शरद ऋतु का आगमन हो चला था. मटर, निर्गुण ब्रह्म, और अच्छे दिन अब भी आम आदमी की पहुंच से बाहर थे. लौकी-करेले की कोपलें छप्पर-छानी को और गोभी के दाम आसमान को छू रहे थे. बोरोप्लस के अभाव में नवजातों के कोमल गाल परपराना शुरू हो गए थे.
सयानों के जोड़ों का दर्द करवट मारने लगा और जवान सुबह की गुलाबी ठण्ड से बचने को लिहाफों में दुबके थे. ऐसी ही एक सुबह आशु मुनि, परमपूज्य साहिलेश्वर का किवाड़ खटखटा रहे थे. साहिलेश्वर ने चीकट हो चुकी रजाई को एक ओर लतिआया और रात भर में मुंह पर जम चुके लार को पोंछते हुए दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही आशु मुनि चरणों पर लोट पड़े.
साहिलेश्वर ने रूखा सा आशीर्वाद फेंकते हुए पूछा, 'अब कौन-सा पहाड़ टूट पड़ा?'
आशु मुनि उवाचे, 'प्रभु अर्ली मॉर्निंग की जिज्ञासा है, ये गुलाबी ठण्ड क्या होवे है?'
साहिलेश्वर झल्लाए, 'अबे मॉर्निंग मोरोन सिर्फ इतना पूछने तो तुम इतनी ठण्ड में आए नहीं हो कम टू द पॉइंट ड्यूड, सीधे-सीधे बको! क्या पूछना है?'
आशु मुनि- अब का कहें, सुबह-सुबह बड़े हर्ष का समाचार मिला प्रभु. सुना है भारत सरकार सारी पोर्न साइट्स पर ताले लगाने जा रही है.
साहिलेश्वर- पर हर्ष तो कहीं झलक नहीं रहा है तुम्हारे थोबड़े पर?
आशु मुनि– प्रभो! लेग पुलिंग मत कीजिये न प्लीज, बात तो पूरी सुनिए देन टेल मी समथिंग.
साहिलेश्वर तब तक दातून चबा चुके थे. मुंह पोंछते हुए बोले– ओक्के, ओक्के पिनपिनाओ नहीं,सवाल दागो.
आशु मुनि- सवाल नहीं बड़ा संशय है महाराज. संशय भी क्या समस्या है, ये पोर्न साइट्स देखता कौन है?
साहिलेश्वर कैजुअली बोले– तुम देखते होगे बे.
आशु मुनि– प्रभूऊऊ...समस्या विकट है आप समझ नहीं रहे हैं. हम जैसों को तो दिनभर एंजल प्रिया से चैटियाने से फुर्सत नहीं मिलती. बाद में स्कूल-कॉलेज के टंटे, फिर इधर देखा भी तो हॉलीवुड की कोई पिच्चर टोरेंट पर डाउनलोड लगा सो जाते हैं. बाकी बाजार भाव आप को पता है सैकड़ों रुपयों में रत्ती भर डाटा मिलता है. इंसान पोर्नियाए कि व्हाट्सएप, हाइक, वी-चैट के मैसेज पढ़े चुल्लू भर डाटा में.
साहिलेश्वर– रे मूढ़मति तो तेरी समस्या क्या है? एन्जल प्रिया, महंगा इन्टरनेट, हॉलीवुड की फिलिम या पोन्नोगिराफी सीधे बताओ, काहे अतना खदबदाय रहे हो?
आशु मुनि- हे चैतन्यनेटप्रतापी चिर3Gधर, मॉलवेयरहर्ता, वायरसविनाशक, त्रिब्राउजरधारी साहिलेश्वर महाराज समस्या ये है कृपानिधान कि हम तो हो गए व्यस्त करने में समय नष्ट, अब कौन माई का लाल रह गया पोर्न देखने को, है कौन वो पथभ्रष्ट?
साहिलेश्वर- बहुत हैं, बहुत हैं...एक तुम ही तो अकेले नहीं हो ठरकी दुनिया में.
आशु मुनि- तात यही तो पेच है. बाकी इंटरनेट के जंगलों में जो मिलते हैं, वो बड़ी ऊंची चीज हैं, या तो धर्मरक्षक हैं या किसी दल के दल...
साहिलेश्वर- शटअप, आगे मत बोलना, समझ गया मैं तुम्हारी शंका, इसका समाधान है मेरे पास, गीगाबाइटों स्पेक्ट्रम के निचोड़ से प्राप्त ज्ञान का ये सार अब जो मैं कहता हूं, उसे कान खोल कर सुनो और ये बत्तीसी चियारना बंद करो बे..
(इसके बाद साहिलेश्वर स्थिर और गंभीर वाणी में बोले) बालक इन्टरनेट के अरण्य में विचरण करते हुए अब तक तुम्हें जो भी जीव-जंतु मिले होंगे वो बुद्धूजीवी रहे होंगे. ‘फलां धर्म खतरे में है’ रेंकने वाले धर्मरक्षक, नहीं तो ‘हम लाएंगे पूर्ण स्वराज वाया ढिकाना दल’ वाले ‘दलिद्र’ या कुछ शिकारी प्राणी जिन्हें हैकर कहते हैं. लेकिन ठरकपन कौन कब तक दबा पाया है? अन्दर से तो वैसे ही हैं न! सामने न सही Incognito Mode पर तो बेचारे खुद का सामना करते हैं. जो सुदेसी-सुदेसी अलापते हैं, वो दूसरी टैब पर नौ-घटी अमेरिका हो आते हैं. जिन्हें तुम सोचते हो इतिहास बनाएंगे, वो इतिहास मिटाते रह जाते हैं. सुबह चाय में बिस्कुट बाद में डुबोएंगे, कुकीज पहले साफ करेंगे. और ये पढ़ाई का रोना न रोया करो, हर जगह जो कम पढ़े हैं वो भी 'I understand and wish to continue' को छोड़ Cancel नहीं दबाते.
आशु मुनि- अच्छा तो चक्कर ये है. ये पूर्ण स्वराज के झंडाबरदार पोर्न स्वराज की ओर मुंह मारते हैं, लेकिन देव अब सरकार जब ताले जड़ देगी तब क्या होगा इनका?
साहिलेश्वर– देखते जाओ, पूरक विचारों की बाढ़ आने वाली है, जो दुखी होंगे वो सरकार के कदम पर स्तुतिगान करते नजर आएंगे. सभ्यता बच गई, धर्म की विजय हुई, नारी का सम्मान लौट आया, बालमन पर बुरे असर न होंगे ईटीसी, कुछ जो ज्यादा तिलमिला जाएंगे, वो ‘इससे तो व्यभिचार और बढ़ेंगे’ बकरते दिखेंगे.
आशु मुनि– बेहतर है प्रभु, देखते हैं आगे. वही कहूं कि महंगाई के जमाने में तो लम्पटई भी बस पैसे वाला ही कर सकता है.
साहिलेश्वर- ठीक है, बहुत जनकवियों की भाषा न बोलो, अच्छा सुनो आज घर से निकलने का मूड नहीं है. टेशन तरफ जाना तो सरस सलिल लिए आना...और ये फोन छोड़ो बे हमारा हिस्ट्री भी डिलीट न किएं हैं अभी.