मुफ्त का चन्दन, घिसो रघुनन्दन...
हम तो अपनी धुन में गुनगुना रहे थे, सुनते ही रघुनंदन कुनमुना गए और हमें ही सुना गए, 'भैया मुफ्त की तो मौत नहीं मिलती, चन्दन कहां से मिले? चूहे मारने का ज़हर भी जेब से बाहर है.' हमने समझाया भैया ज़हर क्यूं खाओगे, जल्दी ही यूपीए की सरकार भोजन की गारंटी दे रही है. खाद्य सुरक्षा बिल पास हो गया. प्रणब बाबू का अध्यादेश आ गया है. अब एक रुपए किलो चावल मिलेगा. 'चुनाव आने वाला है क्या?' राघुनंदन झट से बोले. हमने कहा एक आहट सी तो आई है.
इतने में रघुनन्दन का पारा आसमान पर. 'जब बाकी चीज़ों के दाम आसमान पर होंगे हमारे पारे की तरह तो एक रुपए किलो चावल के क्या पकेंगे खयाली पुलाव के सिवा?'
इतने में बीजेपी के लालजी पधारे और उन्होंने कहा कि कांग्रेस के चावल के चक्कर में चूक मत जाना, कमल पर मुहर लगाना क्योंकि हमारी प्लानिंग है सबको खीर खिलाने की. खीर की बात पर मुंह में आए पानी को अन्दर ही डिपोजिट कर के रघुनन्दन जी ने फुल एटेंशन लालजी की तरफ किया और फरमाया, 'वो कैसे?'
'अरे भाई इस खाद्य सुरक्षा बिल से सांप निकलेगा और डंस लेगा. इस काटे का इलाज तो मोदी जी भी नहीं कर पाएंगे.'
'सही कहते हो, नीतीश के काटे का इलाज़ तो कर नहीं पाए, सांप के काटे का पता नहीं पानी मांगे ना मांगे.'
'यार बात का फ्लो मत बिगाड़ो. सुशील-नीतीश तो आस्तीन के सांप निकले. आस्ते-आस्ते काटा. पर हम बात तो डेवलपमेंट वाले मोदी जी की कर रहे थे. उन्होंने गुजरात में अमूल दूध की नदियां बहा दी हैं. नदियों को जोड़ने का तो भाजपा का पुराना प्लान है. अब अगर हमारी घाघरा साबरमती से जुड़ गई तो घाघरे में दूध होगा. चोली में चावल. चीनी तो चीन से सस्ती वाली मंगवा लेंगे. ग्लोबल वार्मिंग की आंच पर खीर पका लेंगे.'
'झोली में चावल तो सुना था, तुम चोली में चावल कहां से चुरा लाए?'
'चोली-दामन का साथ है, मोदी का विकास से. विकास का मोदी से. जहां मोदी हैं, वहां विकास है. जहां विकास है, वहां मोदी हैं.'
हम इस किचाहिन में कूद पड़े. 'वैसे ही जैसे कीचड़ में कमल खिलता है. जहां कीचड़ है वहां कमल है. जहां कमल है, वहां कीचड़ है.'
'कर दी न लीचड़ वाली बात. भैया, हम कीचड़ में कमल उगाते हैं. नरेन्द्रभाई उगे हैं. जहां जहां देश में पिछड़ेपन का कीचड़ है वहां वहां हम कमल खिलाएंगे. जो देख नहीं पाते वो कमल ककड़ी खाएंगे. जैसे गुजरात को चमकाया है, देश को चमकाएंगे. मौका दोगे तो दिखलायेंगे.' लालजी चमका रहे थे या धमका रहे थे, इसका अंदाजा हम लगा रहे थे तभी रघुनन्दन फूट पड़े.
'एक मौका दिया था. चौका लगाया नहीं, चौका फेर दिया आपने. भारत को ऐसा चमकाया कि हमारी आंखें चौंधिया गईं. कमल का बटन दिखाई नहीं पड़ा. हाथ की ऊंगली हाथ पर गई. नौ साल से उसी ऊंगली से उलझ रहे हैं कि देश के मसले क्यों नहीं सुलझ रहे हैं.'
चुनाव का मौसम है. उम्मीदवार उम्मीद से होंगे, हम सब को भी दीद से होंगे. गाना होगा भाषण होगा, पोस्टर का प्रकाशन होगा. हमसे ना रहा गया, सो हम गमछा झाड़ते झाड़ते ये भाषण झाड़ गए. वोट ना हुआ मुसीबत हो गई. देना फ़र्ज़ है, सो देते हैं. फिर आगे उनकी मर्ज़ी जो लेते हैं. भारी मतों से विजयी बनाओ, फिर वह आपको पांच साल बनाएंगे. बनाया रिपब्लिक है, बनाना रिपब्लिक है, पब्लिक ही बनती है.