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2.1 KM नहीं, 335 मीटर पर टूटा था विक्रम से ISRO का संपर्क, ये ग्राफ है सबूत

7 सितंबर को इसरो के मून मिशन चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की चांद के सतह पर लैंडिंग की तस्वीर साफ तौर पर कह रही है कि पृथ्वी स्थित इसरो सेंटर का विक्रम लैंडर से संपर्क 335 मीटर की ऊंचाई पर टूटा था. न कि 2.1 किमी की ऊंचाई पर.

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चांद की सतह ऐसे ही उतरना था विक्रम लैंडर को. (फोटो-इसरो)
चांद की सतह ऐसे ही उतरना था विक्रम लैंडर को. (फोटो-इसरो)

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कहते हैं कि एक तस्वीर 1000 शब्दों के बराबर होती है. ऐसी ही एक तस्वीर है उस तारीख की जो अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में दर्ज हो गई. यानी 7 सितंबर को इसरो (Indian Space Research Organisation - ISRO) के मून मिशन चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की चांद पर लैंडिंग की तस्वीर. यह तस्वीर साफ तौर पर कह रही है कि पृथ्वी स्थित इसरो सेंटर का विक्रम लैंडर से संपर्क 335 मीटर की ऊंचाई पर टूटा था. न कि 2.1 किमी की ऊंचाई पर.

जिस समय विक्रम लैंडिंग कर रहा था, उसकी डिटेल इसरो के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स (MOX) की स्क्रीन पर एक ग्राफ के रूप में दिख रहा था. इस ग्राफ में तीन रेखाएं दिखाई गई थीं. जिसमें से बीच वाली लाइन पर ही चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर अपना रास्ता तय कर रहा था. यह लाइन लाल रंग की थी. यह विक्रम लैंडर के लिए इसरो वैज्ञानिकों द्वारा तय किया गया पूर्व निर्धारित मार्ग था. जबकि, विक्रम लैंडर का रियल टाइम पाथ हरे रंग की लाइन में दिख रहा था. यह हरी लाइन पहले से तय लाल लाइन के ऊपर ही बन रही थी.

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Aajtak.in ने पहले ही बताया था कि विक्रम से संपर्क 335 मीटर ऊंचाई पर टूटा था

landing-chart750_091119115520.jpgइस ग्राफ में साफ दिख रहा है कि लाल लाइन तय मार्ग था और हरी लाइन विक्रम लैंडर का रियल टाइम पाथ. (फोटो-इसरो)

सब सही चल रहा था. विक्रम लैंडर का रियल टाइम पाथ यानी हरी लाइन उसके पूर्व निर्धारित मार्ग वाली लाल लाइन पर एकसाथ चल रही थी. अगर इस ग्राफ को ध्यान से देखें तो आपको पता चलेगा कि 4.2 किमी के ऊपर भी विक्रम लैंडर के रास्ते में थोड़ा बदलाव आया था लेकिन वह ठीक हो गया था. लेकिन, ठीक 2.1 किमी की ऊंचाई पर वह तय रास्ते से अलग दिशा में चलने लगा. इस समय यह चांद की सतह की तरफ 59 मीटर प्रति सेकंड (212 किमी/सेकंड) की गति से नीचे आ रहा था.

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400 मीटर की ऊंचाई तक आते-आते विक्रम लैंडर की गति लगभग उस स्तर पर पहुंच चुकी थी, जिस गति से उसे सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी. इसी ऊंचाई पर वह चांद की सतह के ऊपर हेलिकॉप्टर की तरह मंडरा रहा था. ताकि सॉफ्ट लैंडिंग वाली जगह की स्कैनिंग कर सके. तय किया गया था कि 400 मीटर से 10 मीटर की ऊंचाई तक विक्रम लैंडर 5 मीटर प्रति सेकंड की गति से नीचे आएगा. 10 से 6 मीटर की ऊंचाई तक 1 या 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से नीचे लाया जाएगा. फिर इसकी गति जीरो कर दी जाएगी.

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चांद की सतह पर उतरने के लिए 15 मिनट के तय कार्यक्रम के दौरान विक्रम लैंडर की गति को 1680 मीटर प्रति सेकंड यानी 6048 किमी प्रति घंटा से घटाकर जीरो मीटर प्रति सेकंड करना था. 13वें मिनट में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स की स्क्रीन पर सब रुक गया. तब विक्रम लैंडर की गति 59 मीटर प्रति सेकंड थी. चांद की सतह से 335 मीटर की ऊंचाई पर हरे रंग का एक डॉट बन गया और विक्रम से संपर्क टूट गया. इसके बाद विक्रम लैंडर चांद की सतह से टकरा गया. हालांकि, इसरो वैज्ञानिक अब तक उम्मीद नहीं हारे हैं...विक्रम से संपर्क साधने में लगे हैं.

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