26 फरवरी को रेल बजट पेश होने वाला है. भारतीय रेल कितना सुरक्षित है महिलाओं के लिए. यही जानने की कोशिश की है आजतक की 10 महिला रिपोर्टरों ने.
पटरियों पर सरपट दौड़ती रेल, हमारे आपके जीवन की कुछ यादों को लेकर दौड़ती है. चंद किस्से कहानियों को लेकर दौड़ती है. पर इस रूमानी कल्पना से परे, भारतीय रेलवे की एक अलग हकीकत है. आजतक ने की है उस हकीकत की तलाश.
कालका मेल से आज तक की रिपोर्टर श्वेता सिंह ने रेल मंत्री पवन बंसल के चुनाव क्षेत्र का सफर तय कर जायजा लिया कि इस रूट पर महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं. कालका मेल डेढ़ दिन में हावड़ा से कालका का सफ़र तय करती है. पर हमारी मंज़िल है चंडीगढ़. रात के सफर में लोगों से उनकी उम्मीदें जानने की कोशिश की गई और उनकी मुश्किलों को भी सामने रखा गया.
लोगों की शिकायतें सुनकर श्वेता जब गार्ड को ढूंढ रही थीं तो अंबाला स्टेशन पर ट्रेन रुकी और जांच पड़ताल करते सुरक्षा कर्मी नज़र आए. सुरक्षाकर्मियों पर यात्रियों की सुरक्षा ज़िम्मा होता है. भरोसा मिलेगा भी तो कैसे, रात का सफर आंखों में ही कट जाए तो बेहतर है.
वही गंदगी, वही असुविधा, वही असुरक्षा का एहसास और वही सवाल क्या रेल बजट 2013 में नई पटकथा लिखी जाएगी. श्वेता सिंह चंडीगढ़ तो पहुंच गई लेकिन उनका मानना है कि अगर उनके हाथ में ये माइक्रोफ़ोन ना होता, या उनके साथ कैमरापरसन अमित कुमार नहीं होते, तो प्लैटफ़ॉर्म पर यूं खड़े होने का वो सोच भी नहीं सकती थी.
श्वेता सिंह ने रेल मंत्री पवन बंसल के शहर में खड़े होकर उनसे एक सुरक्षित सफ़र मांग की. श्वेता की माने तो सभी महिलाओं के लिए सुरक्षित होने का अहसास भी बहुत जरूरी है.