भारतीय महिलाओं ने निश्चय ही राजनीति, व्यवसाय तथा व्यापारिक जगत में सफलता की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं तथा खासतौर पर शहरी महिलाओं ने करियर व व्यक्तिगत पसंद के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता अर्जित करते हुए अपनी स्वतंत्रता की मांग को मजबूती प्रदान की है.
हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन सबके बावजूद एक सच यह भी है कि सड़कों पर, गलियों में, कार्यालयों में, अपने ही घरों में यहां तक कि गर्भ में भी महिलाएं अपनी सुरक्षा को लेकर डरी हुई हैं.
एक महिला कार्यकर्ता ने कहा कि देश की एक अरब से भी ज्यादा की आबादी को देखते हुए, जिसमें आधी के लगभग महिलाएं हैं, जमीनी सच्चाई बहुत कड़वी है तथा समाज में स्त्रियों की बेहद खराब स्थिति को दर्शाता है.
महिलाओं द्वारा तमाम अर्जित सफलताओं के बावजूद राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) के आकड़ों के अनुसार भारत में संगठित क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी मात्र 25.6 प्रतिशत है.
इन दिनों सामने आ रही दुष्कर्म की घटनाओं से साबित होता है कि महिलाओं को न सिर्फ सार्वजनिक जगहों पर रोजाना दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है बल्कि घरों एवं दफ्तरों में भी उन पर हिंसक अश्लील हमले किए जाते हैं.
महिला कार्यकर्ता सोनाली खान के अनुसार समय के साथ महिलाओं की स्थिति बदली है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
एक वैश्विक मानवाधिकार संगठन, 'ब्रेकथ्रू' की उपाध्यक्ष खान ने कहा, 'भारतीय महिलाओं ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर सामाजिक एवं पेशेवर स्तर पर बहुत सी सफलताएं अर्जित की हैं. आप कोई भी क्षेत्र ले लिजिए, महिलाएं हर जगह पहुंच चुकी हैं जिसमें शिक्षा का सबसे बड़ा योगदान है.'
खान ने कहा, 'आज हमारे समाज में अनेक महिलाएं शीर्ष पदों पर पहुंच चुकी हैं तथा बहुत सी महिलाएं खुद को साबित करने के लिए सामने आ रही हैं. लेकिन इसके साथ ही सच्चाई यह भी है कि सामाजिक कुरीतियां एवं दुर्भावनाएं आज भी कायम हैं जो उनकी तरक्की में बाधा पहुंचा रही हैं.'
लेखिका कमला भसीन के अनुसार सरकार द्वारा पेश किए गए आम बजट में महिलाओं को केंद्र में रखकर उठाए गए कदमों से समाज में महिलाओं को तरक्की करने में मदद मिलेगी. भसीन ने कहा, 'सबसे अच्छी बात यह है कि लैंगिक समानता पर आधारित सभी विषय आज मुख्यधारा में शामिल कर लिए गए हैं.
अब तक देश में पेश किए जा चुके सभी बजटों के बाद अब लिंग आधारित बजट का प्रावधान कर दिया गया है. संविधान तथा कानूनों में भी अब महिलाओं को ध्यान में रखकर सुधार किए जा रहे हैं.' हालांकि इस बात से सभी सहमत हैं कि महिलाओं को आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बनाने के लिए तथा समाज में बराबरी का सम्मान प्रदान करने के लिए अभी कुछ विशेष कदम उठाए जाने की जरूरत है. इन सबके बावजूद महिलाओं के लिए अभी पूरा आसमान बाकी है.