मौजूदा कैश संकट की एक बड़ी वजह 2000 के नोटों की जमाखोरी को माना जा रहा है. सच तो यह है कि 2000 के नोट पिछले साल के मध्य से ही नहीं छापे जा रहे. ऐसे में इस बड़े नोट की जमाखोरी और सभी एटीएम 200 रुपये के नोट वितरण के लिए तैयार नहीं होने की वजह से खेल काफी बिगड़ गया और देश के कई हिस्सों में एटीएम खाली दिखने लगे.
2000 के नोट साल 2016 में नोटबंदी के दौरान लाए गए थे ताकि अर्थव्यवस्था की हालत में तेजी से सुधार हो सके. एक बार फिर कैश की किल्लत को देखते हुए मंगलवार को सरकार और रिजर्व बैंक ने काफी सक्रियता दिखाई और उन इलाकों में कैश भेजने की कोशिश की, जहां इसकी तंगी हो गई थी.
सरकार का दावा है कि नकदी की कोई कमी नहीं है और कुछ ही राज्यों में एटीएम में कैश उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन सच तो यह है कि देश के सभी हिस्सों में आम जनता को नकदी की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि 2000 के नोटों की छपाई पिछले साल के मध्य से ही बंद है. आंकड़ों के मुताबिक इस समय मार्केट में 6.7 लाख करोड़ मूल्य के 2000 के नोट सर्कुलेशन में हैं. यह सर्कुलेशन में जारी कुल 18.04 लाख करोड़ मूल्य के नोटों का एक तिहाई हिस्सा है. इस तरह समय बाजार में कैश 2016 की नोटबंदी से चार दिन पहले सर्कुलेशन में मौजूद 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोटों की तुलना में ज्यादा ही हैं.
सूत्रों के मुताबिक सरकार को ऐसी रिपोर्ट मिली कि बड़ी मात्रा में बैंकों से निकाले गए 2000 के नोट मार्केट में वापस नहीं आ रहे हैं. यानी एक तरह से इनकी जमाखोरी की जा रही है. इसकी वजह से कुछ महीनों पहले ही सरकार और रिजर्व बैंक ने निर्णय लिया कि 2000 के नए नोट नहीं जारी किए जाएंगे. बड़े नोट की जमाखोरी रोकने और इस नोट पर सिस्टम की निर्भरता को कम करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि 200 के नोट ज्यादा से ज्यादा जारी किए जाएं.
200 के नोट वितरण के लिए तैयार नहीं सभी एटीएम
मुश्किल को दूर करने के लिए सरकार की योजना ज्यादा से ज्यादा 500, 200 और 100 के नोट सर्कुलेशन में लाने की है. हालांकि अभी सभी एटीएम मशीन 200 के नए नोट रखने के लिए कैलिब्रेट नहीं हो पाए हैं यानी उनमें बदलाव नहीं हो पाया है. कुछ इलाकों में तो महज 30 फीसदी एटीएम ही 200 के नोटों के वितरण के लिए तैयार हैं. इसकी वजह से इन इलाकों में संकट शुरू हुआ, क्योंकि 2000 के नोट कम थे और 200 के नोट पर्याप्त संख्या में वितरित नहीं किए जा सकते थे.
अप्रैल में खूब कैश निकाल रहे लोग
आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव सुभाष गर्ग ने मंगलवार को कहा कि देश में नकदी की कोई कमी नहीं है और करीब 1.75 लाख करोड़ मूल्य की करेंसी रिजर्व में है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर एक महीने में 20,000 करोड़ रुपये कैश की मांग होती है, लेकिन अप्रैल के पहले 13 दिनों में ही 45,000 करोड़ रुपये निकाले गए.
बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता अश्विनी राणा ने भी कहा कि एटीएम 200 के नोट वितरित करने के लिए कैलिब्रेट नहीं किए गए हैं और 2000 के नोटों की बड़े पैमाने पर जमाखोरी हो रही है. बड़े नोट बैंकों में वापस नहीं आ रहे.
पांच गुना बढ़ेगी 500 के नोटों की छपाई
सचिव सुभाष गर्ग ने कहा कि सरकार ने 500 के नोटों की छपाई भी बढ़ाने का निर्णय लिया है. अभी हर दिन 500 करोड़ मूल्य के 500 रुपये के नोटों की छपाई की जाती है (1 करोड़ पीस), लेकिन अब सरकार हर दिन 2500 करोड़ मूल्य के नोटों (5 करोड़ पीस) की छपाई करेगी.
नोटबंदी से नहीं हुई कैशलेस इकोनॉमी, बढ़ी नकदी की मांग
वित्त मंत्री कह रहे हैं कि सामान्य से ज्यादा मांग की वजह से यह किल्लत हुई है. रिजर्व बैंक के स्रोत कहते हैं कि कई राज्यों में त्योहारों और अन्य वजहों से कैश की मांग काफी बढ़ गई.
Have reviewed the currency situation in the country. Over all there is more than adequate currency in circulation and also available with the Banks. The temporary shortage caused by ‘sudden and unusual increase’ in some areas is being tackled quickly.
— Arun Jaitley (@arunjaitley) April 17, 2018
लेकिन सच तो यह है कि सरकार और रिजर्व बैंक इस संकट का अंदाजा लगाने में विफल रहे हैं. कैश मैनेजमेंट और ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर से जुड़े लोग बताते हैं कि नोटबंदी के 18 महीने बाद हालत यह है कि लोगों की नकदी पर निर्भरता और बढ़ी ही है. इस फील्ड के जानकार कहते हैं कि नोटबंदी के बाद अब ज्यादा लोग नकदी में लेनदेन कर रहे हैं और कैश का इस्तेमाल 30 से 35 फीसदी बढ़ गया है.