स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई जारी है. इस मामले में केंद्र सरकार अपना हलफनामा दायर कर चुकी है. व्यभिचार कानून के तहत ये धारा हमेशा से विवादों में रही है और इसे स्त्री-पुरुष समानता की भावना के प्रतिकूल बताया जाता है.
केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेज दिया गया.
क्या कहती है धारा-497
आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है. लेकिन अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता. न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है.
इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है. किसी दूसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी.
कैसे चलता है केस, कितनी है सजा
अवैध संबंध के आरोप यदि किसी पुरुष पर साबित होते हैं तो उसे अधिकतम पांच साल की सजा दी जा सकती है. ये अपराध जमानती होता है. इसकी शिकायत किसी पुलिस स्टेशन में नहीं होती बल्कि मजिस्ट्रेट के सामने की जाती है और सारे सबूत पेश करने होते हैं. सबूत पर्याप्त होने पर संबंधित व्यक्ति को समन भेजा जाता है और केस चलाया जाता है.
क्या हैं आपत्तियां
इस कानून के खिलाफ तर्क दिया जाता है कि एक ऐसा अपराध जिसमें महिला और पुरुष दो लोग लिप्त हों, उसमें केवल पुरुष को दोषी ठहराकर सजा देना लैंगिक भेदभाव है. इसके अलावा महिला के पति को ही शिकायत का हक होना कहीं न कहीं महिला को पति की संपत्ति जैसा दर्शाता है, क्योंकि पति के अलावा महिला का कोई अन्य रिश्तेदार इस मामले में शिकायतकर्ता नहीं हो सकता.