अब बात पश्चिम बंगाल की. हावड़ा स्टेशन, पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा स्टेशन, यहां से हर रोज़ करीब 6 लाख यात्री सफर करते हैं. पहले यहां ममता दीदी की रेल दौड़ती थी. अब रेल मंत्री पवन बंसल का ताल्लुक पंजाब से है.
पूर्वोत्तर रेलवे जहां से हर रोज़ करीब 2 हज़ार ट्रेनें छूटती हैं. आजतक ने अपनी पड़ताल के लिए इस रूट की हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस को चुना.
शाम 7 बजकर 10 मिनट तय समय. ट्रेन हावाड़ा से छूटती है. और आजतक की महिला रिपोर्टर, महिलाओं की सुरक्षा का हाल जानने के लिए निकल पड़ती है. पहले स्लीपर कोच में महिलाओं से बातचीत की गई.
यहां रेल में सुरक्षा फेल हो गई. महिलाओं ने सुरक्षा को जमकर कोसा. एसी बोगी का भी एक ही रोना. क्लास से फर्क नहीं पड़ता, ख़ौफ और असुरक्षा ट्रेन में चप्पे चप्पे पर थी. 20 बोगियों की ट्रेन में हमें इंतज़ार था कि कहीं तो किसी डिब्बे में हमारी मुलाकात आरपीएफ के जवानों से हो जाए.
काफी देर पर कुछ आरपीएफ के जवान ट्रेन में चेकिंग करते हुए नज़र आए. आजतक को आरपीएफ के जवानों के डिब्बे में देर से आना भी समझ में आ गया. आपको बता दें कि 20 बोगियों की इस ट्रेन में 4 आरपीएफ के जवान रहते हैं जो किसी-किसी डिब्बे में राउंड लगाते हैं.
अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अगर कोई वारदात हो जाए तो क्या होगा. इसी जुस्तजू में वर्धमान आ गया. वर्धमान से हावड़ा के लोकल रूट पर हमने बहुत घटनाओं के बारे में सुना है. लूट और डकैती जैसी वारदातें यहां आम हैं. लेकिन हम हक़ीक़त जानना चाहते थे.
सच्चाई की तह कर पहुंचना चाहते थे. और इसके लिए हमने वर्धमान लोकल का महिला कोच चुना और जिस हक़ीक़त से हम रू-ब-रू हुए वो आपको भी चौंका देगी. वर्धमान-हावड़ा लोकल रूट की यही सच्चाई है.
अंधेरा होते ही महिलाएं लोकल ट्रेन में सफर करना ही बंद कर देती हैं और रात के सन्नाटे में सूनसान लोकल पटरियों पर फर्राटे भरती हैं. रात को करीब पौने 11 बजे वर्धमान लोकल हावड़ा पहुंची. दहशत और ख़ौफ के सन्नाटे ने हमारी आंखें खोल दीं. .साफ साफ समझ में आ गया, लूट, डकैती और महिलाओं की असुरक्षा का राज़.