इराक के मोसुल में मारे गए जिन 38 भारतीयों के अवशेषों को लाकर उनके परिवारों को सौंपा गया, उनमें से 27 अकेले पंजाब से थे. इराक में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के हाथों मारे गए ये लोग काम की तलाश में इराक गए थे. जाहिर है कि स्वदेश में बेरोजगारी की मार ने ही इन्हें ऐसी खतरनाक जगह काम के लिए जाने को मजबूर किया. उनके परिवारों ने भी कलेजे पर पत्थर रख कर इन्हें वहां भेजा. लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके लाडले वतन लौटेंगे तो मौत के ताबूतों में बंद हो कर.
इराक से लाए गए 38 अवशेषों में जालंधर के आदमपुर में रहने वाले सुरजीत मनेका का अवशेष भी था. ड्राइवर और हेल्पर के तौर पर काम करने वाला सुरजीत विदेश में अच्छा कमाने की आस के साथ एक ट्रेवल एजेंट के चक्कर में फंस गया. उसने पैसे ऐंठ कर सुरजीत को अफगानिस्तान भेजने का वादा किया लेकिन पहुंचा दिया दुबई.
सुरजीत के भाई ओमप्रकाश के मुताबिक सुरजीत ने 2013 में तीन महीने बहुत मुश्किल से दुबई में गुजारे. सुरजीत यही इंतजार करता रहा कि एक दिन उसे अफगानिस्तान भेजा जाएगा. दुबई जैसे महंगे शहर में सुरजीत सीमित पैसे के साथ कैसे ज्यादा दिन गुजार सकता था. थक हार कर वो भारत लौट आया. भारत आने के बाद उसने परिवार वालों के साथ ट्रेवल एजेंट को पकड़ा. ओमप्रकाश की मानें तो ट्रेवल एजेंट ने मामले को सुलझाने के लिए सुरजीत को कुवैत भेजने की पेशकश की. साथ ही 45,000 रुपए की और मांग की. सुरजीत फिर झांसे में आ गया. इस बार उसे कुवैत की जगह इराक भेज दिया गया.
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ओमप्रकाश ने बताया कि सुरजीत इराक से लगातार फोन पर बताता रहता था कि वहां कितने मुश्किल हालात हैं. सुरजीत को इराक ले जाया तो गया, ड्राइवरी के लिए लेकिन जबरन मजदूरी कराई जाती थी. काम न करने पर भूखा रख कर सजा दी जाती.
सुरजीत की आपबीती सुनकर ओमप्रकाश और परिवार के बाकी सदस्य उसे भारत लौट आने के लिए कहते. सुरजीत का उस पर यही जवाब होता कि वहां के जैसे हालात हैं उसमें लौट आना भी मुमकिन नहीं है.
सुरजीत ने जून 2014 में आखिरी बार भाई ओमप्रकाश को फोन किया था. सुरजीत ने उस कॉल में कहा था कि उसे नहीं पता कि वो कभी जिंदा घर लौट भी सकेगा या नहीं. तब सुरजीत ने एक वीडियो भी भेजा था जो उस वक्त इराक के विस्फोटक हालात की खुद गवाही देता था. उस वीडियो में एक इमारत से काला धुआं उठने के साथ धमाके साफ सुनाई देते हैं. जालंधर के सुरजीत से ही मिलती जुलती पंजाब के बाकी 26 लोगों की भी कहानी है जिनके अवशेष इराक के मोसुल से लाए गए.
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इतना सब जानने-सुनने के बाद भी जालंधर के नौजवानों का कहना है कि वे जान दांव पर लगा कर भी विदेश जाने को तैयार हैं. इसकी वजह भी वे साफ करते हैं. वजह है बेरोजगारी और परिवार के लिए 2 जून की रोटी जुटाने की फिक्र.
सुरजीत के भाई ओमप्रकाश के मुताबिक उनके इलाके में इतनी बेरोजगारी है कि लोग करें तो और करें क्या? ये लोग बच्चों को भूख से बचाने के लिए हर तरह का खतरा उठाने को तैयार हैं. बेरोजगार युवा कहते हैं कि रोजी रोटी के लिए वे अभी भी इराक हो या और कोई खाड़ी देश, जाने से परहेज नहीं करेंगे. परिवार का पेट पालने के लिए और कर्ज उतारने के लिए ऐसा करना उनकी मजबूरी है.
सुरजीत के गांव आदमपुर में ही रहने वाले देवेंद्र पाल कुवैत से हाल में ही वतन लौटे हैं. देवेंद्र के मुताबिक कुवैत में वे करीब डेढ़ साल रहे. जहां देवेंद्र काम करते थे वो जगह पहले इराक में ही थी लेकिन बाद में उस पर कुवैत का नियंत्रण हो गया. देवेंद्र के मुताबिक वहां काम के दौरान कई बार मानव कंकाल भी उन्हें दिखाई दिए. कई बार जिंदा बम भी वहां मिले.
देवेंद्र के मुताबिक घर के जरूरी कामों की वजह उन्हें लौटना पड़ा. देवेंद्र का कहना है कि उन्हें फिर मौका मिला तो वो इराक तो नहीं, कुवैत या और किसी खाडी देश में चले जाएंगे. क्योंकि ये मजबूरी है, जहां चाहे ले जाएगी. हालांकि देवेंद्र ये भी कहते हैं कि अब पहले से वहां हालात सुधरे हैं.
आदमपुर में ही रहने वाला रॉकी बेरोजगार है. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो नौकरी करने के लिए खाड़ी देशों में जाना चाहता था. लेकिन मोसुल में जो सुरजीत जैसे भारतीयों के साथ जो हुआ, वो जानने के बाद रॉकी ने वतन से बाहर जाने का इरादा त्याग दिया है. रॉकी के मुताबिक वो यही रह कर मेहनत मजदूरी से रोटी कमाएगा.
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आदमपुर के ही चरणजीत 7-8 साल कुवैत में नौकरी कर चुके हैं. चरणजीत के मुताबिक कुवैत में रहते हुए उन्हें इराक के बुरे हालात का पता चलता रहता था. चरणजीत का कहना है कुवैत में हालात ठीक हैं, इसलिए वे फिर वहां जाना चाहेंगे. चरणजीत ने साथ ही कहा कि खाड़ी देश में नौकरी के लिए जाने से पहले घरवालों को समझाना पड़ता है. चरणजीत के मुताबिक वहां जाने के अलावा कोई चारा भी नहीं है. यहां देश में उनके लिए ऐसा कोई काम नहीं जिससे कि इतना कमाया जा सके कि परिवार का अच्छी तरह गुजारा हो जाए. चरणजीत साथ ही मानते हैं कि खाड़ी देश में काम करने की वजह से उनके परिवार को हमेशा उनकी फिक्र लगी रहती है. ऐसे में वे हमेशा अपने परिवार को हिम्मत देते रहते हैं.
पंजाब के नेता भी मानते हैं कि किन हालात में राज्य के युवाओं को खाड़ी देशों के लिए पलायन करना पड़ता हैं. लेकिन यहां भी वे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों से नहीं चूकते. जालंधर से अकाली दल के विधायक पवन सिंह टीनू नौजवानों के पलायन के लिए सिस्टम को दोष देते हैं. अब ये बात दूसरी है कि इसी सिस्टम का वो हाल तक हिस्सा रहे.
टीनू कहते हैं कि सरकारी नीतियां गरीबों के पक्ष में नहीं हैं, अगर गरीबों के पक्ष में होतीं तो 70 साल की आजादी के बाद भी युवाओं को इस तरह बेरोजगारी के चलते खाड़ी देशों में जाने का खतरा नहीं उठाना पड़ता. टीनू ये कहने से भी नहीं चूकते कि उन्होंने अकाली दल के राज में 2 लाख लोगों को सरकारी नौकरी दी लेकिन उसके पहले रही कांग्रेस सरकार सिर्फ 27 हजार लोगों को सरकारी नौकरी दे सकी.
राजनीति अपनी चाल चलती रहती है लेकिन ये हकीकत है कि बेरोजगार युवाओं की फिक्र किसी को नहीं. रोजी रोटी की तलाश में ही सुरजीत जैसे अनगिनत युवा कबूतरबाजों के चक्कर में फंस कर खाड़ी देशों में पहुंच जाते हैं. ये जानते हुए भी वहां जान को खतरा हो सकता है. लेकिन परिवार का पेट भरने का सवाल सामने होता है तो वे इस खतरे की भी परवाह नहीं करते.