आज ही के दिन चंद्रयान-1 (Chandrayaan-1) को भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization - ISRO) ने चांद के लिए रवाना किया था. यानी 22 अक्टूबर 2008 को. पूरे 11 साल हो गए हैं लेकिन चंद्रयान-1 की वजह से आज भी देश का नाम गर्व से लिया जाता है. क्योंकि यह देश का पहला ऐसा स्पेस मिशन था, जिसने दुनिया को यह बताया कि चांद की सतह पर पानी है. यह पूरी सदी की सबसे बड़ी खोज थी. इस मिशन ने पूरी दुनिया में ISRO की धाक जमाई. जो देश चांद पर आदमी उतार चुका था, वह भी हैरान था कि भारत की स्पेस एजेंसी ने इतना बड़ा खोज कैसे किया? आइए जानते हैं कि चंद्रयान-1 का आइडिया कहां से आया? किसने बनाया? इस मिशन से क्या हासिल हुआ? क्या सफलताएं मिलीं? कितना जटिल रहा इस मिशन को पूरा करना?
करवा चौथ पर इसरो का तोहफा, चंद्रयान-2 के IIRS ने भेजी चांद की सतह की तस्वीर
...आइए जानते हैं ISRO की शान Chandrayaan-1 की पूरी कहानी
20 साल पहले Chandrayaan-1 को बनाने का आइडिया
आज से 11 साल पहले 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान लॉन्च किया गया था. लेकिन इसे बनाने का आइडिया 1999 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (IAS) में आया था. इसके बाद 2000 में एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इसे सहमति प्रदान की. फिर इसरो नेशनल लूनर मिशन टास्क फोर्स बनाई, जिसमें देश के कई बड़े वैज्ञानिक शामिल थे. वर्ष 2003 के नवंबर महीने में पहले मून मिशन चंद्रयान-1 को भारत सरकार की तरफ से हरी झंडी मिली.
हमारे सौर मंडल के इस ग्रह के पास हैं सबसे ज्यादा चांद, बन गया नंबर-1
5 साल की मेहनत के बाद तैयार हुआ था Chandrayaan-1
सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद इसरो के विभिन्न सेंटर्स के वैज्ञानिक इस मिशन में लग गए. इसके लिए कई तरह के रिमोट सेंसिंग उपकरण बनाए गए. साथ ही पहली बार डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) की जरूरत महसूस हुई, क्योंकि पहली बार भारत का कोई मिशन अंतरिक्ष में इतनी दूर जा रहा था. तब बड़े-बड़े एंटीने वाला डीप स्पेस नेटवर्क बनाया गया ताकि सुदूर अंतरिक्ष में संपर्क स्थापित किया जा सके. इन सबको पूरा करने में करीब 5 साल लग गए. लॉन्च के लिए चुना गया सबसे भरोसेमंद रॉकेट पीएसएलवी.
भरोसेमंद रॉकेट PSLV-C11 से लॉन्च हुआ Chandrayaan-1
चंद्रयान-1 की लॉन्चिंग से पहले PSLV रॉकेट ने 15 सालों में 12 सफल लॉन्चिंग की थी. इसलिए सबसे भरोसेमंद रॉकेट को चुना गया. 2008 के मध्य में PSLV ने एकसाथ 29 उपग्रहों को लॉन्च किया था. उस समय यह बहुत बड़ी बात थी. इसीलिए, इस रॉकेट को चुना गया. लेकिन इसमें थोड़ा बदलाव किया गया. ताकि चंद्रयान-1 के वजन को वह उठा सके. इस रॉकेट में लंबे और बड़े स्ट्रैप ऑन लगाए गए. 22 अक्टूबर 2008 को PSLV-C11 रॉकेट से चंद्रयान-1 को चांद की यात्रा के लिए लॉन्च किया गया.
ISRO का बड़ा मिशनः अगले साल अंतरिक्ष में करेगा ऐसा प्रयोग जो आज तक नहीं किया
Chandrayaan-1 चांद के चारों तरफ 3400 से ज्यादा चक्कर लगाए
Chandrayaan-1 ने 22 अक्टूबर को लॉन्च होने के बाद अंतरिक्ष में 7 चक्कर लगाते हुए 8 नवंबर को चांद की पहली कक्षा में पहुंचा. चार बार चांद की कक्षा बदलने के बाद 12 नवंबर को चंद्रयान-1 चांद के सबसे करीब पहुंच गया. यानी चांद की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर. जहां उसे चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना था. चंद्रयान-1 ने करीब 11 महीने काम किया. ज्यादा रेडिएशन की वजह से चंद्रयान-1 में पावर सप्लाई बाधित हो गई और इसमें लगे कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया था. जिसकी वजह से इसका पृथ्वी के डीप स्पेस नेटवर्क से संपर्क टूट गया था.
ये कैसा इनाम? Chandrayaan-2 से पहले सरकार ने काटी ISRO वैज्ञानिकों की तनख्वाह
चंद्रयान-1 को 2 साल काम करना था. लेकिन इसने 11 महीने ही काम किया. इस दौरान उसने चांद के चारों तरफ 3400 से ज्यादा चक्कर लगाए. 2 जुलाई 2016 को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के ग्राउंड राडार सिस्टम ने एक बार फिर चंद्रयान-1 को खोज निकाला. वह लगभग उसी कक्षा में चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहा था.
क्या मिला Chandrayaan-1 मिशन से देश को, ISRO को?