scorecardresearch
 

क्या इसलिये लड़कियां उच्च शिक्षा में हैं पीछे!

सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में कुल 85.28 फीसदी लड़कियां पास, जबकि लड़कों का प्रतिशत सिर्फ 75.90, लेकिन आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में कुल 1.13 लाख प्रत्याशियों में से मात्र 1,476 लड़कियों का ही चयन.

Advertisement
X

सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में कुल 85.28 फीसदी लड़कियां पास, जबकि लड़कों का प्रतिशत सिर्फ 75.90, लेकिन आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में कुल 1.13 लाख प्रत्याशियों में से मात्र 1,476 लड़कियों का ही चयन.

Advertisement

सीबीएसई की 10वीं परीक्षा में देश भर से कुल 90.68 फीसदी लड़कियां उत्तीर्ण, जबकि उत्तीर्ण लड़कों की संख्या इससे लगभग दो फीसदी कम, लेकिन यूपीएससी की परीक्षा में चयनित कुल 875 प्रत्याशियों में से महिलाओं की संख्या सिर्फ 195 और आईआईटी के शीषर्स्थ तीन स्थानों पर एक भी लड़की नहीं, क्या यह विरोधाभास नहीं है?

पिछले कुछ वर्षों के परीक्षा परिणामों की ओर देखें तो यह विरोधाभास और भी स्पष्ट हो जाता है. स्कूल स्तर पर अपना परचम फहराने वाली लड़कियों की संख्या उच्च और पेशेवर शिक्षा में आते आते कम हो जाती है.

शिक्षाविद् इसके पीछे समाज के आर्थिक-सामाजिक दायरे और सरकार की ओर से प्रोत्साहन में कमी को जिम्मेदार ठहराते हैं. एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षण परिषद् (एनसीटीई) के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर जे एस राजपूत का मानना है कि लड़कियों के लिए विज्ञान और गणित की शिक्षा बहुत देर से जरूरी की गई, लेकिन फिर भी अब धीरे-धीरे लड़कियों की संख्या इन क्षेत्रों में बढ़ रही है.

Advertisement

{mospagebreak}प्रो. राजपूत ने कहा ‘1964-66 के नेशनल कमीशन ऑन एजुकेशन (कोठारी कमीशन) की 1968 की रिपोर्ट की अनुशंसा के बाद लड़कियों के लिए गणित और विज्ञान की शिक्षा जरूरी की गई, लेकिन इस आयोग की रिपोर्ट को कार्यरूप में परिणित होने में लंबा समय लग गया. रिपोर्ट के आधार पर पहली बार 1986 में मध्यप्रदेश में परीक्षाएं हुईं.

हम समझ सकते हैं कि लड़कियों संबंधी एक रिपोर्ट को कार्यरूप में परिणत होने में इतना समय लगा तो इसके बाद इस क्षेत्र में प्रगति होने में कितना समय लगेगा.’ प्रो. राजपूत ने कहा ‘लेकिन फिर भी अब धीरे-धीरे लड़कियों का हर क्षेत्र में दखल बढ़ रहा है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक दायरों के कारण अब भी लड़कियों को या तो पारंपरिक शिक्षा में ही आगे बढ़ा दिया जाता है या उनकी शादियां कर दी जाती हैं.’

उन्होंने कहा कि ऐसे में स्कूली शिक्षा में अपना परचम फहराने वाली लड़कियों को आगे पेशेवर शिक्षा में उतरने का मौका ही नहीं मिल पाता और यही इस क्षेत्र में उनके पिछड़ने का कारण है.

दूसरी ओर कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रियाज पंजाबी मानते हैं कि लड़कियों को पेशेवर शिक्षा में आने के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को और प्रयास करने की जरूरत है.

Advertisement

डॉ. पंजाबी ने कहा कि सामाजिक धारणाओं को बदलने और परिवारों के रुख में बदलाव से भी लड़कियों की शिक्षा के प्रति देश में क्रांति आ सकती है. डॉ. पंजाबी ने बताया, ‘आम परिवारों में आज भी मौके देना, प्रोत्साहन देना और शिक्षा के नाम पर खर्च करना जैसे काम लड़कों के लिए ही होते हैं. परिवारों की वही धारणा बनी हुई है कि लड़कों को पढ़ाना काम आएगा और लड़कियां शादी करके चली जाएंगी.

{mospagebreak}इस रुख के कारण परंपरागत पढ़ाई में कहीं आगे रहने वाली लड़कियां पेशेवर शिक्षा में पीछे रह जाती हैं.’ डॉ. पंजाबी ने सलाह दी कि सरकार अगर लड़कियों को नि:शुल्क कोचिंग और बेहतर शिक्षा हासिल करने पर प्रोत्साहन स्वरूप कोई योजना शुरू करे तो लड़कियां आगे भी लड़कों को बहुत पीछे छोड़ दें.

इसके अलावा मौजूदा योजनाओं का सही क्रियान्वयन भी उन्हें आगे आने में मदद कर सकता है. दूसरी ओर जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के रेक्टर प्रो. आर कुमार इसके पीछे लड़कियों का बेसिक विषयों में रुझान और फील्ड वर्क की ओर कम जाने की प्रवृत्ति को कारण बताते हैं.

प्रो. कुमार ने कहा ‘लड़कियों का झुकाव आम तौर पर बेसिक विषयों की ओर ही रहता है. विज्ञान की भी बात करें, तो भी लड़कियां पारंपरिक विषयों की ओर ही ज्यादा झुकती हैं. कई बार सामाजिक और आर्थिक दायरे भी लड़कियों को लीक से हटकर चलने से रोकते हैं.’

Advertisement

उन्होंने कहा ‘लड़कियां इंजीनियरिंग की ओर आ रही हैं, लेकिन उनकी संख्या कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ज्यादा है. मेकेनिकल और सिविल इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्र में फील्ड वर्क ज्यादा होता है, इसलिए लड़कियां इस ओर कम ही जाती हैं. मेडिकल में भी ऐसे ही क्षेत्रों में लड़कियां ज्यादा दिखाई देती हैं.’

Advertisement
Advertisement