भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने अब तक के सफर में पहली बार एक ऐसी अंतरिक्षीय उड़ान भरने जा रहा है, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘स्पेस शटल’ के स्वदेशी स्वरूप के पहले प्रक्षेपण के लिए तैयार है. यह पूरी तरह से मेड-इन-इंडिया प्रयास है.
श्रीहरिकोटा में दिया जा रहा है अंतिम रूप
एक एसयूवी वाहन के वजन और आकार वाले एक द्रुतग्रामी यान को श्रीहरिकोटा में अंतिम रूप दिया जा रहा है. इसके बाद प्रक्षेपण से पहले की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी. बड़े देश एक द्रुतगामी और पुन: इस्तेमाल
किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के विचार को खारिज कर चुके हैं, लेकिन भारत के इंजीनियरों का मानना है कि उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित करने की लागत को कम करने का उपाय यही है कि रॉकेट का पुनर्चक्रण
किया जाए और इसे दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाया जाए.
पहली बार डेल्टा पंखों से लैस यान को प्रक्षेपित करेगा ISRO
इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी सफल होती है तो वे अंतरिक्षीय प्रक्षेपण की लागत को 10 गुना कम करके 2000 डॉलर प्रति किलो पर ला सकते हैं सब ठीक चलने पर, भारत में मानसून
आने से पहले ही आंध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित भारतीय अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल- टेक्नोलॉजी डेमोनस्ट्रेटर पुन: प्रयोग योग्य प्रक्षेपण यान- प्रौद्योगिकी प्रदर्शक:
यानी आरएलवी-टीडी का प्रक्षेपण हो सकता है. यह पहला मौका होगा जब इसरो डेल्टा पंखों से लैस अंतरिक्षयान को प्रक्षेपित करेगा. प्रक्षेपण के बाद यह बंगाल की खाड़ी में लौट आएगा.
तैरने लायक नहीं है इसकी डिजाइनिंग
आरएलवी-टीडी को इस प्रयोग के दौरान समुद्र से बरामद नहीं किया जा सकता. ऐसी संभावना है कि पानी के संपर्क में आने पर यह वाहन बिखर जाएगा क्योंकि इसकी डिजाइनिंग तैरने के अनुकूल नहीं है. इस प्रयोग का
उद्देश्य इसे तैराना नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य इसे उतारना और ध्वनि की गति से पांच गुना वेग पर एक तय पथ से बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर पर उतारना है.
छह गुना छोटा है आरएलवी-टीडी
आकार-प्रकार में अमेरिकी स्पेस शटल से मेल खाने वाले जिस आरएलवी-टीडी का परीक्षण किया जा रहा है, वह अंतिम प्रारूप से लगभग छह गुना छोटा है. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरूवनंतपुरम के निदेशक के.
सिवान ने कहा, ‘ये हनुमान के बड़े कदम की दिशा में अभी नन्हें कदम हैं.’ अंतिम प्रारूप को तैयार होने में कम से कम 10 से 15 साल का समय लगेगा क्योंकि पुन: प्रयोग योग्य मानव सहित रॉकेट को डिजाइन करना
बच्चों का खेल नहीं है.
इन देशों की कतार में शामिल हो जाएगा भारत
स्पेस शटल की संचालित उड़ानों के लिए कोशिश करने वाले चंद देशों में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान शामिल हैं. अमेरिका ने अपना स्पेस शटल 135 बार उड़ाया और वर्ष 2011 में उसकी अवधि खत्म हो गई. उसके
बाद से वह अमेरिका निर्मित रॉकेटों में अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता खो चुका है. रूस लोगों ने एक ही स्पेस शटल बनाया और इसे बुरान कहकर पुकारा. वह वर्ष 1989 में एक ही बार अंतरिक्ष में
गया. इसके बाद फ्रांस और जापान ने कुछ प्रायोगिक उड़ानें भरीं और उपलब्ध जानकारी के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ने कभी स्पेस शटल के प्रक्षेपण का प्रयास नहीं किया.
6.5 मीटर लंबा और 1.75 टन भारी यान
भारत ने 15 साल से भी पहले से अपनी स्पेस शटल बनाने के विचार को अपना लिया था लेकिन इसकी शुरुआत लगभग पांच साल पहले ही हुई. तब इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के एक समर्पित दल ने आरएलवी-टीडी को
हकीकत में बदलना शुरू किया. ‘एयरोप्लेन’ के आकार के 6.5 मीटर लंबे और 1.75 टन भारी इस अंतरिक्ष यान को एक विशेष रॉकेट बूस्टर की मदद से वायुमंडल में भेजा जाएगा.
विशेष बूस्टर या पहले चरण में ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है और यह आरएलवी-टीडी को वायुमंडल में लगभग 70 किलोमीटर तक लेकर जाएगा. वहां से ढलाव शुरू होगा. इस दौरान छोटे प्रक्षेपक इस वाहन को ठीक उस जगह पर ले जाने में मदद करेंगे, जहां उसे उतरना है. पोत, उपग्रह और रडार इसके इस उतराव का निरीक्षण करेंगे. इस प्रयोग में यान में कोई निचला आधार नहीं है, इसलिए इसे जमीन पर वापस नहीं उतारा जा सकता. भारत में किसी यान को ऐसे उतारने के लिए पांच किलोमीटर से लंबा रनवे भी नहीं है.