अमेरिका के बोस्टन हवाईअड्डे पर जब उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री आजम खान से बदसलूकी की गई तो उन्होंने कहा कि मुसलमान होने के कारण उन्हें ये बदतमीजी झेलनी पड़ रही है. इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता पीयूष बबेले को 6 मार्च को हुई बातचीत में आजम खान ने देश में मुसलमानों के साथ होने वाले बर्ताव पर खुलकर अपनी बात रखी थी. उन्होंने यहां तक कहा था कि मुसलमानों को देश में आज भी गद्दार समझ जाता है. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
सीओ जिया उल हक की हत्या लॉ एंड ऑर्डर का सवाल तो है ही. लेकिन पीछे मुड़कर देखें तो एक साल में हुए कई दंगों में लगातार मुस्लिम निशाना बने? क्या इससे मुलायम सिंह यादव और उनके साहबजादे अखिलेश यादव से मुसलमानों का भरोसा टूटेगा नहीं?
क्या आप ये समझते हैं कि सरकार ने बहुत खुशी महसूस की होगी इन दंगों में? जो सरकार मुसलमानों के सहयोग से, पिछड़ों के सहयोग से, कमजोरों के सहयोग से सत्ता में आई हो, वह सरकार मुसलमानों को दंगे करके मारकर खुद को बर्बाद करना चाहेगी.
आखिर ये भी तो सोचिए कौन लोग हैं इसके पीछे. उन लोगों को रोकने के लिए दो तरीके हो सकते हैं. एक तो ये कि जैसी कार्रवाई दहशतगर्द करते हैं, कोई डिक्टेटर करता है, वैसी कार्रवाई की जाए. लोकतंत्र में उसके लिए जगह नहीं है. सरकार ने जो भी कार्रवाई की कानून के दायरे में की. दंगा करने वालों ने एक मिशन बना लिया कि हम इस सरकार को बदनाम करके रहेंगे. सरकार पूरी ईमानदारी से अपनी कार्रवाई को अंजाम देने में लगी है.
कोई भी समझदार मुसलमान भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की तुलना में समाजवादी पार्टी को ज्यादा मुजरिम नहीं ठहराएगा. चाहे वो बरेली के दंगे हों या फैजाबाद के. फैजाबाद में क्या हुआ था? इस बात पर भाजपा से बड़ी कहासुनी हुई है. एक पढ़े लिखे एमएलए से बहस हुई कि लडक़ा अगर लडक़ी को घर में घुसकर छेड़ेगा तो अंजाम यही होगा. लेकिन लडक़ा अगर लडक़ी को छेड़ेगा तो इसके लिए कानून है. काननू उसको सजा देगा. मंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में हमें सजा देने का हक नहीं है. यह अदालत का हक है.
भाजपा जुर्म की सजा भी देती है तो बेगुनाहों को देती है. आपने सैकड़ों मुसलमानों की दुकानें खाक कर दीं. मारने के बजाय आपने उन्हें खाक में मिलाने का काम कर दिया. अभी चार रोज पहले अंबेडकर नगर में दंगा हुआ. ये समझने की कोशिश नहीं की कि हत्या किसने की? ये समझ लिया गया कि विश्व हिंदू परिषद के नेता की हत्या हुई तो इसे किसी मुसलमान ने मारा होगा. ये कितनी बदनसीबी है हमारी.
तो क्या आप इसे भाजपा और दक्षिण पंथी संगठनों की साजिश बता रहे हैं?
ये एक ज्वाइंट स्ट्रेटजी है. कांग्रेस भी बेगुनाह नहीं है. 2014 में समाजवादी उनकी बड़ी चुनौती है उत्तर प्रदेश में. इसलिए सब मिलकर उत्तर प्रदेश सरकार को गैर पाएदार करने में और स्टेबिलिटी को कमजोर करने में लगे है.
तो क्या उत्तर प्रदेश सरकार कानून के दायरे में दंगाइयों को रोक पाने में अक्षम है?
रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई बड़ा फसाद न हो जाए, ये भी देखना है. क्योंकि आप ये भी जानते है कि ये प्रदेश 30 अक्टूबर 1990 और 6 दिसंबर 1992 जैसी कई तारीखें देख चुका है. उसका बड़ा नुकसान कमजोरों को ही हुआ. छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर गिरे, नुकसान खरबूजे का ही होना है. ये एक पहलू है लॉ एंड ऑर्डर का.
दूसरा पहलू है इकॉनामिकली वीकर लोगों को पैरों पर खड़ा करना. जिन्हें हमेशा अपमानित किया गया. सपा के राज में इन लोगों को सम्मान मिला, दहशत से आजादी मिली, पढ़ाई के मौके मिले, उनकी यूनिवर्सिटी को मान्यता मिली, उनके मदरसों को ग्रांट मिली, उनकी बच्चियों को अनुदान मिला, कन्या विद्याधन मिला, मुसलमान कर्जदार किसान को दैवीय आपदा में पांच लाख रुपए मिले. जो दंगे में मारा गया उसकी जिंदगी की वापसी तो नहीं कर सके लेकिन उसके कटे हुए पैरों को तो बैसाखी देने का काम हुआ.
मुस्लिम समाज में कितने लोग हैं जो रिक्शा चलाते हैं. क्या समाज ने कभी सोचा उनके लिए. हम पैरों से चलाने वाले रिक्शा की लानत को खत्म कर देंगे. ढाई लाख बैठरी वाले रिक्शे दिए हैं. सबसे अच्छे रिक्शों की प्रोडक्टशन कराएंगे. अगले तीन से छह महीने में ये काम जमीन पर दिखाई देगा.
आपने खुद माना है कि जिया उल हक के रूप में 21 साल बाद कोई मुसलमान प्रदेश में पीसीएस बना और वह भी मार दिया गया. इससे मुस्लिम समाज को कितना नुकसान हुआ?
21 साल बाद हममें से एक पीसीएस हुआ है. हमारे बीच का अगर कोई इस स्तर का पुलिस अधिकारी कत्ल किया जाता है तो हमें सोचना होगा कि आखिर हमारा भविष्य क्या है? ये सवाल सिर्फ किसी राजनीतिक दल के लिए नहीं हैं, पूरे समाज के लिए है. हम सन् 1947 में पाकिस्तान नहीं गए, यूपी से कोई पाकिस्तान गया नहीं है. जिन्ना साहब का पाक का नारा तो फेल हो गया. पाकिस्तान गए डेढ़ फीसदी की सजा साढ़े 98 फीसदी को दी जाएगी? क्या हमारे साथ इंसाफ होगा? मौलाना आजाद थे हमारे नुमाइंदे, जिन्ना नहीं थे. देश नहीं बंटता तो बंटवारे के नाम की नफरतें नहीं होती और जो आज हमारे साथ हो रहा है, वो नहीं होता. सबसे ज्यादा लूजर हम हैं, नुकसान तो सिर्फ हमारा हुआ है. बंटवारा हुआ तो अपने ही वतन में गद्दार कहलाए. कितना भी दिल निकालकर दे दें, यही कहा जाएगा कि अब दे रहे हो जब धड़क नहीं रहा है. हम तो जान से गए और जिसे दिल दिया उसने कद्र नहीं की.
क्या आप यह कहना चाह रहे हैं, कि भारत में मुसलमानों से सौतेला व्यवहार होता है?
सौतेला तो नहीं, लेकिन समझने में गलती हुई. लेकिन जिस दिन ये समझ लिया जाएगा कि जितना हक हिंदुस्तान में अटल बिहारी वाजपेयी साहब का है, सोनिया गांधी का, मनमोहन सिंह और मुलायम सिंह यादव का है उतना ही हक मुसलमान का है तो सारे मसले खुद खत्म हो जाएंगे. लेकिन कैसे खत्म हो जाएं. जब ये कहा जाएगा कि बच्चा बच्चा राम का कुर्बानी के काम का, राम का बदला लेना है बाबर की औलादों से. कैसे बनाएंगे गुजरात में सरकार? कैसे देखेंगे दिल्ली में सरकार बनाने का सपना? तो जिनके पास इन नारों के सिवा कुछ है नहीं उन्हें कौन सद्बुद्धि दे. आज इस बात पर विधानसभा से वाकआउट कर गए भाजपा के लोग कि एक मुसलमान को महाकुंभ आयोजन समिति का अध्यक्ष क्यों बन गया?
सपा ने वादा किया था कि आतंकवाद के आरोप में बंद बेगुनाहों को रिहा कराया जाएगा. इस वादे पर ज्यादा अमल क्यों नहीं हो सका?
जो बहुत ही मेन टेररिस्ट एक्टिविटी हुई और फिर लिंक्ड गिरफ्तारियां हुईं जो बेगुनाह इंगित हुए उन में पुलिस ने अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश की. लेकिन बहुत हाइलाइटेड केसों में भी तरीका तो यही होगा अब फैसला अदालत के हाथ है. इसमें हमारा कोई दखल नहीं है.
पुलिस से ज्यादा पूवाग्रहरहित....
जो लोग मुसलमानों पर आतंकवादी होने का इल्जाम लगाते हैं. जो लोग यह कहते हैं कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान है. वो अभिनव भारत को भूल जाते हैं. और वो ये भूल जाते है कि जब दिल्ली की सडक़ों पर सामूहिक बलात्कार के मामले को लेकर सारे हिंदुस्तान का नौजवान पंजों पर खड़ा हो जाता है और सरकार से एक मजबूत कानून की मांग करते है और और ये लगने लगता है केंद्र सरकार को कि तहरीर चौक की तरह कोई इंकलाब आ जाए. तभी सरहदों पर अचानक दो सर उतर जाते हैं. और अगले दिन कोई मामला नहीं रहता और बात खत्म हो जाती है. हमने ये बात उस वक्त भी कही लेकिन हमारी बात का किसी ने नोटिस लिया ही नहीं. खामोश हो गए.
ये सवाल जो आपने उठाया तो क्या ये सवाल आपकी पार्टी को संसद में नहीं उठाना चाहिए था?
मैं इस पर कुछ कह नहीं सकता.
लेकिन ये तो बताइए कि आपके नेताजी ने संसद में भाजपा से सशर्त साथ आने की बात क्यों उठाई? क्या भाजपा के साथ रिश्तों की गुंजाइश है?
भाजपा के लिए कोई गुंजाइश का कोई सवाल ही नहीं उठता हो. न ऐसा हमारा इतिहास है. भारतीय जनता पार्टी को यह अहसास दिलाना था, हमारे नेता को, उन्हें पूरे देश को यह दिखाना था कि इन लोगों के पास और इन लोगों की दुकान में नफरत के सिवाय कोई सामान नहीं है. इन्हें कितना भी पुकारो ये अंधे हैं ये बहरे हैं ये बिना पैरों के हैं इनके हाथ नहीं है ये फासिस्ट थे और फासिस्ट रहेंगे.
क्या आपको नहीं लगता कि मोदी के मिशन 2014 से मुस्लिम कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं?
उत्तर प्रदेश के हालात बिलकुल अलग हैं. सपा की खुद अपनी पहचान की मजबूत पार्टी है. भाजपा-कांग्रेस का जनाधार नही हैं. पिछली बार समाजवादी पार्टी को नुकसान कांग्रेस की वजह से नहीं हुआ था, पिछली बार मुसलमान कन्फ्यूज हो गया था किसी खास वजह से..
यानी आप उस समय पार्टी में नहीं थे इसलिए मुस्लिम कन्फ्यूज हुआ?
ये सब कहने का वक्त नहीं है. बात की बड़ी कड़वाहट होगी. लेकिन मुसलमान कन्फ्यूज हो गया था, अगर वो कन्फ्यूजन कायम रहता या मुसलमानों के दिल में कांग्रेस के लिए जगह होती तो फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति पाया कम और खोया ज्यादा की नहीं होती. तो क्या हम यही उम्मीद आगामी लोकसभा चुनाव में भी करें.