पटरियों पर सरपट दौड़ती ट्रेन हिस्सा बन चुकी हैं उन लाखों ज़िंदगियों का जिनके लिए ट्रेन ज़रिया हैं रोज़मर्रा के कारोबार का. रेलवे के दावे मुसाफिरों को सुरक्षा का भरोसा तो दिलाते हैं लेकिन डर आज भी लोगों की सांसों के साथ चलता है.
रात के साढ़े नौ बजे हैं और ईएमयू ट्रेन के साथ सफ़र शुरू हो चुका है चेन्नै से तांबरम तक के लिए महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कितनी सच्चाई है रेलवे के दावों में इसके लिए आजतक की संवाददाता ने खुद रेल का सफ़र किया, लोगों की आंखों में झांका, दिलों को टटोला.
रात के 11 बजत बजते मांबलम स्टेशन पहुंचकर गाड़ी की रफ्तार ज़रा कम हुई. स्टेशन पर रोशनी की जगह घना अंधेरा पसरा हुआ था. इक्का दुक्का लोग स्टेशन पर नज़र आए तो डर उनके चेहरों पर साफ़ नज़र आ रहा था.
ये बानगी है भारतीय रेल की जो सुविधाओं का हवाला देकर किराए में बढ़ोतरी तो करती है लेकिन सुरक्षा के दावे खोखले ही रह जाते हैं.