आज के दौर में जब सियासी शिष्टाचार के गर्त में समाने की प्रतिस्पर्धा दिख रही हो, तो ऐसे बयान कहीं से भी अचरज नहीं पैदा करते. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अपने ही उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को सरेआम नकारा-निकम्मा कह देना राजनीति के गिरते स्तर की एक बानगी भर है. सोशल मीडिया के इस दौर में जैसे मर्यादाओं का मान-मर्दन हो रहा है, वो अब 'न्यू नॉर्मल' की तरह ही सामान्य सा लगता है. लेकिन इस देश की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं जब वैचारिक और व्यक्तिगत रिश्तों को अलग रखा जाता था. नेता व्यक्तिगत कटाक्ष करने से बचते थे. रैलियों में, संसद में एकदूसरे से लड़ते थे लेकिन कुछ ऐसा नहीं कहते थे जिससे कभी आमना-सामना होने पर नजरें चुरानी पड़ें.
दिग्विजय ने सोशल डिस्टेंसिंग की दी नसीहत
शिवराज के कोरोना पॉजिटिव निकलने पर दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, दुख है शिवराज जी आप कोरोना संक्रामक पाए गए. ईश्वर आपको शीघ्र स्वस्थ करें. आपको सोशल डिस्टेंसिंग का ख़्याल रखना था जो आपने नहीं रखा. मुझ पर तो भोपाल पुलिस ने FIR दर्ज कर ली थी आप पर कैसे करते. आगे अपना ख़्याल रखें.
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मजाक में न लेते तो बचे रहते- कमलनाथ
वहीं कमलनाथ ने ट्वीट में लिखा, शिवराज जी, आपके कोरोना संक्रमित होने की जानकारी मिलने पर काफ़ी दुःख हुआ. ईश्वर से आपके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं. बस अफ़सोस इस बात का है कि जब हम कोरोना को लेकर गंभीर थे, तब आप कोरोना को कभी नाटक बताते थे, कभी डरोना बताते थे, कभी सत्ता बचाने का हथियार बताते थे, कभी हम पर कुछ आरोप लगाते थे, कभी कुछ कहते थे, कभी कुछ. कमलनाथ ने प्रोटोकॉल की याद दिलाते हुए कहा कि शायद आप भी इससे संभल कर रहते, प्रोटोकॉल, गाइडलाइन व सावधानी का पूरा पालन करते, इसको मज़ाक़ में नहीं लेते तो शायद आप इससे आज बचे रहते. ख़ैर कोई बात नहीं, आप जल्द स्वस्थ होकर वापस काम पर लौटेंगे, ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है व पूर्ण विश्वास है. दोनों नेताओं के ट्वीट के 'टेस्ट' पर सवाल उठना लाजिमी है.
मध्य प्रदेश में मार्च में सत्ता फिसलने के बाद से अब तक कुल 24 विधायक कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ चुके हैं. मध्य प्रदेश के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने ये कहकर कांग्रेस खेमे की बेचैनी और बढ़ा दी है कि 2-3 विधायक पाला बदलने को तैयार बैठे हैं. दो विधायकों का निधन भी हो चुका है. उपचुनाव सिर पर है. ऐसे में राज्य के पुराने कांग्रेसी धुरंधर दिग्विजय और कमलनाथ मुख्यमंत्री शिवराज को किसी भी मोर्चे पर जरा भी ढील देने के मूड में नहीं दिख रहे.
किसी नेता के बीमार पड़ने पर वैचारिक दुश्मनी भुलाकर खैर-खबर लिए जाने का सामान्य शिष्टाचार चला आ रहा है. पहले के दौर में ऐसी कई नजीरें भी हैं. ऐसी ही एक नजीर आज राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों ही राज्यों के लिए बेहद मौजूं है.
जब गहलोत ने दिया था नैतिकता का तकाजा
साल 1996 में राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई थी. कुछ दिनों के बाद ही हार्ट के ऑपरेशन के लिए वे अमेरिका चले गए. उनकी गैरहाजिरी में विधायक भंवरलाल शर्मा को 'आपदा में अवसर' दिख गया. जोड़-तोड़ कर बनाई गई सरकार में उन्होंने कुछ विधायकों को मिला लिया और तत्कालीन राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष अशोक गहलोत से संपर्क किया. गहलोत ने उस समय साफ इनकार कर दिया कि कोई आदमी जब बीमार हो, तब ऐसा करना ठीक नहीं. ऐसी साजिश में वो शामिल नहीं होंगे. यह नैतिकता के खिलाफ होने के साथ-साथ गलत भी है.
24 साल बाद अब दिखा अलग अंदाज
हालांकि, उस समय सियासी शुचिता की नजीर पेश करने वाले गहलोत आज 24 साल बाद अपने उपमुख्यमंत्री को सरेआम नकारा-निकम्मा तक कह जाते हैं. बीते कुछ दिनों से गहलोत का जो अंदाज दिख रहा है, उसके उलट बेहद सौम्य और कड़ी बातों को भी सरल अंदाज में कहने के लिए वे जाने जाते रहे हैं. बदलते वक्त के साथ आई ये तल्खी सरकार बचाने की मजबूरी भी हो सकती है.
एक बानगी और है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने नागपंचमी की लोगों को बधाई देते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की फोटो शेयर की है. सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट आए दिन आते रहते हैं. वैसे तो आम आदमी से भी ऐसे पोस्ट की उम्मीद नहीं की जाती, लेकिन जब 'खास' लोगों की यही प्रवृत्ति हो जाए तो वाकई ये चिंताजनक है.
बीमार मुलायम से मिलने घर गए थे योगी
राजनीति में एक अदब और सामान्य शिष्टाचार के अनगिनत उदाहरण हैं. पिछले साल जून की ही बात है. समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव उम्र संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं. पिछले साल उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. जब वे घर लौटे तो सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलने घर पहुंचे. इस दौरान साथ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल भी मौजूद थे. वहीं योगी कई बार फोन पर भी मुलायम सिंह से कुशलक्षेम लेते रहे हैं. राजनीति के मैदान में एक दूसरे को पटखनी देने का कोई मौका नहीं चूकने वाले इन सियासतदानों की ये तस्वीर उस समय खूब चर्चा में रही थी.
सोनिया की तबीयत बिगड़ने पर पीएम मोदी ने किया था फोन
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तबीयत भी बीते कुछ समय से नासाज रहने की खबरें आती रही हैं. साल 2016 में कई बार उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आईं थीं. बनारस में एक रोड शो खत्म होने से पहले ही सोनिया की तबीयत खराब हो गई थी, जिसके चलते ने दिल्ली लौट आईं. सोनिया गांधी की तबीयत के बारे में पता चलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीला दीक्षित को फोन कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली थी. बाद में पीएम ने ट्वीट कर उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की थी.
जब वाजपेयी ने छुए थे ममता की मां के पांव
राजनेताओं में नाराजगी पहले के दौर में भी होती थी, लेकिन जितनी आसानी से उन्हें पहले दूर कर लिया जाता था, आज उसके बारे में सोचना भी बेमानी सा लगता है. ऐसा ही एक किस्सा है अटल बिहारी वाजपेयी और ममता बनर्जी का. बात उस समय की है जब वाजपेयी के कार्यकाल में ममता रेल मंत्री थीं. पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम से ममता नाराज हो गईं. उन्हें मनाने का जिम्मा जॉर्ज फर्नांडीज को दिया गया, लेकिन बात बनी नहीं. तब अचानक प्रधानमंत्री वाजपेयी खुद ममता के घर पहुंच गए. इत्तफाक ही था कि घर पर ममता नहीं, उनकी मां थीं. वाजपेयी ने ममता की मां के पैर छुए और सिर्फ इतना कहा कि आपकी बेटी बहुत शरारती है, बहुत तंग करती है. वाजपेयी लौट गए. ममता को ये पता चला तो गुस्सा पल भर में काफूर.
राजीव गांधी ने चुपचाप की वाजपेयी की मदद
ऐसा ही एक किस्सा और है. अटल बिहारी वाजपेयी किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे. इलाज के लिए अमेरिका जा पाने में उस समय वाजपेयी सक्षम नहीं थे. ये बात तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पता चली तो उन्होंने भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र जा रहे प्रतिनिधिमंडल में वाजपेयी को भी शामिल कर लिया. राजीव ने वाजपेयी को अपने कार्यालय बुलाया और कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि न्यूयॉर्क में वे अपना इलाज भी करा लेंगे. इलाज कराकर वतन लौटे वाजपेयी ने एक पोस्टकार्ट के जरिए संदेश भेजकर राजीव गांधी को शुक्रिया कहा. इस घटना का दोनों ही शख्सियतों ने कभी किसी से जिक्र नहीं किया. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद खुद वाजपेयी ने इस घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि अगर आज वे जिंदा हैं तो राजीव गांधी की ही बदौलत हैं. राजनीतिक शिष्टता की ऐसी उम्मीद आज के दौर में देखना नामुमकिन लगता है.
बीमार जेपी से मिलने पहुंच गईं थीं इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण राजनीति के दो ध्रुव की मानिंद थे. जेपी के विरोध के चलते इंदिरा गांधी से सत्ता तक छिन गई थी. लेकिन एक किस्सा उनका भी है. जेपी पटना में बीमार पड़े थे. ऐसे में राजनीतिक शत्रुता को भुलाकर इंदिरा गांधी उनसे मिलने पहुंची थीं. ऐसी राजनीतिक परंपरा के बावजूद आज जो प्रतिमान गढ़े जा रहे, वो किसी भी लिहाज से ठीक नहीं.