लोकतंत्र में भी परीक्षण का दौर जारी है. एक ओर राजनीतिज्ञ आम जनता के निशाने पर है. सरकारों के अनैतिक और रूखे व्यवहार से नाराज हो जन अदालत सड़क उतर आई है.

कमजोर राजनीतिक नेतृत्व से अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो रही है. देश में विकास दर पिछले 10 साल के सबसे निचले स्तार पर पहुंच गई है. दो बड़े अर्थशास्त्री इस मुद्दे पर अपनी राय रखेंगे.

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