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सरकार रहे या जाए: BJP-JDS दोनों के लिए रिस्की है कर्नाटक में आगे की राह

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार से दो निर्दलीय विधायको के समर्थन वापसी से राजनीतिक खेमेबंदी तेज हो गई है. ऐसे में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी राज्य में एक बार फिर सरकार बनाने की संभावना तलाश रही है. 

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मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियूरप्पा (फाइल फोटो)
मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियूरप्पा (फाइल फोटो)

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कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (सेक्यूलर) गठबंधन सरकार से 2 निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापसी के बाद सियासी लामबंदी तेज हो गई है. दो दिनों का मुख्यमंत्री बनने के बाद अंतिम समय में गठबंधन के समक्ष सत्ता गंवा बैठे पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने एक बार फिर जोड़तोड़ की कोशिश तेज कर दी है. लेकिन इस बार उनकी कोशिश पहले की अपेक्षा मजबूत दिख रही है. येदियुरप्पा दावा कर रहे हैं कि जल्द ही खुशखबरी मिलेगी. वहीं, कुमारस्वामी गठबंधन सरकार पर किसी संकट से इनकार कर रहे हैं. इन दावों के बीच दोनों खेमों में बेचैनी साफ देखी जा सकती है.  

लोकसभा से पहले महंगी पड़ सकती है जोड़तोड़ की राजनीति

कांग्रेस के 4 विधायक पहले ही मुंबई में कैंप कर चुके हैं और माना जा रहा है कि वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संपर्क में हैं. सूत्रों की मानें तो बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के असंतुष्ट विधायकों के संपर्क में है. लेकिन कांग्रेस के मंत्री जमीर अहमद खान का कहना है कि कांग्रेस के विधायक छुट्टी मनाने गए हैं और वे बुधवार को वापस आ जाएंगे.

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वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की इस कोशिश पर बीजेपी आलाकमान चुप्पी साधे हुए है और अभी तक येदियुरप्पा को मिलने का समय नहीं दिया गया है. बीजेपी में कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. क्योंकि आम चुनावों से पहले खरीद फरोख्त की कोशिश का गलत संदेश जाएगा और इसका असर चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है. विपक्ष कर्नाटक ही नहीं पूरे देश में इसे मुद्दा बना सकता है. हालांकि येदियुरप्पा के करीबियों का दावा है कि वो पार्टी आलाकमान को इस बात पर मना लेंगे कि यह राज्य में सरकार बनाने या पुन: चुनाव कराने के लिए सबसे मुफीद समय है.

क्या है बीजेपी का गेम प्लान?

कर्नाटक विधानसभा में स्पीकर समेत सदस्यों की संख्या 225 है और बहुमत का जादुई आंकड़ा 113. वर्तमान में कांग्रेस के 79, जेडीएस के 37, केपीजेपी के 1, बीएसपी के 1 विधायक के साथ गठबंधन के पास स्पीकर समेत 119 विधायक हैं. जबकि बीजेपी विधायकों की संख्या 104 है और 2 निर्दलीयों के समर्थन से यह संख्या 106 हो गई है. फिर भी बीजेपी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है. लिहाजा बीजेपी के सामने विकल्प यह है कि कांग्रेस या जेडीएस या फिर दोनों के कुल 12 विधायक विश्वास मत के दौरान सदन से वॉक आउट कर जाएं या सदन में मौजूद ही न रहें.

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हालांकि, बीजेपी यह कोशिश पहले भी कर चुकी है, लेकिन इस बार येदियुरप्पा को उम्मीद इसलिए भी नजर आ रही है क्योंकि गठबंधन के रिश्ते पिछले कुछ समय से अच्छे नहीं चल रहे हैं, जिसकी वजह से कई विधायक खफा हैं. ऐसे में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी फूंक फूंक कर कदम रख रहा है. क्योंकि 6 महीने पहले ही पार्टी सरकार बनाने की नाकाम कोशिश कर मुंहकी खा चुकी है.

जेडीएस भी खेल रही है खेल

एक तरफ जहां बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को अपने खेमे में लाने में व्यस्त है, तो वहीं कांग्रेस-जेडीएस खेमा भी शांत नहीं बैठा है. जेडीएस का दावा है कि बीजेपी के 8 विधायक उसके संपर्क में है. सोमवार को येदियुरप्पा ने दावा किया कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी मंत्री पद की एवज में बीजेपी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.  

वहीं, कुमारस्वामी ने दावा किया है कि वे जानते हैं कि बीजेपी किन विधायकों के संपर्क में है और उन्हें कितना दे रही है. लेकिन ये सभी विधायक गठबंधन के साथ हैं और उनके संपर्क में हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और दिनेश गुंडू राव भी इस बात को दोहरा रहे हैं कि गठबंधन को कोई खतरा नहीं है. हालांकि सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार जिनके ऊपर विश्वास मत के दौरान विधायकों को एकजुट रखने की जिम्मेदारी थी वे मुख्यमंत्री से नाराज बताए जा रहे हैं और इस स्थिति में सरकार को संकट से उबारने में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

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बरकरार रहेगी महागठबंधन की तस्वीर?

ऐसी स्थिति में यह देखना होगा कि बीजेपी अपने मंसूबों में कामयाब होती है या कांग्रेस के संकटमोचक एक बार फिर बीजेपी को मात दे पाएंगे? लेकिन यहां बड़ा सवाल यह भी है कि कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार जो कि केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ महागठबंधन का मंच बनी क्या वो उस तस्वीर को बरकरार रख पाएगी या लोकसभा चुनाव से पहले ही बिखर जाएगी? वहीं बीजेपी के लिए रिस्क इस बात का है कि खरीद फरोख्त की इस राजनीति का असर कहीं आगामी लोकसभा चुनाव पर न पड़े. माना जा रहा है कि आने वाले 24 घंटे में कर्नाटक की राजनीति किसी भी तरफ करवट ले सकती है.

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