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पद्म पुरस्कारों के साथ क्यों हो जाती है कंट्रोवर्सी?

क्या अब बिना किसी कंट्रोवर्सी के पद्म पुरस्कार बांटे जाना नामुमकिन है. हर साल पुरस्कार से पहले विवाद, सिफारिश, चाटुकारिता की खबरें आ जाती हैं.

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क्या अब बिना किसी कंट्रोवर्सी के पद्म पुरस्कार बांटे जाना नामुमकिन है. हर साल पुरस्कार से पहले विवाद, सिफारिश, चाटुकारिता की खबरें आ जाती हैं. पुरस्कार 26 जनवरी की शाम दिए जाने होते हैं, लेकिन खलबली दिसंबर से ही शुरू हो जाती है. ताजा मामला साइना नेहवाल का है.

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1954 में पद्म पुरस्कारों की शुरुआत हुई. विचार यह था कि अलग-अलग क्षेत्रों में देश का नाम असाधारण रूप से ऊंचा करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाए. लेकिन इसे पाने या दिए जाने के लिए शुरू हुई लॉबिंग और सरकारों की मनमानी इन पुरस्कारों की चमक फीकी करती गई. इतनी कि दो साल पहले मशहूर प्लेबैक सिंगर एस. जानकी ने इसे लेने से ही इनकार कर दिया. 74 वर्षीय जानकी को चार राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. इस उम्र और इतने सम्मानों के बाद पद्म भूषण दिए जाने को उन्होंने स्तरीय नहीं माना. जानकी का यह आक्रोश दरअसल पूरे दक्षिण भारतीय राज्यों की भावना से मिलता-जुलता था. पिछले साल दिल्ली के 20 लोगों को पद्म पुरस्कारों से नवाजा गया. जबकि दक्षिण के चारों राज्यों को कुल मिलाकर 21 पद्म पुरस्कार दिए गए.

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तो क्या पद्म पुरस्कार देश सेवा के बजाए सरकारों की सेवा के लिए दिए जाते हैं?
मनमोहन सिंह सरकार ने विवादास्पद होटल व्यवसायी संतसिंह चटवाल को पद्म पुरस्कार दे दिया. यह ईनाम उनकी भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते में भूमिका के लिए था. उसी चटवाल को अमेरिकी अदालत ने धोखाधड़ी के आरोप में पांच साल की सजा सुनाई है.

अटल बिहारी वाजपेयी के घुटने का ऑपरेशन करने वाले डॉ. चितरंजन सिंह राणावत को भी पद्मभूषण मिल गया.

2010 में तो सैफ अली खान को भी पद्म पुरस्कार दे दिया गया. हालांकि, बाद में सरकार को बताया गया कि उन पर होटल में झगड़ा करने का एक केस चल रहा है. लेकिन यूपीए सरकार के इस फैसले के खिलाफ तो एनडीए सरकार ने भी कोई दूसरा फैसला नहीं लिया है.

ऐसा नहीं है कि इन पुरस्कारों को देने की कोई गाइडलाइन नहीं है
1996 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति केआर नारायणन के नेतृत्व वाली एक हाई-लेवल कमेटी ने इन पुरस्कारों के लिए योग्यता का पैमाना तय किया. उसमें पुरस्कार पाने वाले के योगदान को लेकर कड़े नियम बनाए गए. लेकिन उसका पालन किस तरह किया गया, उसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को एक पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को लिखना पड़ा कि वे इन पुरस्कारों के लिए उम्मीदवारों के चयन में सावधानी बरतें. इसके बाद आई दो यूपीए सरकारों ने भी नियमों का जमकर उल्लंघन किया. पुरस्कारों की प्रविष्टियों के लिए तय की गई डेडलाइन बदलती गईं. सेलेक्शन कमेटी में मनमाने ढंग से फेरबदल किए गए.

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अब जबकि साइना नेहवाल ने पद्म पुरस्कारों के चयन को लेकर सवाल उठाया है, तो किसी को भी इस पर आपत्ति नहीं है कि पहलवान सुशील कुमार को यह पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए. लेकिन इतना तो तय हो ही गया है कि कहीं न कहीं दबाव के रास्ते इन पुरस्कारों तक का सफर आसान हो जाता है.

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