पंजाब नेशनल बैंक घोटाला मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय ने एंटीगुआ प्राधिकरण के बयान पर स्पष्टीकरण पेश किया है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि मेहुल चोकसी पर घोटाले के आरोप तय होने से पहले एंटीगुआ और बारबुडा की इकाई 'द सिटिजनशिप बाई इनवेस्टमेंट' (सीआईयू) को किसी प्रकार की प्रतिकूल जानाकारी नहीं दी गई थी. क्योंकि 2017 में उस समय तक चोकसी के खिलाफ किसी प्रकार के आरोप नहीं लगे थे.
दरअसल, मेहुल चोकसी को नागरिकता देने की बात पर एंटीगुआ और बारबुडा की इकाई 'द सिटिजनशिप बाई इनवेस्टमेंट' ने सफाई पेश की थी और कहा था कि नागरिकता देने से पहले उन्होंने 2017 में भारतीय एजेंसियों और पासपोर्ट ऑफिस से चोकसी के बारे में जानकारी मांगी थी. जिसके जवाब में भारतीय एजेंसियों ने चोकसी को लेकर किसी प्रकार की आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी. साथ ही भारत ने एंटिगुआ को यह स्पष्ट किया था कि चोकसी के खिलाफ किसी प्रकार के घोटाले का या फिर धोखाधड़ी का आरोप नहीं है. इसके बाद एंटीगुआ ने चोकसी को अपने देश की नागरिकता प्रदान की थी.
सीआईयू के मुताबिक '2017 में मेहुल चोकसी की तरफ से एंटीगुआ और बारबुडा की CIU इकाई के निवेश अधिनियम 2013 की धारा 5 (2) (बी) तहत सभी जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन किया गया था.'
CIU ने कहा, 'चोकसी के आवेदन पत्र के बाद CIU ने भारत से जानकारी मांगी. जिसके जवाब में भारत सरकार के विदेश मामलों के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने यह स्पष्ट किया था कि मेहुल चोकसी के खिलाफ कोई प्रतिकूल जानकारी नहीं है, जिससे उनके एंटीगुआ और बारबूडा के लिए वीजा समेत अन्य यात्रा सुविधाओं को प्राप्त करने में बाधा बने.'
चोकसी को 2017 में एंटीगुआ की नागरिकता मिली थी. CIU ने कहा कि चोकसी को नागरिकता प्रदान करने से पहले उनकी कई स्तर पर जांच की गई थी. इसमें ओपन सोर्स इंटरनेट चेक, थॉम्पसन रॉयटर्स वर्ल्ड-चेक, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों जैसे इंटरपोल से भी जानकारी जुटाई गई थी. सभी से मिली जानकारी का मुल्यांकन किया गया, जिसके बाद चोकसी के आवेदन पर निर्णय लिया गया.
एंटीगुआ के अधिकारियों के मुताबिक, सेबी ने भी चोकसी के बारे में अनुकूल जवाब मिला था. CIU ने कहा, 'सेबी ने सीआईयू को 2014 और 2017 के दो मामलों के दस्तावेज सौंपे जो चोकसी से संबंधित थे. जिसमें से एक मामले को संतोषजनक रूप से बंद कर दिया गया था और दूसरे मामले को सबूत के अभाव में आगे बढ़ाने से रोक दिया गया था. साथ ही वर्तमान के पीएनबी घोटाले का भी दोनों मामलों से कोई संबंध नहीं है. यह भी पाया गया कि 2016 में गैर-जमानती वारंट को भी खत्म कर दिया गया था.' हालांकि सेबी का कहना है कि उन्होंने एंटीगुआ को किसी प्रकार के दस्तावेज नहीं सौंपे हैं.
हालांकि, पिछले हफ्ते केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई ) ने कहा था कि पिछले 4 वर्षों में मेहुल चोकसी को लेकर इंटरपोल ने कभी उनसे संपर्क नहीं किया. जबकि सीआईयू ने कहा, 'नागरिकता देने से पहले जांच के दौरान इंटरपोल से भी जानकारी मांगी थी, जिसमें इंटरपोल ने चोकसी पर किसी भी प्रकार के आरोप से इनकार कर दिया था. अगर चोकसी के खिलाफ वारंट जारी किया गया था तो इंटरपोल को जानकारी होनी चाहिए थी. ऐसा होता तो इंटरपोल से हमें भी जानकारी मिल जाती. इसके अलावा भारतीय आपराधिक डेटाबेस रिकॉर्ड में भी वारंट की जानकारी होनी चाहिए थी. साथ ही विदेश मंत्रालय द्वारा दिए गए क्लियरेंस भी इसे शामिल करना चाहिए था.' ऐसा किया गया होता तो चोकसी की नागरिकता को मंजूरी नहीं मिल पाती.