गुरुवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन भारत दौरे पर आ रहे हैं. इस दौरान भारत और रूस के बीच रक्षा करारों के अलावा ऊर्जा के क्षेत्र में भी कई समझौते होंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन 19वें भारत-रूस दोपक्षीय वार्षिक सम्मेलन में एक-दूसरे से वार्ता करेंगे. दोनों राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के दौरान इस बात की संभावना ज्यादा है कि भारतीय कंपनियों की रूसी तेल व गैस कंपनियों में हिस्सेदारी पहले की तुलना में अच्छी-खासी बढ़ जाए.
भारत सरकार की कोशिश है कि यहां की सरकारी कंपनियां रूस की गैस कंपनियों खासकर सखालिन में अपनी हिस्सेदारी ज्यादा से ज्यादा बढ़ाएं. रूस के तेल और गैस सेक्टर में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी 10 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है, जिसे सरकार और बढ़ाने पर जोर दे रही है.
इंडस्ट्री के सूत्रों ने रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक को बताया कि पुतिन की यात्रा के दौरान भारत का सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओविएल) रूसी कंपनी गैजप्रोम के साथ एक अहम करार पर दस्तखत कर सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, ओएनजीसी रूस में निवेश के लिए अन्य स्तर पर वार्ता कर रहा है. रूस में पेछोरा और ओखोस्क सागर में तेल खनन के लिए गैजप्रोम के साथ साझेदारी पर बात चल रही है. ओविएल का रूस के तीन प्रोजेक्ट में पहले से निवेश है. यह निवेश साल 2018 में उसके कुल निवेश का 56 फीसदी हिस्सेदारी है. ओविएल भारत से बाहर 20 देशों में तेल खनन के तकरीबन 41 प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, ओविएल के अलावा और भी कई भारतीय कंपनियां हैं जो यामल लिक्विफायड नेचुरल गैस (एलएनजी) प्रोजेक्ट में रूस के साथ साझेदारी को इच्छुक हैं. बीते 13 सितंबर को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस बात की घोषणा की थी कि देश की कई ऊर्जा कंपनियां रूस की गैस व तेल कंपनियों में निवेश करना चाहती हैं.
पिछले साल इंडियन ऑयल के एक कंसोर्टियम ने रूसी कंपनी रोजनेफ्ट की सब्सिडरी वेंकोरनेफ्ट में 23.9 प्रतिशत और तास-यूराख में 29.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी.