आजकल हममें से कई लोग इस बात पर नाराज हैं कि पेट्रोल और डीजल के दाम जितने कम किए जा सकते थे, उतने कम नहीं किए जा रहे. ये शिकायत वाजिब भी है क्योंकि सरकार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाती जा रही है.
एक्साइज ड्यूटी वो टैक्स होता है जो कच्चे तेल से पेट्रोल या डीजल बनाने के बाद उसकी कीमत पर लगता है. नवंबर से अब तक सरकार चार बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ा चुकी है. अगर ये बढ़ोतरी न होती तो पेट्रोल 7.75 पैसे प्रति लीटर और डीजल 6.50 पैसे प्रति लीटर और सस्ता हो सकता था.
एक्साइज ड्यूटी इकोनॉमी के लिए जरूरी
अभी दिल्ली में सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 8.95 रुपये और डीजल पर 7.96 रुपये एक्साइज ड्यूटी के नाम पर वसूल रही है. चार बार एक्साइज
ड्यूटी बढ़ने से केंद्र सरकार को इस साल तकरीबन 20 हजार करोड़ की एक्स्ट्रा कमाई होने का अनुमान है. ये सारा पैसा सरकारी खजाने में जा रहा
है. केंद्र सरकार के लिए ये पैसा लॉटरी की तरह है, क्योंकि वो इससे सरकारी खजाने के घाटे को जीडीपी के 4.1% तक लाने का टारगेट पूरा कर
सकती है. मतलब ये कि पेट्रोल-डीजल पर बढ़ा एक्साइज टैक्स देश की इकोनॉमी को मजबूत बनाने के काम आ रहा है. इकोनॉमी की हालत
सुधरेगी तो फायदा देश और जनता का ही होगा.
अब तेल पर कोई सब्सिडी नहीं है
कई लोग ये दलील भी दे रहे हैं कि जब जुलाई 2004 में कच्चा तेल 50 डॉलर के आसपास हुआ करता था, तब पेट्रोल 35-36 रुपये/लीटर बिकता था.
आज इतना महंगा क्यों है? लेकिन ये बात भी अर्धसत्य है. तब सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर एक मोटी रकम सब्सिडी के तौर पर दिया करती थी.
उसकी वजह से कीमतें आज के मुकाबले कम होती थीं. सब्सिडी की ये रकम कहीं और से नहीं, बल्कि जनता से वसूले गए टैक्स से ही आती थी.
मतलब ये कि तब जो लोग गाड़ी नहीं चलाते थे, वो भी अमीरों की गाड़ी में जलने वाले तेल का खर्च उठाते थे. शुक्र है कि आज पेट्रोल और डीजल,
दोनों पर ही सब्सिडी खत्म हो चुकी है.
भारत में पेट्रोल पाकिस्तान से महंगा क्यों?
सियासी फायदे के लिए अक्सर कुछ पार्टियां दलील दे रही हैं कि भारत में पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल के मुकाबले भी महंगा तेल बिक रहा है.
ये बात सही है, लेकिन इसका भी एक वाजिब कारण है. पाकिस्तान हो या कोई दूसरा दक्षिण एशियाई देश, वहां जो पेट्रोल या डीजल बिक रहा है
वो क्वालिटी के हिसाब से भारत में 10-15 साल पहले बिकने वाले तेल जैसा है. आज भारत में यूरो-3 और यूरो-4 स्टैंडर्ड्स लागू हैं, जो कि प्रदूषण
कम फैलाते हैं और नई टेक्नोलॉजी वाली गाड़ियों के लिए ठीक होते है. भारत में बिकने वाले तेल की तुलना पाकिस्तान से तो कतई नहीं की जा
सकती. इतना ही नहीं, पाकिस्तान सरकार के गैरजिम्मेदार रवैये का ही नतीजा है कि वहां पर सरकारी तेल कंपनियां दीवालिया होने की कगार
पर हैं और पूरा देश पेट्रोल संकट से जूझ रहा है.
सस्ता तेल मुसीबत भी बन सकता है
10 साल पहले सड़कों पर गाड़ियों की संख्या आज के मुकाबले आधी से भी कम थी. तब पेट्रोल भले ही 35 रुपये लीटर था, लेकिन लोगों की खर्च
की क्षमता भी आज के मुकाबले काफी कम थी. आप खुद कल्पना कीजिए कि अगर आज पेट्रोल 35 रुपये किलो हो जाए तो क्या होगा. शहरों में
सड़कों पर अचानक गाड़ियों की संख्या कई गुना हो जाएगी, जिन्हें कंट्रोल करना नामुमकिन होगा. इन गाड़ियों की वजह से पर्यावरण को जो
नुकसान होगा वो अलग. पाकिस्तान में पेट्रोल संकट के पीछे भी यही वजह है. वहां सस्ते पेट्रोल की वजह से लोग सीएनजी छोड़ गाड़ियां पेट्रोल पर
चलाने लगे, जिससे अचानक पेट्रोल की डिमांड बहुत बढ़ गई.
कच्चे तेल की घटती कीमत का धोखा
ये सही बात है कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत आज करीब 60 फीसदी घटकर 50 डॉलर प्रति बैरल पर आ चुकी है, लेकिन हमें इस बात को
याद रखना होगा कि डिस्ट्रीब्यूशन करने वाली कंपनियां कच्चे तेल का सौदा 6 से 8 महीने तक एडवांस में कर चुकी होती हैं. यानी आज भले ही
कच्चा तेल सस्ता हो गया है कि लेकिन इस वक्त जो तेल खरीदा जा रहा है वो हो सकता है कि 6 महीने पुराने रेट पर हो. ऐसी स्थिति में तेल
कंपनियों की मुसीबत है कि वो घटती कीमतों का फायदा जनता तक कैसे पहुंचाएं. कच्चे तेल के दाम घटने पर तेल कंपनियों को पुराने घाटे की
भरपाई न करने देने का ही नतीजा पाकिस्तान भुगत रहा है, जहां आजकल लोग पेट्रोल के लिए घंटों-घंटों लाइन लगाकर खड़े हो रहे हैं. जाहिर है
आप भारत में ये स्थिति कभी नहीं चाहेंगे.
पेट्रोल और डीजल के दाम कच्चे तेल के हिसाब से कम होते रहें, ये जरूरी है लेकिन ये गिरावट इतनी ज्यादा भी नहीं होनी चाहिए कि नए तरह की समस्याएं पैदा हो जाएं. अगर सरकार एक सोची-समझी रणनीति के तहत एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर पेट्रोल और डीजल के दाम पर कंट्रोल रखने की कोशिश कर रही है तो इसमें किसी को हर्ज नहीं होना चाहिए.