{mosimage}शक्तिशाली नजर आने वाली नेता इंदिरा गांधी को भारतीय संस्कृति में एक देवी के समान बन जाना था, उस संस्कृति में जिसमें देवी मां की पूजा होती है.
रहस्य की सम्राज्ञी
भारतीय उपमहाद्वीप के मिथकों में वे अब भी एक विस्मयकारी उपस्थिति हैं. वे असंख्य लोगों की मां हैं. साक्षात दुर्गा. रहस्य की सम्राज्ञी. व्यामोह की मूर्ति. इंदिरा गांधी आज भी लोगों के जेहन में स्नेह, प्रशंसा, पूजा और भय के अवतार के रूप में जिंदा हैं. 31 अक्तूबर की सुबह उनकी हत्या के 25 साल बाद आज भी हमें उनकी कमी महसूस होती है और ऐसा उन लोगों द्वारा की जाने वाली झूठी याद के कारण नहीं है, जो उनकी स्मृति के आयोजन के मौजूदा आवेश में उनकी राजनैतिक विरासत का कॉपीराइट रखने का दावा कर रहे हैं. तो क्या यह इसलिए है कि वे एक अपवाद थीं, या मौजूदा राजनैतिक नेतृत्व की विकृति का प्रतिबिंब थीं? इलाहाबाद के आनंद भवन की चारदीवारी में बंद रहने वाली एक खामोश गुड़िया से दिल्ली में 1, सफदरजंग रोड की सर्वशक्तिसंपन्न महिला और फिर पूरे भारत की सामूहिक चेतना में जगह बनाने तक का उनका सफर- या फिर दुबली-पतली, एकाकी ''इंदु'' से जनता की चहेती इंदिरा बनने का उनका सफर सत्ता के भावावेश और उसके रहस्य को बयां करता है.
वंशानुगत राजनीति में सर्वाधिक स्थायी विरासत
वे शब्द जो आज सत्ता की तुच्छता को अभिव्यक्त करते हैं-जैसे वंश परंपरा और लोकलुभावनवाद - उनके विकास के आख्यान मामले में एक अलग ही अर्थ ध्वनित करते हैं. गांधी की यह छवि घुटने तक धोती और चरखे वाली नहीं है बल्कि स्टार्च लगी साड़ी और कानों के पास तक कटे व अधपके बालों वाली है और यही आज वंशानुगत राजनीति में सर्वाधिक स्थायी विरासत है. वंश परंपरा मोतीलाल नेहरू से जुड़ी होने के बावजूद इसकी शुरुआत खुद उनसे हुई और उन्होंने खुद अपने रक्त से इसका अभिषेक किया. जैसा कि प्रत्येक वंश परंपरा के साथ होता है, एकदम प्रारंभ में ही उन्हें उनके भाग्य और इतिहास के बीच सहजीवन की बात बता दी गई थी. उनके पिता ने, जो हमेशा ही उन्हें प्रेरक कथाएं सुनाते रहते थे, उन्हें पत्र लिखा कि उनका जन्म रूसी क्रांति के महीने में हुआ था, यानी ''तूफान और संकट'' के संसार में. यह तूफान उनके जीवन के अंत तक चलता रहेगा लेकिन वे इसके आगे झुकेंगी नहीं. अपनी संतानों, पोते-पोतियों और बहू के विपरीत उनकी शुरुआत आसान नहीं होगी. उन्हें सबसे पहले अपनी पार्टी के भीतर संघर्ष करना था और जीतना था. और वे कोई साधारण लोग नहीं थे, और न ही वे उनसे या उनकी पृष्ठभूमि से आतंकित थे.
जब वाजपेयी ने इंदिरा को दुर्गा कहा
वे लोग आज के कांग्रेसियों की तरह पराश्रित या कमजोर कांग्रेसी नेता नहीं थे. आज के कांग्रेसी नेता गांधी परिवार की आश्वस्तिपूर्ण छाया के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. और न ही मूल श्रीमती गांधी का उदय कांग्रेसियों की रोती-बिलखती भीड़ की विनती के कारण हुआ था. उन्हें तो सिंडीकेट के बुजुर्ग और घाघ कांग्रेसियों को, जो उन्हें सिर्फ अपने हाथों की कठपुतली समझते थे, पछाड़ कर अपनी जगह कायम करनी थी. इसके लिए उन्हें निर्मम बनना था.{mospagebreak}किसी भी महान नेता की कहानी हमेशा ही एक नौसिखुए के रूप में शुरू होती है, जो तथाकथित 'किंगमेकरों' को शिकस्त देकर आगे बढ़ता है. शक्तिशाली नजर आने वाली नेता इंदिरा गांधी को भारतीय संस्कृति में एक देवी के समान बन जाना था, उस संस्कृति में जिसमें देवी मां की पूजा होती है. यहां तक कि कवि स्वभाव वाले अटल बिहारी वाजपेयी भी बांग्लादेश बनने के बाद उमंगित संसद में इंदिरा गांधी के लिए दुर्गा के विशेषण का प्रयोग करने से खुद को रोक नहीं पाए.
सबसे प्रिय नेता थीं इंदिरा
हम यह भी जानते हैं कि राजनीति में देवी और देवता लोकप्रियता की कला में माहिर होते हैं, जो जनभावनाओं के साथ खेलने की कला जानते हैं. इवा पेरोन से लेकर इमेल्डा मार्कोस और जयललिता तक को लोकप्रियता हासिल करने की इस कला ने ही जनता का चहेता बना दिया. श्रीमती गांधी का समाजवादी लोकलुभावनवाद, जो बहुत कुछ सोवियत संघ की नीतियों से मेल खाता था, राष्ट्रीय स्तर पर एक ज्यादा परिष्कृत कला थी. इसने जल्दी ही उन्हें सभी लोगों का सबसे प्रिय नेता बना दिया. जब विपक्षियों की ओर से 'इंदिरा हटाओ' का कमजोर-सा नारा शुरू किया गया तो उन्होंने इसके जवाब में 'गरीबी हटाओ' का खोखला नारा उछाल दिया, लेकिन जनता को भ्रमित करने के लिए काफी था. जब उन्हें निशाना बनाया गया तो उन्होंने अपने विरोधियों को ऐसा मूर्ख बना दिया जैसे उन पर निशाना साधना देशद्रोह हो. उन्होंने खुद को देशवासियों की नजर में भारत की ही तरह अपरिहार्य बना लिया. आपातकाल देवी के रूप में प्रतिष्ठित हस्ती के विभ्रम की अभिव्यक्ति थी. उन्हें रक्षा करने वाली देवी के मिथक को सुदृढ़ करने के लिए ऐसे समय में एक शत्रु की आवश्यकता थी जिसे उनके पिता ''तूफान और संकट'' का नाम देते. इसमें उन्हें शिकस्त खानी पड़ी. उन्होंने फिर जीत हासिल की और अंततः उनकी हत्या कर दी गई.
गूंगी गुडि़या से ताकतवर नेता
आज हम स्टार्च लगी सूती साड़ी में तेज कदमों से चलती उस महिला की झलक देखते हैं. श्रीमती गांधी का नया संस्करण अब भारत का सबसे ताकतवर नेता है, और वह भी आधिकारिक रूप से सत्ता में न रहते हुए. वे भी चुनाव जीत रही हैं. फिर ऐसा क्यों है कि मूल संस्करण आज भी देश के दिलोदिमाग पर हावी है? कार्रवाई की जरूरत पड़ने पर इंदिरा के लिए बीच का कोई मैदान नहीं होता था और न ही किसी को बीच में लाने की जरूरत महसूस होती थी. लोहिया की ''गूंगी गुड़िया'' आगे चलकर निर्मम, करिश्माई और ताकतवर शासक बन गई. देश ने उनकी गलतियों को अनदेखा कर दिया क्योंकि लोग उनके हित और व्यापक देशहित के बीच कभी अंतर नहीं कर पाए. अपनी हत्या से एक दिन पहले उन्होंने भुवनेश्वर में एक चुनावी सभा में कहा थाः ''मैं आज यहां हूं हो सकता है, कल मैं न रहूं. लेकिन मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि मैं जीवित रहूं या मर जाऊं. मैंने लंबा जीवन जिया है और मुझे गर्व है कि मैंने अपने लोगों की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दिया. और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का हर कतरा देश के काम आएगा और इसे मजबूत करेगा.'' ये एक ऐसी नेता के शब्द थे जिसका विश्वास था कि लोगों के साथ उसका भावनात्मक रिश्ता था. वे आज भी मौजूद हैं क्योंकि जो लोग उनकी शहादत को बेच रहे हैं या उनकी शैली की नकल कर रहे हैं, उन्हें शायद उस देश की जानकारी नहीं है, जो इंदिरा से प्रेम करता था. कमजोर व्यक्ति कभी इंदिरा का वारिस नहीं बन सकता, वह उनकी सिर्फ नकल ही बन सकता है.