बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को शनिवार को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया. भारत की समुद्री युद्ध क्षमता में यह बड़ा इजाफा है. इस युद्ध पोत को सेवमाश शिपयार्ड पर आयोजित समारोह भारतीय नौसेना में शमिल किया गया. 2.3 अरब डॉलर की लागत वाले पोत का वजन 44,500 टन है. इस समारोह में रक्षा मंत्री एके एंटनी और रूसी उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन तथा सरकार एवं नौसेना के वरिष्ठ के अधिकारी मौजूद थे.
रूसी समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार पोत की सुपुर्दगी से जुड़े कागजातों पर रूसी हथियार निर्यातक कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के उप निदेशक इगोर सेवास्तियानोव तथा जहाज के कैप्टन सूरज बेरी के हस्ताक्षर हैं. इस युद्धपोत को पहले 2008 में सौंपा जाना था, लेकिन बार बार विलंब होता रहा. पोत पर रूस के ध्वज को उतारा गया और इसकी जगह भारतीय नौसेना का ध्वज लगा दिया गया. परंपरागत भारतीय रिवाज के मुताबिक पोत पर एक नारियल फोड़ा गया. इसे युद्धक पोतों के एक समूह की निगरानी में दो महीने की यात्रा के बाद भारत पहुंचाया जाएगा. इसे अरब सागर में करवार तट पर लाया जाएगा.
क्या है विक्रमादित्य की खूबियां
आईएनएस विक्रमादित्य कीव श्रेणी का विमानवाहक पोत है जिसे बाकू के नाम से 1987 में रूस की नौसेना में शामिल किया गया था. बाद में इसका नाम एडमिरल गोर्शकोव कर दिया गया और भारत को पेशकश किए जाने से पहले 1995 तक यह रूस की सेवा में रहा.
284 मीटर लंबे युद्धक पोत पर मिग-29 के नौसेना के युद्धक विमान के साथ ही इस पर कोमोव 31 और कोमोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक एवं समुद्री निगरानी हेलीकाप्टर तैनात होंगे.
मिग-29 के भारतीय नौसेना को महत्वपूर्ण बढ़त दिलाएंगे. इनका रेंज 700 नॉटिकल मील है और बीच हवा में ईंधन भरने से इसका रेंज 1900 नॉटिकल मील तक बढ़ाया जा सकता है. इस पर पोत रोधी मिसाइल के अलावा हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइल एवं निर्देशित बम एवं रॉकेट तैनात होंगे.
करीब नौ वर्षों के समझौते के बाद पोत के पुनर्निर्माण के लिए 1.5 अरब डॉलर का प्रारंभिक समझौता हुआ और 16 मिग-29 के एवं के-यूबी डेक आधारित लड़ाकू विमानों के सौदे पर हस्ताक्षर हुआ. भारत और रूस के बीच संबंधों में इस विमानवाहक पोत के कारण खटास भी आई. बहरहाल दोनों देशों ने एक अतिरिक्त समझौता किया जिसमें भारत इसके पुनर्निर्माण पर ज्यादा कीमत देने पर राजी हुआ.
1998 में गतिरोध समाप्त करने के लिए रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की सरकार ने पोत को भारत को मुफ्त में देने की पेशकश की थी बशर्ते वह इसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का खर्चा दे दे. यद्यपि कार्य के प्रारंभिक मूल्यांकन में जरूरी परिश्रम की कमी के चलते उसकी कीमत काफी बढ़ गई जिससे उसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का काम रुक गया. पोत का सौदा द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ी अड़चन बन गया था. वर्ष 2007 के अंत तक दोनों देशों के बीच संबंध गिरकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गये थे जब यह स्पष्ट हो गया था कि रूस पोत की आपूर्ति वर्ष 2008 की समयसीमा तक नहीं करेगा. यद्यपि दोनों देशों ने एक अतिरिक्त समझौता किया जिसके तहत भारत पोत की मरम्मत के लिए अधिक कीमत का भुगतान करने पर सहमत हुआ.
भारतीय अधिकारियों ने निजी चर्चाओं में स्वीकार किया कि बढ़ी कीमत के बावजूद यह एक अच्छा सौदा होगा क्योंकि उसकी तरह का पोत अंतरराष्ट्रीय बाजार में दोगुनी से कम कीमत पर नहीं मिलेगा लेकिन कोई भी विमानवाहक पोत निर्यात के लिए नहीं बनाता. आईएनएस विक्रमादित्य पर स्वदेशी निर्मित एवं विकसित एएलएच ध्रुव हेलीकाप्टरों के साथ सीकिंग हेलीकाप्टरों की भी तैनाती होगी. आईएनएस विक्रमादित्य पर 1600 कर्मियों की तैनाती रहेगी और यह वस्तुत: समुद्र पर एक ‘तैरते शहर’ की तरह होगा. इसकी साजोसामान की जरूरत भी काफी होगी जैसे एक महीने में इस पर करीब एक लाख अंडे, 20 हजार लीटर दूध ओर 16 टन चावल की खपत होगी.
नौसेना की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘पूर्ण खाद्य सामग्री के साथ यह पोत समुद्र में 45 दिन तक रह सकता है.’ विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘आठ हजार टन भार क्षमता के साथ पोत सात हजार समुद्री मील या 13 हजार किलोमीटर की दूरी तक अभियान में सक्षम है.’ पोत को ऊर्जा आठ बायलरों से मिलती है और यह पोत अधिकतम 30 नॉट प्रतिघंटे की गति हासिल कर सकता है. सेवमेश शिपयार्ड के चीफ डिलीवरी कमिश्नर इगोर लियोनोव ने कहा, ‘विक्रमादित्य पर लगभग सभी चीज नयी है.’
लियोनाव ने सेवमेश में कहा कि पोत का करीब 40 प्रतिशत पेंदा मूल वाला है बाकी पूरी तरह से नया है. उन्होंने कहा, ‘नौसेना ने पोत की मरम्मत और आधुनिकीकरण की पूरी प्रक्रिया के दौरान अपने इंजीनियरों और तकनीशियनों को पोत पर तैनात किये रखा. नौसेना ने कई उपकरणों, पुर्जें और पूरी केबलिंग की मरम्मत करने की बजाय उसे बदलने का सही निर्णय किया.’ लियोनोव विक्रमादित्य की भारत में पश्चिमी तट स्थित करवार स्थित आधार पहुंचने के लिए लगभग दो महीने की यात्रा के दौरान उस पर तैनात गारंटी टीम का नेतृत्व करेंगे.