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बंद नहीं हो सकतीं पोर्न वेबसाइट्स

इंटरनेट पर हमेशा पोर्न वेबसाइट्स खंगालते रहने वालों के लिए अच्‍छी खबर. जब तक सुप्रीम कोर्ट या दूरसंचार मंत्रालय दखल नहीं देता तब तक पोर्न सामग्री परोसने वाली वेबसाइटों पर रोक लगाना मुश्किल है.

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इंटरनेट पर हमेशा पोर्न वेबसाइट्स खंगालते रहने वालों के लिए अच्‍छी खबर. जब तक सुप्रीम कोर्ट या दूरसंचार मंत्रालय दखल नहीं देता तब तक पोर्न सामग्री परोसने वाली वेबसाइटों पर रोक लगाना मुश्किल है.

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सुप्रीम कोर्ट ने दो महीने पहले पोर्न वेबसाइट्स (खासकर ऐसे वेबसाइट जिन्‍हें बच्‍चे देखते हैं) पर तत्‍काल रोक लगाने के निर्देश दिए थे. अदालत के इस निर्देश के बाद इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों ने यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए हैं कि जब तक कोर्ट या मंत्रालय की तरफ से निर्देश नहीं मिलता, तब तक इन पर रोक लगाना इनके वश की बात नहीं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपनी दलील में इन कंपनियों ने एक और परेशानी का जिक्र किया कि 'पोर्नोग्राफी' को साफ तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है.

इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों ने कोर्ट से कहा कि पोर्न वेबसाइटें ब्‍लॉक करना इनके लिए 'सैद्धांतिक और तकनीकी' तौर पर असंभव है और आपत्तिजनक कंटेंट के लिए कंपनियों को जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. कंपनियों ने कहा कि वेबसाइट्स पर इस तरह पाबंदी लगाना किसी कानूनी अथॉरिटी के बिना कंटेंट्स के प्री-सेंसरशिप जैसा होगा. यह उपभोक्‍ताओं के मौलिक अधिकारों को सीमित करेगा और सिविल कानूनों के तहत इन्‍हें उत्‍तरदायी बनाने पर मजबूर करेगा.

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इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों के एसोसिएशन की तरफ से कहा गया, 'दूरसंचार के किसी निर्देश के बिना कंटेंट की निगरानी करना हमारे लिए मुश्किल है. पोर्नोग्राफी की कोई ऐसी परिभाषा नहीं है जिसे सभी ने स्‍वीकार की हो. ऐसे कंटेंट की कोई सीमा नहीं है. क्‍या मेडिकल या एड्स जागरुकता वाली वेबसाइटें पोर्नोग्राफी हो सकती हैं? क्‍या खजुराहो की मूर्तियों को पोर्नोग्राफी की श्रेणी में रखा जा सकता है? एक चीज जो एक शख्‍स की नजर में पोर्नोग्राफी है, दूसरे शख्‍स की नजर में 'आर्ट वर्क' हो सकता है.'

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट कमलेश वासवानी की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिका में कहा गया है कि हालांकि अश्‍लील वीडियो देखना अपराध नहीं है लेकिन पोर्नोग्राफिक वेबसाइट्स पर पाबंदी लगानी चाहिए क्‍योंकि ये महिलाओं के खिलाफ अपराध की मुख्‍य वजहों में एक है.

इस बीच, जस्टिस बी एस चौहान की अगुवाई वाली बेंच ने दूरसंचार मंत्रालय को इस मसले पर जवाब देने के लिए तीन हफ्ते का वक्‍त दिया है.

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