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क्या यह आपातकाल की वापसी हैः आडवाणी

फोन टेपिंग की ताजा सनसनीखेज रिपोर्ट का गंभीर संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस घटना की तुलना आपातकाल के दिनों से की.

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फोन टेपिंग की ताजा सनसनीखेज रिपोर्ट का गंभीर संज्ञान लेते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस घटना की तुलना आपातकाल के दिनों से की. एक पत्रिका के ताजा अंक का हवाला देते हुए आडवाणी ने अपने के ब्लाग में लिखा है कि यह एक ‘हिला देने वाली रिपोर्ट है जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत सरकार कैसे नवीनतम फोन टेपिंग तकनीक का इस्तेमाल प्रमुख राजनीतिक नेताओं के बीच की टेलीफोनिक बातचीत को रिकार्ड करने में कर रही है.

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इन प्रमुख नेताओं में नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री, शरद पवार जैसे केन्द्रीय मंत्री, प्रकाश करात जैसे कम्युनिस्ट नेता और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे सत्तारूढ़ पार्टी के अपने पदाधिकारी शामिल हैं.

‘पुराने पड़ चुके’ टेलीफोन अधिनियम को समाप्त किए जाने की मांग करते हुए आडवाणी ने नागरिकों की निजता की संरक्षा के लिए एक नया कानून बनाए जाने की भी वकालत की.

उन्होंने ब्लाग में लिखा है, ‘इस संदर्भ में वास्तव में जो जरूरी है, वह यह कि समस्या की सभी पहलुओं से पड़ताल करने, बेकार हो चुके भारतीय टेलीफोन अधिनियम 1885 को समाप्त करने तथा आम नागरिक की निजता की सुरक्षा के लिए इसके स्थान पर नया कानून बनाने के लिए ब्रिटेन में ब्रिकेट समिति की तर्ज पर एक संसदीय समिति गठित की जाए.’

{mospagebreak} आडवाणी ने ब्लाग में लिखा है कि नया कानून ऐसा हो जो आम नागरिकों की निजता की सुरक्षा करे लेकिन जो औपचारिक रूप से केवल अपराध, घोटाले तथा जासूसी के मामलों में ही राज्य को नवीनतम आईटी तकनीक के इस्तेमाल को मान्यता दे. इस कानून में सांविधिक सुरक्षा मानक अवश्य हों जो सरकार के लिए राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा मीडियाकर्मियों के खिलाफ इस कानून की शक्तियों का दुरूपयोग असंभव बना दें.

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25 साल पुरानी एक घटना का जिक्र करते हुए आडवाणी लिखते हैं. ‘यह मुझे 25 साल पुरानी एक घटना की याद दिलाता है जिससे मेरा वास्ता पड़ा था. 1985 की एक सुबह, एक अजनबी मेरे घर पर आया जिसके हाथ में कागजों से भरा एक ब्रीफकेस था.’ उस अजनबी ने कहा, ‘इस ब्रीफकेस में डायनामाइट है, जो इस सरकार को उड़ा सकता है.’ उसने अपना ब्रीफकेस खोला और करीब 200 पन्नों का ढेर लगा दिया जिनमें कई अति विशिष्ट हस्तियों की टेलीफोन बातचीत का रिकार्ड दर्ज था.

लेकिन आडवाणी को ये दस्तावेज इतने ‘विस्फोटक’ नहीं लगे जितना उन सज्जन ने बताया था. इनमें से कुछ कागजों में आडवाणी की अटल बिहारी वाजपेयी से हुई बातचीत का ब्यौरा था.

आडवाणी ने लिखा, ‘अधिक हैरानी यह जानकार हुई कि इन दस्तावेजों में न केवल विपक्षी नेताओं की आपसी बातचीत को टेप रिकार्ड किया गया था बल्कि कुछ ख्यातिनाम पत्रकार और ज्ञानी जेल सिंह जैसी बेहद प्रतिष्ठित हस्तियों की बातचीत भी रिकार्ड थी.’

{mospagebreak} आडवाणी के ब्लाग में पूर्व में फोन टेपिंग की कई घटनाओं का जिक्र किया गया है जिनमें 25 जून 1985 का एक संवाददाता सम्मेलन भी शामिल था. इस दिन आपातकाल की दसवीं वर्षगांठ थी जिसमें वाजपेयी ने आपातकाल की न केवल अन्य ज्यादतियों का जिक्र किया था बल्कि 19 महीने की इस अवधि में बड़े पैमाने पर हुई फोन टेपिंग घटनाओं का भी उल्लेख किया था.

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उन्होंने लिखा है कि उस संवाददाता सम्मेलन में वाजपेयी ने कहा, ‘मुझे लंबे समय से पता है कि मेरे तथा मेरे पार्टी सहयोगी आडवाणी के फोन पर नजर रखी जा रही है.’ वाजपेयी ने कहा, ‘लेकिन बाद में मुझे पता चला कि चौधरी चरण सिंह, जगजीवनराम और चंद्रशेखर जैसे वरिष्ठ नेताओं, जी के रेड्डी, अरूण शौरी, कुलदीप नायर तथा जी एस चावला जैसे पत्रकारों के फोन भी नियमित रूप से टेप किए जा रहे हैं.

लेकिन इससे भी अधिक सदमा मुझे यह जानकार लगा कि खुफिया ब्यूरो ने राष्ट्रपति और प्रधान न्यायाधीश तक के फोन टेप किए हैं. यह सब न केवल राजनीतिक रूप से अनैतिक है बल्कि असंवैधानिक और गैरकानूनी भी है.’

फोन टेपिंग की एक और घटना का जिक्र करते हुए ब्लाग में आडवाणी ने लिखा है ‘1996 में जब देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे, उस समय पूर्व गृह मंत्री एस बी चव्हाण की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने उनसे शिकायत की कि पी वी नरसिंहा राव तथा कई अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के फोन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा टेप किए जा रहे हैं.’

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