हल्दी पाउडर में मिलावट के आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने में 38 साल लग गए. अब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उसे बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी करते हुए उच्च न्यायालय का फैसला भी पलट दिया है.
मिलावट का आरोप सिद्ध होने पर उसे अधिकतम छह महीने कैद की सजा मिलती, लेकिन अदालतों में बरी-दोषी का खेल होते-होते 38 साल लग गए. अब तो यही कह सकते हैं कि अंत भला तो सब भला.
प्रेम चंद्र के जीवन में अदालती पेंच की कहानी 18 अगस्त 1982 से शुरू हुई. उस दिन हरियाणा के प्रेम चंद्र ने सुबह 11 बजे 100 ग्राम हल्दी पाउडर बेचा था. उसे पता नहीं था कि ग्राहक खाद्य विभाग का हाकिम है. 100 ग्राम हल्दी की जांच हुई और प्रेम चंद्र की दुकान से 10 किलो हल्दी पाउडर जब्त किया गया. आरोप ये था कि हल्दी में कीड़े पाए गए.
ये मुकदमा निचली अदालत में 14 साल तक चला. उतने ही साल जितने वन में गुजार कर भगवान राम अयोध्या लौट आए थे, लेकिन प्रेम चंद्र के चैन के राम बरी किए जाने की खबर के साथ 1998 में लौटे. इसके बाद सरकार पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट चली गई.
6 महीने कैद की सजा और 2 हजार रुपये जुर्माना
हाईकोर्ट ने 11 साल बाद 9 दिसंबर 2009 को फैसला दिया कि प्रेम चंद्र हल्दी मिलावट का दोषी है. उसे छह महीने कैद की सजा और दो हजार रुपए जुर्माना किया गया. इसके बाद प्रेम चंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
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उसने अपनी दलील में कहा कि सैंपल लेने के 18 दिन बाद हल्दी का नमूना प्रयोगशाला में भेजा गया था. विभाग ये साबित नहीं कर पाया कि नमूने से छेड़छाड़ नहीं हुई. पब्लिक एनलिस्ट ने भी अपनी रिपोर्ट में कीड़ों की वजह से हल्दी इंसानों के उपयोग के लिए सुरक्षित ना होने का जिक्र नहीं किया. अदालत में जिरह के दौरान भी वो साफ-साफ ये नहीं बता पाए कि हल्दी में कीड़े मिले थे या नहीं.
बेदाग कर गया फैसला...
सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाने में करीब साढ़े 9 साल लिए. हां, प्रेम चंद्र को अपनी जवानी अदालतों के चक्कर काटते हुए गुजारने के बाद बुढ़ापे में आए फैसले से अब सिर्फ यही तसल्ली रहेगी कि दुनिया उनकी औलादों को मिलावटी हल्दी बेचने वाले के खानदान का बोलकर ताने नहीं मारेगी. चाहे जैसे भी हो फैसला तो उनको बेदाग कर गया है.