अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने एक नया अध्याय लिख दिया है. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से मंगलयान लॉन्च कर दिया गया, जो अब पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर चुका है. मंगल अभियान में भारत तीसरा देश बन गया है.
मंगलवार को जैसे ही घड़ी की सुइयां दोपहर 2 बजकर 39 मिनट पर पहुंचीं, PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष रवाना हो गया. मंगल मिशन को 28 अक्टूबर को ही लॉन्च किया जाना था लेकिन खराब मौसम की वजह से वैज्ञानिकों ने लॉन्चिंग 5 नवंबर तक टाल दी थी.
मंगलयान का प्रक्षेपण सफलः ISRO
इसरो के अध्यक्ष के.राधाकृष्णन ने कहा कि देश के प्रथम मंगलयान को ले जा रहे प्रक्षेपण यान को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया है.
राधाकृष्णन ने कहा, 'मैं यह घोषणा करते हुए बहुत प्रसन्न हूं कि पीएसएलवी-सी25 ने मंगलयान को पृथ्वी के चारों ओर अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा दिया है.'
लगा बधाइयों का तांता
जैसे मंगलयान के सफल प्रक्षेपण की खबर आई. देशभर में बंधाइयों का तांता लग गया. नेताओं में बधाई देने की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने की. हालांकि चौकाने वाली बात यह थी कि ISRO के आधिकारिक घोषणा से करीब आधे घंटे पहले ही उन्होंने वैज्ञानिकों को बधाई दे दी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिशन मंगल की सफल शुरुआत के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने खुद फोन पर इसरो के अध्यक्ष के.राधाकृष्णन को ISRO की इस ऐतिहासिक सफलता के लिए बधाई दी. सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज ने भी ISRO के वैज्ञानिकों को शुक्रिया कहा.
मंगल मिशन भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन
मंगल मिशन भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है यानी पहली बार किसी दूसरे ग्रह पर प्रयोग की शुरुआत कर रहा है भारत. मिशन के लिए PSLV-C25 का इस्तेमाल किया गया है यानी ये PSLV का 25वां मिशन है. PSLV-C25 की ऊंचाई 45 मीटर है. जिस उपग्रह को मंगल की कक्षा में स्थापित किया जाएगा उसका नाम है मार्स ऑर्बिटर. 1337 किलो वजन वाले मार्स ऑबिटर सैटेलाइट को लेकर PSLV- C-25 अंतरिक्ष में गया है. आज से 300 दिन बाद यानी सितबंर 2014 में इसे मंगल की कक्षा में स्थापित किया जाएगा और फिर शुरू होगी मंगल की अबूझ पहेलियों को जानने की कोशिश.
कैसा होगा मंगल तक मंगलयान का सफर?
मंगलयान 3 चरणों में मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा. पहले चरण में मंगलयान 4 हफ्ते तक धरती का चक्कर लगाएगा. इस दौरान मंगलयान धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से दूर होता जाएगा और फिर मंगलयान का सातवां इंजन इसे मंगल की ओर धकेल देगा. दूसरे चरण में मंगलयान पृथ्वी की कक्षा से बाहर हो जाएगा. तीसरे चरण में 21 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा मंगलयान. और फिर इसमें लगी मशीनें मंगल के बारे में जानकारियां भेजने लगेंगी.
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने लिखा इतिहास
मंगल मिशन के लॉन्च होते ही भारत गिने चुने देशों की कतार में आ खड़ा हो गया. भारत से पहले अमेरिका और रूस भी मंगल के लिए यान भेज चुके हैं. 1960 में रूस ने पहली बार इसके लिए कोशिश की थी और आज अमेरिकी यान मंगल की सतह पर पहुंचकर लाल ग्रह के रहस्यों को बेपर्दा कर रहे हैं. लाल ग्रह के सैकड़ों-हजारों रहस्यों को जानने के लिए दुनिया बरसों से कोशिश करती आ रही है, जिसका इतिहास 1960 तक पीछे जाता है. जब रूस ने दुनिया के पहले मिशन मंगल का आगाज किया, जिसे नाम दिया गया कोराब्ल 4. हालांकि यह मिशन फेल हो गया.
- 1965 में अमेरिका के स्पेसक्राफ्ट मैरिनर 4 ने पहली बार मंगल की तस्वीर धरती पर भेजी और मंगल के लिए ये पहला सफल मिशन साबित हुआ.
- पहली बार 1971 में सोवियत संघ का ऑर्बाइटर लैंडर मार्स 3 यान मंगल पर उतरा.
- 1996 में अमेरिका ने मार्स ग्लोबल सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया जो अपने रोबोटिक रोवर के साथ मंगल की सतह पर उतरा.
- 2004 में अमेरिका ने फिर अपने दो रोवरयान स्पिरिट और ऑपरच्यूनिटी को मंगल की सतह पर उतारा.
- 26 नवंबर 2011 में अमेरिका ने क्यूरियोसिटी रोवर को ल़ॉन्च किया, जिसकी 6 अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर सफल लैंडिंग हुई.
जब मार्स ऑरबिटर मंगल की कक्षा में घूमना शुरू करेगा तो भारत अंतरिक्ष विज्ञान की चुनौतियों समेत मंगल ग्रह के बारे में ढेरों जानकारियां हासिल होंगी. शायद हमें पता चल पाएगा कि क्या मंगल पर मीथेन गैस है, क्या इस ग्रह के गर्भ में खनिज छिपे हैं, क्या यहां बैक्टीरिया का भी वास है और क्या यहां जिंदगी की संभावनाएं भी हैं. अगर भारत का मार्स ऑर्बाइटर मिशन यानी मंगलयान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब रहता है तो फिर अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक की दुनिया में हिंदुस्तान निश्चित रूप से एक नया मुकाम हासिल कर लेगा.