पहले रेल मंत्री पवन कुमार बंसल की रेल पटरी से उतरी, फिर घंटे भर बाद ही कानून मंत्री अश्विनी कुमार को गैर-कानूनी काम महंगा पड़ गया. देर रात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अश्विनी कुमार ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया.
अश्विनी कुमार के इस्तीफे की कहानी
कानून मंत्री से इस्तीफा दिलवाने के लिए कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. खबरों के मुताबिक, रेल मंत्री के इस्तीफे के लिए कांग्रेस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी, लेकिन अश्विनी कुमार इस्तीफे के लिए आसानी से तैयार नहीं हुए. वे आखिरी वक्त तक अपनी सफाई देते रहे.
सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री से मुलाकात से पहले अश्विनी कुमार ने अहमद पटेल से मुलाकात की और अपनी सफाई देने की भरपूर कोशिश की. अश्विनी ने पूछा कि आखिर मेरा कसूर क्या है? अश्विनी कुमार ने कहा कि सोनिया जी इस्तीफा नहीं चाहती और इस मामले पर उनसे बात की जा सकती है. इस पर अहमद पटेल ने कहा कि नहीं फैसला हो चुका है और पार्टी में भी भारी दबाव है.
अश्विनी कमार ने फिर कहा कि पार्टी में भी बात की जा सकती है. इस पर अहमद पटेल ने कहा कि फैसला हो चुका है. सूत्र बताते हैं कि ये पूरा ड्रामा करीब 50 मिनट तक चलता रहा, तब जाकर अश्विनी कुमार इस्तीफे के लिए तैयार हुए.
पवन बंसल के इस्तीफे की कथा
सूत्रों के मुताबिक, पवन बंसल ने भी सफाई देने की कोशिश की थी. यही नहीं उन्होंने इस्तीफे की पेशकश भी की थी. 4 मई को उन्होंने प्रधानमंत्री को एक पन्ने की चिट्ठी लिखकर अपने भांजे की गिरफ्तारी को लेकर सफाई दी थी.
बंसल ने कहा था कि वो इस्तीफा देना चाहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें इंतजार करने को कहा. परंतु, 10 मई को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और माना जा रहा है कि इसी मुलाकात में पवन बंसल के इस्तीफे पर फैसला लिया गया. इसके बाद पवन बंसल रेल मंत्रालय गए और अपना इस्तीफा भेजा.
क्यों देना पड़ा अश्विनी कुमार को इस्तीफा?
लाखों-करोड़ों रुपये के कोयला घोटाले में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में बदलाव कराना कानून मंत्री को महंगा पड़ा. इसी साल 8 मार्च को कोयला घोटाले के मामले में सीबीआई की ओर से एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाना था. कहीं वो हलफनामा सरकार के गले की हड्डी ना बन जाए, इसलिए उससे पहले ही चार दौर की ऐसी हाईप्रोफाइल बैठकें हुईं, जिसमें से दो में खुद कानून मंत्री मौजूद थे.
इसी साल फरवरी में एक दिन कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती, सीबाई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा और तत्कालीन एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल की एक गुप्त बैठक कानून मंत्री के दप्तर में हुई. उस बैठक में तय किया गया कि मामले को गुप्त रखने के लिए सीबीआई की रिपोर्ट को हलफनामे के रूप में भेजने की जगह एक सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने 24 जनवरी को कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी.
लेकिन, कानून से खिलवाड़ करने में कानून मंत्री इतने पर नहीं रुके. 6 मार्च को कानून मंत्री के दफ्तर में एक बार फिर अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती, सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा, तत्कालीन एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल, सीबीआई के ज्वाइंट सेक्रेट्री ओ पी गलहोत्रा और सीबीआई के डीआईजी रविकांत की बैठक हुई. अश्विनी कुमार ने वहां स्टेटस रिपोर्ट में कुछ बदलाव के सुझाव दिए. मंत्रीजी का हुक्म मानते हुए स्टेटस रिपोर्ट से स्क्रीनिंग कमेटी के कुछ चार्ट हटा दिए गए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई. कांग्रेस और सरकार पहले तो अश्विनी कुमार का बचाव करते रहे, लेकिन पानी सिर के ऊपर जा पहुंचा, तो मंत्रीजी की कुर्सी की कुर्बानी लेनी पड़ी. पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार पीएम मनमोहन सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं, लेकिन इत्तेफाक देखिए कि प्रधानमंत्री के दोनों करीबी मंत्रियों को एक साथ जाना पड़ा.
क्यों पटरी से उतरी रेल मंत्री की कुर्सी?
आखिर, 3 मई को शुरू हुए हाईप्रोफाइल सियासी ड्रामे का अंत 10 मई को हो ही गया. सबसे पहले पवन बंसल का भांजा विजय सिंगला रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार हुआ, और फिर बाद में उसकी लपटों में पवन बंसल भी घिरते चले गए.
घूस की चिंगारी से भड़की आग ने पवन बंसल को भी झुलसा दिया. 3 मई की रात को सीबीआई के बड़े खुलासे और कार्रवाई के बाद उठे बवंडर ने बवाल मचा दिया. एक सप्ताह की उठापठक के बाद पवन बंसल को इस्तीफा देने के लिए आखिरकार कांग्रेस हाईकमान को कहना ही पड़ा.
आरोपों की कड़ी पवन बंसल के भांजे विजय सिंगला से शुरू हुई, जिसका एक सिरा बाद में मामा पवन बंसल से भी जुड़ता नजर आया. 3 मई को ही सीबीआई ने चंडीगढ़ और मुंबई में चार लोगों को गिरफ्तार किया. मामला रेल मंत्रालय में करोडों के घूसकांड से जुड़ा है और पवन बंसल के भांजे विजय सिंगला को सीबीआई ने 90 लाख की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया.
सीबीआई के मुताबिक विजय सिंगला और रेलवे बोर्ड मेंबर महेश कुमार के बीच 10 करोड़ रुपए की डील हुई थी, जिसके मुताबिक विजय सिंगला ने महेश कुमार को रेलवे बोर्ड मेंबर इलेक्ट्रिकल बनवाने का वादा किया था. इसी डील के तहत 3 मई को सीबीआई ने रिश्वत की पहली किश्त के तौर पर दिए गए 90 लाख रुपये जब्त किए.
पवन बंसल और महेश कुमार के बीच भी कई बार मुलाकात के सबूत सामने आ चुके हैं. 7 अप्रैल को दिल्ली में मिले थे पवन बंसल और महेश कुमार, जबकि 17 अप्रैल को भी मुंबई में पवन बंसल और महेश कुमार के बीच मुलाकात की जानकारी सामने आ चुकी है.
जीएम से रेलवे बोर्ड मेंबर बनने के क्रम में भी महेश कुमार को वक्त से पहले प्रमोशन मिला और सूत्रों के मुताबिक इस प्रमोशन में भी पवन बंसल की सिफारिश काम आई थी. इतना ही नहीं, पवन बंसल के निजी सचिव और विजय सिंगला के बीच फोन पर 40 बार बात हुई थी, जिसमे महेश कुमार से जुड़ा मुद्दा सबसे अहम था.