नन्हा सा सेलफोन ज्यादातर लोगों के लिए जीवन का जरूरी हिस्सा बन गया है. संचार की इस छोटे कद की बड़ी सी सुविधा से बड़े बड़े काम बहुत आसानी से किए जा सकते हैं लेकिन सलीके से इनका इस्तेमाल न करने पर यह काम की चीज आपको झुंझलाने के लिए मजबूर भी कर सकती है.
दूरसंचार नियामक ट्राई के अनुसार मई 2010 के अंत तक देश में सेलफोन उपभोक्ताओं की संख्या 61.753 करोड़ थी. अनुसंधान फर्म गार्टनर के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2014 तक देश में सेलफोन कनेक्शनों की संख्या बढ़कर 99.3 करोड़ हो जाएगी. गार्टनर का यह भी अनुमान है कि भारत में इस साल के अंत तक मोबाइल फोनधारकों की संख्या 66 करोड़ पर पहुंच जाएगी. भारत अपने पड़ोसी मुल्क चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सेल फोन बाजार है.
बहरहाल, ‘मोबाइलोफोबिया’ के इस बढ़ते चलन ने तौर-तरीकों की एक अलग संहिता तय करने की जरूरत का भी एहसास कराया है. अगर ढंग नहीं बदले तो यह सेलफोन दुश्वारियों की वजह भी बन जाता है. एटीकेट स्पेशलिस्ट उपासना सिंह कहती हैं कि मीटिंग, अस्पताल, अदालत परिसर, थिएटर, सिनेमाघर, पूजाघर, स्कूल आदि में सेलफोन की घंटी गहरा व्यवधान उत्पन्न करती है. इसलिए इन स्थानों पर जाने से पहले सेलफोन को वायसमेल पर या वाइब्रेशन पर रखना चाहिए ताकि किसी को व्यवधान न हो.
मीटिंग में सेल फोन को बंद कर देना ही बेहतर होता है. एक अन्य एटीकेट स्पेशलिस्ट गौरव दास कहते हैं कि सेलफोन पर कई लोग जोर जोर से बातें करते हैं जिससे निजी या गोपनीय सूचनाएं सार्वजनिक हो सकती हैं. इसी तरह घरेलू बातें भी दूसरों को मुस्कुराने के साथ-साथ बौखलाने पर मजबूर कर सकती हैं. गौरव के अनुसार, सेल फोन पर बातें करते समय संयम बनाए रखना चाहिए और गुस्से से भी परहेज नहीं करना चाहिये क्योंकि हो सकता है कि आपकी निजता का चीखता वर्णन आसपास बैठे या खड़े व्यक्ति को न सुहाए. {mospagebreak}
भावनात्मक बातचीत होने पर अपने जज्बात पर काबू रखना चाहिए ताकि दूसरों के सामने शर्मिन्दगी की नौबत न आए. उपासना कहती हैं कि अस्पतालों, विमान और संवेदनशील इलाकों में मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाती है इसलिए नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए. वह कहती हैं कि अगर आपको कुछ लोगों से मिलना है और उसी समय आपका जरूरी फोन आता है तो क्षमा मांगते हुए बात करने के लिये वहां से हटें.
राजधानी में एक फिनिशिंग स्कूल चला रहे मोहन सिंह कहते हैं कि एसएमएस भेज कर भी बातें कही जा सकती हैं लेकिन अनावश्यक एसएमएस बुरा बुरी बात है. मल्टीमीडिया एप्लीकेशनों जैसे एमएमएस, वीडियो आदि का इस्तेमाल सोचसमझ कर करना चाहिए. इनका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. वह कहते हैं कि मोबाइल फोन पर अगर एफएम रेडियो चलाया जा रहा है तो उसकी आवाज धीमी रहनी चाहिए ताकि दूसरों को परेशानी न हो. ऐसे में इयरफोन का इस्तेमाल बेहतर होता है.
गौरव कहते हैं कि वाहन चलाते समय सेल फोन का इस्तेमाल कतई नहीं करना चाहिए वर्ना आप अपने साथ साथ दूसरों की जान भी जोखिम में डाल सकते हैं. ‘मोबाइलोफोबिया’ के साथ साथ इसके तौर तरीके पर भी जरा अमल कर लिया जाए तो इस नन्हें उपकरण से न आपको और न ही दूसरों को झुंझलाहट होगी.